माओ त्से-तुङ की दो कविताएँ
माओ ने यह सुप्रसिद्ध कविता उस समय लिखी थी जब चीन में पार्टी के भीतर मौजूद पूंजीवादी पथगामियों (दक्षिणपंथियों को यह संज्ञा उसी समय दी गई थी) के विरुद्ध एक प्रचण्ड क्रान्ति के विस्फोट की पूर्वपीठिका तैयार हो रही थी। महान समाजवादी शिक्षा आन्दोलन के रूप में संघर्ष स्पष्ट हो चुका था। युद्ध की रेखा खिंच गई थी। यह 1966 में शुरू हुई महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की पूर्वबेला थी जिसने पूंजीवादी पथगामियों के बुर्जुआ हेडक्वार्टरों पर खुले हमले का ऐलान किया था। सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति ने पहली बार सर्वहारा अधिनायकत्व के अन्तर्गत सतत क्रान्ति और अधिरचना में क्रान्ति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया और इसे पूंजीवादी पुनर्स्थापना को रोकने का एकमात्र उपाय बताते हुए समाजवाद संक्रमण की दीर्घावधि के लिए एक आम कार्यदिशा दी। इसके सैद्धान्तिक सूत्रीकरणों की प्रस्तृति 1964.65 में ही की जाने लगी थी।