कविता – शुरुआत की सुबह / शंकर गुहा नियोगी
सिर्फ वेदनाएं
दुख की गाथाएं
चलती रहेंगी अनंत काल तक
या
हम उठ खड़े होंगे
अंतिम क्षड़ों में?
अन्त नहीं होगा
जहां अन्त होना था,
वहीं शुरुआत की सुबह खिल उठेगी।
सिर्फ वेदनाएं
दुख की गाथाएं
चलती रहेंगी अनंत काल तक
या
हम उठ खड़े होंगे
अंतिम क्षड़ों में?
अन्त नहीं होगा
जहां अन्त होना था,
वहीं शुरुआत की सुबह खिल उठेगी।
धमकी पर धमकी देते हुए
डर पर डर फैलाए
वह खुद डर गया
वह निवास स्थान से डर गया
वह पानी से डर गया
वह स्कूलों से डर गया
वह हवा से डर गया
आज़ादी को उसने बेड़ियां पहना दीं
मगर हथकड़ियां खनकी
वह उस आवाज से डर गया।
साहब ने तुम्हारी बदली कास्टिक टैंक पर कर दी है, बड़ा सख्त काम हैं, अब भी साहब को खुश कर सको तो बदली रुक सकती है। उत्तर में उसने कुछ नहीं कहा। उठकर कास्टिक टैंक पर चला गया। टैंक पर काम करने वाले मजदूरों ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। उसे ऐसा लगा कि जैसे वे लोग जान-बूझकर उससे पृथक रहने का प्रयत्न कर रहे हों। पुराने पेंट’ और जंग लगे हुए सामान को कास्टिक में धोया जा रहा। था। आगे बढ़कर उसने भी उन्हीं की तरह काम शुरु कर दिया।
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा
आप तो जानते ही हैं कि अमीरों को सिर्फ़ तभी जेल भेजा जाता है जब वे बहुत ही ज्यादा बुराइयाँ करते हैं और उन पर पर्दा नहीं डाल पाते। लेकिन गरीब जब जरा-सी भी बेहतरी चाहते हैं तो उसी वक्त जेल में बन्द कर दिये जाते हैं। आपसे मैं सिर्फ़ यही कह सकता हूँ कि आप बहुत खुशकिस्मत बाप हैं!
सांस्कृतिक विकास की इस मंज़िल पर शारीरिक भूख बुझाने के मुक़ाबले आध्यात्मिक भूख बुझाना अधिक आसान है। आप घरों से घिरी हुई सड़कों पर भटकते रहते हैं। घर, जो बाहर से सन्तोषजनक सीमा तक सुन्दर होते हैं और भीतर से – हालाँकि यह लगभग एक अनुमान ही है – सन्तोषजनक सीमा तक आरामदेह होते हैं; ये आपके भीतर वास्तुकला, स्वास्थ्य विज्ञान और बहुतेरे दूसरे उदात्त और बुद्धिमत्तापूर्ण विषयों पर सुखद विचार पैदा कर सकते हैं; सड़कों पर आप गर्म और आरामदेह कपड़े पहने लोगों से मिलते हैं – वे विनम्र होते हैं, अक्सर किनारे हटकर आपके लिए रास्ता छोड़ देते हैं और आपके वजूद के अफ़सोसनाक़ तथ्य पर ध्यान देने से कुशलतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। निश्चय ही, एक भूखे आदमी की आत्मा एक भरे पेट वाले की आत्मा की अपेक्षा बेहतर ढंग से और अधिक स्वास्थ्यप्रद ढंग से पोषित होती है – यह एक ऐसा विरोधाभास है जिससे, निस्सन्देह, भरे पेट वालों के पक्ष में कुछ निहायत चालाकी भरे नतीजे निकाल लेना मुमकिन है!…
सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी ।
मानवात्मा के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी ।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी ।
आशाओं के रण-राग हमें रचने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।
उसकी पीठ और कमर झुक गई थी
लगातार काम करते करते।
जो कल तक दासता की बेड़ियों में बंद
घुटने टेके हुए था,
वह अपनी आशा के पंखों पर उड़ेगा
सबसे ऊपर, ऊपर उठेगा।
मैं कहता हूँ उसकी ऊंचाई पर
पहाड़ तक
अचरज और ईर्ष्या करेंगे।
और यूँ दर्ज की बोल्शेविकों ने इतिहास में
इतिहास के सर्वाधिक गम्भीर मोड़-बिन्दु की तारीख़:
उन्नीस सौ सत्रह
सात नवम्बर!
मैं सोचता हूँ जिन्होंने इतने सारे काम किये
उन सबका मालिक भी उन्हीं को होना चाहिए।
और जो रोटी पकाते हैं उन्हें वह खानी भी चाहिए।
और खदान में काम करने वालों को रोशनी चाहिए।