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हर साल इस आदमखोर पूँजीवादी व्यवस्था की भेंट चढ़ जाते हैं हज़ारों मासूम

वैसे तो हर साल इस बीमारी की रोकथाम के लिए अस्पतालों को बेहतर बनाने और जर्जर पड़ी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए की घोषणाएँ की जाती है, परन्तु जमीनी स्तर पर हालात में कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। यह भी एक विडंबना है कि सरकार आतंकवाद को इस देश का सबसे बड़ा खतरा बताती है, जबकि असलियत में बम धमाकों से भी ज्यादा लोग डेंगू, मलेरिया, तथा जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों के कारण मारे जाते हैं। अगर सरकार अपने कुल बजट में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को थोड़ा सा भी बढ़ा दे तो भी जनता को निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। परंतु वह ऐसा नही करेंगी, क्योंकि सरकार को ईलाज के अभाव में हर क्षण दम तोड़ रहे बच्चों से ज्यादा पूँजीपतियों के मुनाफे की ज्यादा चिंता हैं।

चुप्पी तोड़ो, आगे आओ! मई दिवस की अलख जगाओ!!

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जब तक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और क़ुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतकश लड़ते रहेंगे। हमारी लड़ाई में कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव तो आये हैं लेकिन इससे पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी का हमारा जज्ब़ा और जोश क़त्तई टूट नहीं सकता। करोड़ों मेहनतकश हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे। इसी संकल्प को लेकर दिल्ली, लुधियाना और गोरखपुर में मज़दूरों के मई दिवस के आयोजनों में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने शिरकत की और इन आयोजनों को क्रान्तिकारी धार और जुझारू तेवर देने में अपनी भूमिका निभायी।

बरगदवा, गोरखपुर का मज़दूर आन्दोलन कुछ ज़रूरी सबक़, कुछ कठिन चुनौतियाँ

आज की वस्तुगत स्थिति यदि मालिकों के पक्ष में है तो कल की वस्तुगत स्थिति निश्चित तौर पर मज़दूरों के पक्ष में होनी है। जो गोरखपुर में हो रहा है, वही पूरे देश के सभी कारखानों में हो रहा है। ठेकाकरण-दिहाड़ीकरण का सिलसिला जारी है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में व्यापक मज़दूर एकता का भौतिक आधार तैयार और मज़बूत होगा, यह तय है। इसके मद्देनज़र हमें अपनी तैयारी तेज़ कर देनी होगी और रत्तीभर भी ढिलाई नहीं करनी होगी।

गोरखपुर के मज़दूरों के समर्थन में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों का प्रदर्शन

27 मई 2011 को श्रमिक संग्राम समिति के बैनर तले कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन, हिन्दुस्तान इंजीनियरिंग एण्ड इण्डस्ट्रीज़ लि. (तिलजला प्लाण्ट), भारत बैटरी, कलकत्ता जूट मिल, सूरा जूट मिल, अमेरिकन रेफ़्रिजरेटर कम्पनी सहित विभिन्न कारख़ानों के तक़रीबन 500 मज़दूरों ने कोलकाता के प्रशासनिक केन्द्र एस्प्लेनेड में विरोध सभा आयोजित की। सभा को सम्बोधित करने वाले अधिकतर वक्ता मज़दूर थे जो अपने-अपने कारख़ानों में संघर्षों का नेतृत्व कर रहे हैं। वक्ताओं ने प्रबन्‍धन, गुण्डों, पुलिस-प्रशासन एवं दलितों की मसीहा कही जाने वाली मायावती के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मज़दूरों पर किये गये बर्बर कृत्यों की कठोर शब्दों में निन्दा की और उनके ख़िलाफ मज़दूरों के प्रतिरोध को अपना समर्थन जताया।

मज़दूर आन्दोलन के दमन और गोरखपुर में श्रम क़ानूनों की स्थिति की जाँच के लिए दिल्ली से गयी तथ्यसंग्रह टीम की रिपोर्ट

दिल्ली से गये मीडियाकर्मियों के एक जाँच दल ने 19 से 21 मई तक गोरखपुर का दौरा करके और विभिन्न पक्षों से बात करने के बाद नई दिल्ली में अपनी जाँच रिपोर्ट जारी की। इस दल में हिन्दुस्तान के वरिष्ठ उपसम्पादक नागार्जुन सिंह, फिल्मकार चारु चन्द्र पाठक और कोलकाता के पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सौरभ बनर्जी शामिल थे। तीन दिनों के दौरान जाँच दल ने विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों, श्रम विभाग, स्थानीय सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, श्रम संगठनों, मीडियाकर्मियों, श्रमिकों, श्रमिक नेताओं और प्रबुद्ध नागरिकों से मुलाक़ात करके इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जाँच की।

दिल्ली में जनसंगठनों ने उत्तर प्रदेश भवन पर प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा

गोरखपुर में मज़दूरों पर फायरिंग की घटना के विरोध में विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन पर धरना दिया और मुख्यमन्त्री के नाम ज्ञापन देकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की माँग की। धरनास्थल पर प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार के घोर निरंकुश एवं मज़दूर विरोधी रवैये के कारण प्रशासन और पुलिस के अधिकारी बेख़ौफ होकर मज़दूरों के दमन-उत्पीड़न में भागीदार बन रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि इस घटना में गोरखपुर ज़िला प्रशासन तथा पुलिस की भूमिका अत्यन्त निन्दनीय है तथा मिलमालिकों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों की साँठगाँठ की ओर इशारा करती है। घटना के दो दिन बीत जाने के बाद भी मिलमालिक और अपराधियों के सरगना को गिरफ़्तार नहीं किया गया है। उल्टे मज़दूर नेताओं को फर्ज़ी मामले में फँसाने तथा मज़दूरों के न्यायसंगत एवं विधिसम्मत आन्दोलन को ”आतंकवादी” सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है।

मालिकान-प्रशासन-पुलिस-राजनेता गँठजोड़ के विरुद्ध गोरखपुर के मज़दूरों के बहादुराना संघर्ष की एक और जीत

मालिकों की तमाम कोशिशों और प्रशासन की धमकियों के बावजूद गोरखपुर से क़रीब 2000 मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की पहली मई की रैली में भाग लेने दिल्ली पहुँच गये। इनमें बरगदवाँ स्थित अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक यार्न मिल के सैकड़ों मज़दूर भी थे। यह वही मिल है जहाँ 2009 में सबसे पहले मज़दूरों ने संगठित होने की शुरुआत की थी। दिल्ली से लौटकर उत्साह से भरपूर मज़दूर 3 मई की सुबह जैसे ही काम पर पहुँचे, उन्हें अंकुर उद्योग के मालिक अशोक जालान की ओर से गोलियों का तोहफा मिला। पहले से बुलाये भाड़े के गुण्डों ने मज़दूरों पर अन्धाधुन्‍ध गोलियाँ चलायीं जिसमें 19 मज़दूर और एक स्कूल छात्रा घायल हो गये। दरअसल यह सब मज़दूरों को ”सबक़ सिखाने” की सुनियोजित योजना के तहत किया गया था। फैक्टरी गेट पर 18 अगुवा मज़दूरों के निलम्बन का नोटिस चस्पाँ था। मालिकान जानते थे कि मज़दूर इसका विरोध करेंगे। उन्हें अच्छी तरह कुचल देने का ठेका सहजनवाँ के कुख्यात अपराधी प्रदीप सिंह के गैंग को दिया गया था।

मज़दूरों के दमन, गिरफ़्तारियों व अवैध तालाबन्दी के विरोध में दूसरी याचिका

हम, अधोहस्ताक्षरी, गोरखपुर के ज़िला प्रशासन और पुलिस तन्त्र द्वारा गोरखपुर के मज़दूर आन्दोलन के दमन की कठोर निन्दा करते हैं। गोरखपुर के मज़दूरों ने गत 16 मई से गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र की अंकुर उद्योग लिमिटेड नामक फ़ैक्टरी के मालिक द्वारा भाड़े के गुण्डों से करवायी गयी फ़ायरिंग में 19 मज़दूरों के घायल होने की घटना के खि़लाफ़ शान्तिपूर्ण ‘मज़दूर सत्याग्रह’ की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने के बजाय ज़िला प्रशासन बेशर्मी के साथ फ़ैक्टरी मालिकों का पक्ष ले रहा है और इस शान्तिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने पर आमादा है।

मज़दूरों पर फ़ायरिंग के विरोध में मुख्यमन्त्री मायावती के नाम भेजी गयी पहली याचिका

गोरखपुर के औद्योगिक मज़दूर नारकीय हालात में काम कर रहे हैं। न्यूनतम मज़दूरी, काम के घण्टे, ओवरटाइम के भुगतान, जॉबकार्ड, पीएफ़, ईएसआई, काम की सुरक्षित परिस्थितियों आदि से सम्बन्धित श्रम क़ानून बस काग़ज़ पर मौजूद हैं। स्थानीय प्रशासन इन क़ानूनों को लागू कराने की अपनी संवैधानिक और क़ानूनी ज़िम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है। दो वर्ष पहले, इस इलाक़े के मज़दूरों ने श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए संगठित आन्दोलन की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने की बजाय, प्रशासन ने उद्योगपतियों की शह पर आन्दोलन को कुचलने का षडयन्त्र शुरू कर दिया। वार्ता के लिए गये मज़दूर नेताओं को पीटा गया और फर्ज़ी मुकदमों में जेल भेज दिया गया। अनेक जनवादी और नागरिक अधिकार संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के आन्दोलन के बाद ही प्रशासन द्वारा नेताओं को रिहा किया गया।

गोरखपुर के मज़दूरों के नाम मुंबई के गोलीबार निवासियों का संदेश

गोलीबार के निवासियों ने जीत के बाद गोरखपुर मजदूर आंदोलन के लिए अपना संदेश भेजा है और अपना समर्थन जाहिर किया है। वहां से इस आंदोलन की एक नेता प्रेरणा गायकवाड़ ने अपने संदेश में कहा है, ”हम तो अपनी लड़ाई जीत गए हैं, अब आपको अपनी लड़ाई जारी रखनी है। आप लड़ाई जारी रखें हम आपके साथ हैं।”
गणेश कृपा सोसायटी के देवान और फ़ैज़ा ने भी गोरखपुर मजदूर आंदोलन के नाम अपने संदेश में कहा है कि ”गणेश कृपा सोसायटी के निवासी गोरखपुर के भ्रष्‍ट अधिकारियों द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की कड़ी निंदा करते हैं और आपके आंदोलन को पूरा समर्थन देते हैं। आप लड़ाई जारी रखिए, जीत आपकी ही होगी।”