Category Archives: कला-साहित्‍य

कविता – जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे – बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : When the Fascists kept getting stronger / Bertolt Brecht

जर्मनी में
जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे
और यहां तक कि
मजदूर भी
बड़ी तादाद में
उनके साथ जा रहे थे
हमने सोचा
हमारे संघर्ष का तरीका गलत था
और हमारी पूरी बर्लिन में
लाल बर्लिन में
नाजी इतराते फिरते थे
चार-पांच की टुकड़ी में
हमारे साथियों की हत्या करते हुए
पर मृतकों में उनके लोग भी थे
और हमारे भी
इसलिए हमने कहा
पार्टी में साथियों से कहा
वे हमारे लोगों की जब हत्या कर रहे हैं
क्या हम इंतजार करते रहेंगे
हमारे साथ मिल कर संघर्ष करो

कविता – 6 दिसम्बर 1992 की स्मृति में / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

1947 में देश के टुकड़े होने के साथ ही
सदी की सबसे बड़ी साम्प्रदायिक मारकाट हुई
इसी धरती पर, बहती रही लहू की धार, लगातार।
दशकों तक टपकता रहा लहू, रिसते रहे ज़ख़्म
और उस लहू को पीकर तैयार होती रहीं
धार्मिक कट्टरपंथी फासिज़्म की फसलें
और दंगों के आँच पर सियासी चुनावी पार्टियाँ
लाल करती रहीं अपनी गोटियाँ।
फिर रथयात्रा पर निकला जुनून की गर्द उड़ाता
फासिज़्म का लकड़ी का रावण
अपने को लौहपुरुष कहता हुआ
और एक दिन पूँजीवादी सड़ांध से उपजा
सारा का सारा फासिस्टी उन्माद
टूट पड़ा मेहनतकश जनों की एकता पर, जीवन पर
और स्वप्नों पर, हमारे इतिहास-बोध पर,
शहादतों और विरासतों की हमारी साझेदारी पर,
हमारे भविष्य की योजनाओं के शिद्दत से बुने गये
ताने-बाने पर।

अवतार सिंह ‘पाश’ की दो कविताएँ

यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये
आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

कविता – शासन करने की कठिनाई / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

या फिर ऐसा भी तो हो सकता है
कि शासन करना इतना कठिन है ही इसीलिए
कि ठगी और शोषण के लिए ज़रूरी है
कुछ सीखना-समझना।

क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे जघन्य अपराध और प्रतिरोध का रास्ता क्या है?

स्त्री-विरोधी बढ़ती बर्बरता केवल पूँजीवादी उत्पादन और विनिमय प्रणाली की स्वतःस्फूर्त परिणति मात्र नहीं है। पूँजीवादी लोभ-लाभ की प्रवृत्ति इसे बढ़ावा देने का काम भी कर रही है। जो भी बिक सके, उसे बेचकर मुनाफा कमाना पूँजीवाद की आम प्रवृत्ति है। पूँजीवादी समाज के श्रम-विभाजन जनित अलगाव ने समाज में जो ऐन्द्रिक सुखभोगवाद, रुग्ण- स्वच्छन्द यौनाचार और बर्बर स्त्री-उत्पीड़क यौन फन्तासियों की ज़मीन तैयार की है, उसे पूँजीपति वर्ग ने एक भूमण्डलीय सेक्स बाज़ार की प्रचुर सम्भावना के रूप में देखा है। सेक्स खिलौनों, सेक्स पर्यटन, वेश्यावृत्ति के नये-नये विविध रूपों, विकृत सेक्स, बाल वेश्यावृत्ति, पोर्न फिल्मों, विज्ञापनों आदि-आदि का कई हज़ार खरब डालर का एक भूमण्डलीय बाज़ार तैयार हुआ है। टी.वी., डी.वी.डी., कम्प्यूटर, इन्टरनेट, मोबाइल, डिजिटल सिनेमा आदि के ज़रिए इलेक्ट्रानिक संचार-माध्यमों ने सांस्कृतिक रुग्णता के इस भूमण्डलीय बाज़ार के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभायी है। खाये-अघाये धनपशु तो स्त्री-विरोधी अपराधों और अय्याशियों में पहले से ही बड़ी संख्या में लिप्त रहते रहे हैं, भले ही उनके कुकर्म पाँच सितारा ऐशगाहों की दीवारों के पीछे छिपे होते हों या पैसे और रसूख के बूते दबा दिये जाते हों। अब सामान्य मध्यवर्गीय घरों के किशोरों और युवाओं तक भी नशीली दवाओं, पोर्न फिल्मों, पोर्न वेबसाइटों आदि की ऐसी पहुँच बन गयी है, जिसे रोक पाना सम्भव नहीं रह गया है। यही नहीं, मज़दूर बस्तियों में भी पोर्न फिल्मों की सी.डी. का एक बड़ा बाज़ार तैयार हुआ है। वहाँ मोबाइल रीचार्जिंग की दुकानों पर मुख्य काम अश्लील वीडियो और एम.एम.एस. क्लिप्स बेचने का होता है।

जनता का साहित्य / मुक्तिबोध

जनता के साहित्य से अर्थ है ऐसा साहित्य जो जनता के जीवन-मूल्यों को, जनता के जीवनादर्शों को, प्रतिष्ठापित करता हो, उसे अपने मुक्तिपथ पर अग्रसर करता हो। इस मुक्तिपथ का अर्थ राजनैतिक मुक्ति से लगाकर अज्ञान से मुक्ति तक है। अतः इसमें प्रत्येक प्रकार का साहित्य सम्मिलित है, बशर्ते कि वह सचमुच उसे मुक्तिपथ पर अग्रसर करे। … जनता के मानसिक परिष्कार, उसके आदर्श मनोरंजन से लगाकर क्रान्तिपथ पर मोड़ने वाला साहित्य, मन को मानवीय और जन को जन-जन करने वाला साहित्य, शोषण और सत्ता के घमण्ड को चूर करने वाले स्वातंत्रय और मुक्ति के गीतों वाला साहित्य, प्राकृतिक शोभा और स्नेह के सुकुमार दृश्यों वाला साहित्य – सभी प्रकार का साहित्य सम्मिलित है बशर्ते कि वह मन को मानवीय, जन को जन-जन बना सके और जनता को मुक्तिपथ पर अग्रसर कर सके।

रूस में मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार ‘ईस्क्रा’ की शुरुआत की रोमांचक कहानी

‘ईस्क्रा’ उन्हें पार्टी का निर्माण करने के लिए, क्रान्ति के लिए ललकारता। शीघ्र ही रूस में ‘ईस्क्रा’ की प्रेरणा से एक शक्तिशाली मज़दूर आन्दोलन शुरू हो गया। इस विराट आन्दोलन के नेता, मार्गदर्शक और ‘ईस्क्रा’ के मुख्य सम्पादक व्लादीमिर इल्यीच थे।

व्लादीमिर इल्यीच को रूस से मज़दूरों और ‘ईस्क्रा’ के एजेण्टों से बड़ी संख्या में पत्र, लेख, आदि मिलते थे और लगभग सब कूट भाषा में लिखे होते थे। वह उन्हें ‘ईस्क्रा’ में छापते, मज़दूरों के पत्रों के जवाब देते, ‘ईस्क्रा’ के लिए लेख तैयार करते और साथ ही राजनीति और क्रान्तिकारी संघर्ष के बारे में किताबें लिखते।

जीवन-लक्ष्य : युवावस्था में लिखी मार्क्स की कविता

कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफ़ानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिए एक महान ऊँचा लक्ष्य
और, उसके लिए उम्रभर संघर्षों का अटूट क्रम।
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल!
अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बाँध लूँगा मैं!

औद्योगिक दुर्घटनाओं पर एक वृत्तचित्र

दूर बैठकर यह अन्दाज़ा लगाना भी कठिन है कि राजधानी के चमचमाते इलाक़ों के अगल-बगल ऐसे औद्योगिक क्षेत्र मौजूद हैं जहाँ मज़दूर आज भी सौ साल पहले जैसे हालात में काम कर रहे हैं। लाखों-लाख मज़दूर बस दो वक़्त की रोटी के लिए रोज़ मौत के साये में काम करते हैं।… कागज़ों पर मज़दूरों के लिए 250 से ज्यादा क़ानून बने हुए हैं लेकिन काम के घण्टे, न्यूनतम मज़दूरी, पीएफ़, ईएसआई कार्ड, सुरक्षा इन्तज़ाम जैसी चीज़ें यहाँ किसी भद्दे मज़ाक से कम नहीं… आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं और मज़दूरों की मौतों की ख़बर या तो मज़दूर की मौत के साथ ही मर जाती है या फ़ि‍र इन कारख़ाना इलाक़ों की अदृश्य दीवारों में क़ैद होकर रह जाती है। दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, लोग मरते रहते हैं, मगर ख़ामोशी के एक सर्द पर्दे के पीछे सबकुछ यूँ ही चलता रहता है, बदस्तूर…

मक्सिम गोर्की के जन्मदिवस (28 मार्च) पर – एक साहित्यिक परिचय

आज भी, जबकि पूरी दुनिया के मजदूर आन्दोलन ठहराव के शिकार हैं और प्रगति पर प्रतिरोध की स्थिति हावी है, ऐसे में गोर्की के उपन्यास और कहानियाँ पूरी दुनिया की जनता के संघर्षों के लिये अत्यन्त प्रासंगिक हैं। आज भी उनकी रचनायें पूरी दुनिया की मेहनतकश जनता को एक समतावादी समाज के निर्माण के लिये उठ खड़े होने और परिस्थितियों को बदल डालने के लिये संघर्ष करने, एक क्रन्तिकारी इच्छाशक्ति पैदा करने और सर्वहारा वर्ग चेतना को विकसित करने की प्रेरणा देती हैं। गोर्की का साहित्य हमारे मन में वर्तमान समाज में जनता की बदहाल परिस्थितियों के प्रति नफ़रत ही नहीं बल्कि उन परिस्थितियों के विरुद्ध संघर्ष करने और उन्हें बदलने की इच्छा भी पैदा करता है।