शहीद भगत सिंह के इहे एक सपना रहे

सिद्धेश्वर यादव, फौजी कालोनी, लुधियाना

 

छोड़ देसवा में क्रान्ति की तान भईया,
मिल-जुल गढ़े चला नया हिन्दोस्तान भईया।

केकरो महला अटारी और खजाना भरल,
घूमे खाति दुआरा गाड़ी मार्शल लगल।
तो केकरो साईकल के नहीं के ठिकाना भईया
मिल-जुल कर…

दिन रात काम करिले फिर भी फुटपाथ पे सुतीले,
तन पे कपड़ा नयी खे भर पेट खाना ले तरसीले,
घर में झोपड़ी के नइखे ठिकान भईया
मिल-जुल कर…

आज नेतवन के झुठा-झुठा वायदा सुनल,
सस्ते दारू दिहव नेता हमरा चुनल,
इनकर बतिया में ना जईया इनसान भईया।
मिल-जुल कर…

शहीद भगत सिंह के एही एक सपना रहे
सब बराबर रहे कोई न भूखा मरे
उनके बतिया पर कर हम धियान भईया।
मिल-जुल कर…

कारख़ाना मज़दूर युनियन क्रान्तिकारी संगठन बनल
उन कर बतिया में गरीबन के जोति जगल
एहि है सिद्धेश्वर के कहना भईया
मिल-जुल कर गढ़े चला नया हिन्दोस्तान भईया।

बिगुल, जुलाई 2009

 


 

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