दो क़िस्से — कविता कृष्णपल्लवी
अगर कोई चोर-लम्पट-ठग-बटमार दाढ़ी बढ़ाकर संन्यासी जैसा भेस-बाना बनाकर लोगों की आँख में धूल झोंके तो लोगों को उसकी दाढ़ी में आग लगा देनी चाहिए और उसे इलाक़े से खदेड़ देना चाहिए।
अगर कोई चोर-लम्पट-ठग-बटमार दाढ़ी बढ़ाकर संन्यासी जैसा भेस-बाना बनाकर लोगों की आँख में धूल झोंके तो लोगों को उसकी दाढ़ी में आग लगा देनी चाहिए और उसे इलाक़े से खदेड़ देना चाहिए।
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
हबीब जालिब पाकिस्तान के इन्क़लाबी शायर थे जिन्होंने मेहनतकश अवाम की मुक्ति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अपनी धारदार शायरी के ज़रिये उन्होंने पाकिस्तान के तीन फ़ौजी तानाशाहों – जनरल अयूब, याहया और िज़या – की हुकूमतों की जमकर मुख़ालफ़त की और इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इन्क़लाबी शायर के साथ ही साथ वे एक सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। वे पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे और आजीवन मज़दूर वर्ग की मुक्ति की विचारधारा मार्क्सवाद की पैरोकारी करते रहे। हबीब जालिब की नज़्में पाकिस्तान ही नहीं बल्कि समूचे दक्षिण एशिया में मशहूर हैं।
दुनिया में ऐसे लेखकों की कमी नहीं, जिन्हें पढ़ाई-लिखाई का मौक़ा मिला, पुस्तकालय मिला, शान्त वातावरण मिला, जिसमें उन्होंने अपनी लेखनी की धार तेज़ की। लेकिन बिरले ही ऐसे लोग होंगे जो समाज के रसातल से उठकर आम-जन के सच्चे लेखक बने। मक्सिम गोर्की ऐसे ही लेखक थे। उनका उपन्यास ‘माँ’ आज दुनिया की लगभग हर भाषा में पढ़ा जाता है।
ज़िम्बाब्वे के प्रमुख कवि चेन्जेराई होव की चार कविताएँ इनकार पुलिस जब आ ही जाये ऐन सिर पर और उसकी लाठी नृत्य करने लगे तुम्हारी पीठ पर इनकार कर देना…
नये साल पर मज़दूर साथियों के नाम ‘बिगुल’ का सन्देश नये वर्ष पर नहीं है हमारे पास आपको देने के लिए सुन्दर शब्दों में कोई भावविह्वल सन्देश नये वर्ष पर…
अपने उन शहीदों के नाम पर
उन लोगों के लिए
मैं दण्ड की माँग करता हूँ
जिन्होंने हमारी पितृभूमि को
रक्तप्लावित कर दिया है…
सरकार का समर्थक • सिगफ़्रीड लेंज़ हिन्दी रूपान्तर : जितेन्द्र भाटिया उन लोगों ने ख़ास निमंत्रण देकर प्रेस वालों को बुलवाया था कि वे आकर ख़ुद अपनी आँखों से देखें,…
यह कविता दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में छात्र-युवा कलाकारों की संस्था ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग’ द्वारा शुरू की गई मुहिम ‘अन्वेषण’ को सटीक ढंग से अभिव्यक्त करती है। ‘अन्वेषण’ का मक़सद कला को आर्ट गैलरी की दीवारों से बाहर उतारकर ज़िन्दगी के बीच लाना है। इस मुहिम का मक़सद जीवन की बुनियादी शर्तों को रचने वाले सर्जकों के बीच जाकर जीवन के गरम ताप से कला को सींचना है। हमने अन्वेषण के तहत बवाना, वज़ीरपुर, नांगलोई के औद्योगिक क्षेत्रों में, इन इलाक़ों से सटे रिहायशी क्षेत्रों में फोटोग्राफ़ी की, स्केच बनाये, चित्र बनाये और लोगों से कला के बारे में, उनकी ज़िन्दगी के बारे में बातचीत की। इस दौरान किये गये कलाकर्म को लोगों के बीच प्रदर्शित भी किया। इस दौरान हमारे जो अनुभव रहे उन्हें हम यहाँ साझा कर रहे हैं।