सिलेसियाई बुनकरों का गीत / हाइनरिख़ हाइने Song of the Silesian Weavers / Heinrich Heine
‘एक अभिशाप उस ख़ुदा के लिए जिससे हम रोते रहे
भूख से मरते रहे और जाड़ों में खुले सोते रहे,
उम्मीदें बाँधीं, दुआएँ कीं, पुकारा उसे व्यर्थ ही,
वह हँसा हम पर, उपहास किया, बढ़ाया और दर्द ही।
रहे हम बुन, रहे हम बुन।