मज़दूरों पर फ़ायरिंग के विरोध में मुख्यमन्त्री मायावती के नाम भेजी गयी पहली याचिका
गोरखपुर में मज़दूरों पर फ़ायरिंग के विरोध में सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों द्वारा शुरू की गयी ऑनलाइन याचिका। 460 प्रसिद्ध न्यायविदों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियनकर्मियों, पत्रकारों आदि के हस्ताक्षरों के साथ इसे 9 मई को मुख्यमन्त्री मायावती के पास भेजा गया।
त्वरित कार्रवाई की माँग: गोरखपुर में मज़दूरों पर कारख़ाना मालिक के भाड़े के गुण्डों द्वारा फ़ायरिंग
सेवा में
सुश्री मायावती,
माननीया मुख्यमन्त्री,
उत्तर प्रदेश शासन
हम अधोहस्ताक्षरी, 3 मई को अंकुर उद्योग लि. (गोरखपुर) के मज़दूरों पर कारख़ाना मालिकों के भाड़े के गुण्डों द्वारा अन्धाधुँध फ़ायरिंग की घटना की कड़ी निन्दा करते हैं जिसमें 19 मज़दूर गम्भीर रूप से घायल हो गये। मज़दूर अपने 18 सहकर्मियों के निलम्बन का विरोध कर रहे थे। कारख़ाना मालिक मज़दूरों को “सबक़ सिखाना” चाहते थे क्योंकि उन्होंने दिल्ली में हुई मई दिवस की रैली में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया था जिसमें मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन 2011 के तहत अपने बुनियादी संवैधानिक और क़ानूनी अधिकारों की माँग करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से हज़ारों मज़दूर इकट्ठा हुए थे।
यह घटना पिछले दो वर्षों में गोरखपुर के उद्योगपतियों द्वारा मज़दूरों को अपनी जायज़ माँगों के लिए संगठित होने से रोकने के लिए अपनाये गये हथकण्डों के सिलसिले की ही नयी कड़ी है। लेकिन यह तथ्य आश्चर्यजनक है कि उद्योगपतियों के इन नापाक मंसूबों में स्थानीय राजनीतिक, प्रशासनिक और पुलिस तन्त्र की भी उनके साथ साँठगाँठ है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि फ़ायरिंग के बाद मज़दूरों द्वारा कारख़ाने की घेराबन्दी करने और गोली चलाने वाले अपराधियों को वहीं घेर लेने के बावजूद पुलिस ने मौक़े पर पहुँचने के बाद अपराधियों को निकल जाने दिया। अपराधियों को गिरफ़्तार करने के बजाय मज़दूरों और उनके नेताओं को फ़र्ज़ी मुक़दमों में फँसाने की कोशिश की जा रही है। स्थानीय भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के घोर मज़दूर-विरोधी रवैये ने मज़दूरों के घाव पर नमक रगड़ने का काम किया है। जबसे गोरखपुर के मज़दूरों ने दो वर्ष पहले संगठित आन्दोलन शुरू किया था तभी से आदित्यनाथ उसके विरुद्ध स्थानीय मीडिया में ऐसे आरोप लगाते रहे हैं कि यह आन्दोलन “माओवादियों-आतंकवादियों” द्वारा संचालित है और यह दावा करके मामले को साम्प्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की है कि आन्दोलन “चर्च के पैसे से चल रहा है।”
गोरखपुर के औद्योगिक मज़दूर नारकीय हालात में काम कर रहे हैं। न्यूनतम मज़दूरी, काम के घण्टे, ओवरटाइम के भुगतान, जॉबकार्ड, पीएफ़, ईएसआई, काम की सुरक्षित परिस्थितियों आदि से सम्बन्धित श्रम क़ानून बस काग़ज़ पर मौजूद हैं। स्थानीय प्रशासन इन क़ानूनों को लागू कराने की अपनी संवैधानिक और क़ानूनी ज़िम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है। दो वर्ष पहले, इस इलाक़े के मज़दूरों ने श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए संगठित आन्दोलन की शुरुआत की थी। लेकिन मज़दूरों की जायज़ माँगों पर ध्यान देने की बजाय, प्रशासन ने उद्योगपतियों की शह पर आन्दोलन को कुचलने का षडयन्त्र शुरू कर दिया। वार्ता के लिए गये मज़दूर नेताओं को पीटा गया और फर्ज़ी मुकदमों में जेल भेज दिया गया। अनेक जनवादी और नागरिक अधिकार संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के आन्दोलन के बाद ही प्रशासन द्वारा नेताओं को रिहा किया गया।
इस बार मज़दूरों को केवल इसलिए गोलियों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के तहत दिल्ली में मई दिवस की रैली में भाग लेने के लिए दो दिन की छुट्टी ले ली। मालिकान पहले से ही मज़दूरों को धमका रहे थे कि अगर वे रैली में गये तो उन्हें “सबक सिखाया” जायेगा। मण्डल के आयुक्त ने भी बयान दिया कि मज़दूरों को भड़काने वाले “बाहरी तत्वों” को बख्शा नहीं जायेगा। रैली के बाद जो कुछ हुआ उससे इलाक़े में राजनेता-उद्योगपति-प्रशासन के गँठजोड़ का पूरी तरह पर्दाफ़ाश हो गया है।
गोरखपुर के औद्योगिक परिदृश्य में इस समय स्पष्टतः अराजकता व्याप्त है। मुख्यमन्त्री जी, आपने मीडिया में अक्सर बयान दिये हैं कि आतंकवाद के विरुद्ध दृढ़ संघर्ष किया जायेगा। हम आशा करते हैं कि आतंकवाद की आपकी परिभाषा में गोरखपुर में उद्योगपतियों और प्रशासन द्वारा जारी आतंकराज भी आता होगा। क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए हम माँग करते हैं कि:
- निहत्थे मज़दूरों पर गोली चलाने वाले अपराधियों और उन्हें बुलाने वाले उद्योगपति को गिरफ़्तार कर मुक़दमा चलाया जाये;
- स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत सहित इस पूरे मामले की न्यायिक जाँच करवाई जाये और दोषी अधिकारियों को दण्डित किया जाये;
- मज़दूरों के खि़लाफ़ दर्ज सभी झूठे मुक़दमे तत्काल वापस लिये जायें;
- सभी 18 निलम्बित मज़दूरों को काम पर वापस लिया जाये और दोनों कारख़ाना मालिकों द्वारा अवैध तालाबन्दी समाप्त की जाये।
भवदीय,
अधोहस्ताक्षरी
न्यायमूर्ति राजिन्दर सच्चर, अध्यक्ष, पीयूसीएल; मेधा पाटकर, जनान्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय एवं नर्मदा बचाओ आन्दोलन; डा. बिनायक सेन, उपाध्यक्ष, पीयूसीएल; डा. इलीना सेन, टीचर; गौतम नवलखा, पीयूडीआर; केडी राव, इण्डियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स; एसआर नाग, सचिव, पीयूसीएल, झारखण्ड; रवि किरण जैन, वरिष्ठ वकील, सुप्रीम कोर्ट; पीयूसीएल; आर.के. पाल, वकील, छत्तीसगढ़, पीयूसीएल; हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता; आलोक अग्रवाल, नर्मदा बचाओ आन्दोलन; प्रभात कुमार, भाकपा (माले.लि); चितरंजन सिंह, अध्यक्ष, पीयूसीएल, उत्तर प्रदेश; पंकज बिष्ट, सम्पादक, समयान्तर; मंगलेश डबराल, कार्यकारी सम्पादक, पब्लिक एजेण्डा; कामतानाथ, लेखक; वीरेन्द्र यादव, लेखक; अखिलेश, सम्पादक, तद्भव; अजित साही, संवाददाता; राजीव रुफुस, वकील, सुप्रीम कोर्ट; आलोक श्रीवास्तव, एडवोकेट ऑन रिकार्ड, सुप्रीम कोर्ट; हर्ष कपूर, साउथ एशिया सिटीजंस वेब, ब्रिटेन; डेबी ब्रेन्नन, रैडिकल विमेन, ऑस्ट्रेलिया, आग्नेय सायल, अधिवक्ता, दिल्ली; एण्डे ओ’कैलाहन, लेफ्ट पार्टी, जर्मनी; गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, जनवादी लेखक संघ; मोहिनी मांगलिक, अध्यक्ष, साझी दुनिया; शोभा सिंह, एडवा; अजय सिंह, जन संस्कृति मंच; एस.आर. दारापुरी (सेवानिवृत्त आईपीएस); शैलेन्द्र सागर, सम्पादक, कथाक्रम; अपर्णा, सचिव, दिल्ली समिति सीपीआई (एमएल) न्यू डेमोक्रेसी; वन्दना मिश्रा (उत्तर प्रदेश) पीयूसीएल; अमलेन्दु उपाध्याय, हस्तक्षेपडॉटकॉम; शाह आलम, जेयूसीएस; अवनीश राय, जेयूसीएस; नदीम अंसारी, शाहनवाज आलम, पीयूसीएल; परमजीत, पीयूडीआर; उज्ज्वल, पीयूडीआर; एनडी पंचोली, पीयूसीएल; शिवाकान्त गोरखपुरी, पीयूसीएल; विद्या भूषण रावत, सामाजिक कार्यकर्ता; अनिल चमड़िया, पत्रकार, प्रोफ़ेसर ए.के. मलेरी, ऑपरेशन ग्रीन हण्ट के खि़लाफ़ डेमोक्रेटिक फ्रण्ट (पंजाब); विरा साथीदार, रिपब्लिकन पैन्थर्स; अनुराग मोदी, श्रमिक आदिवासी संगठन; नीलांजन दत्ता, एपीडीआर; राजविन्दर, टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन, लुधियाना; लखविन्दर, कारख़ाना मज़दूर यूनियन, लुधियाना; डा. जेपी चतुर्वेदी, प्रतुल जोशी, ऑल इण्डिया रेडियो, चन्द्रेश्वर, कवि; रामबाबू, कलाकार; प्रसेन सिंह, विजय कुमार, अनिरुद्ध, रमाशंकर, जागरूक नागरिक मंच, इलाहाबाद; मनोज कुमार सिंह, जन संस्कृति मंच, गोरखपुर पि़फ़ल्म सोसायटी; जमीर; राजीव लोचन साह, सम्पादक, नैनीताल समाचार; इलियट आइजनबर्ग; जॉन वुड; राजर्षि चक्रवर्ती; छिन्दरपाल; अमृतपाल; महामाया; भूपिन्दर सिंह, सीटीयू वर्कर्स यूनियन, चण्डीगढ़; गौरव बन्सल, महिन्द्रा सत्यम; रंजीत सिंह, चण्डीगढ़; राम रतन, मोहाली; सैमुअल जॉन, पीपुल्स थिएटर, चण्डीगढ़; नमिता, दिशा छात्र संगठन, चण्डीगढ़; कमल, नौजवान भारत सभा, चण्डीगढ़; राजिन्दर, पंजाब युनिवर्सिटी, चण्डीगढ़; आशुतोष सिंह; जेस्सी नुटसन, अमेरिका; लुसी कॉक्स, अमेरिका; विनय भट्ट, जोया जॉन, शोधकर्ता; देवव्रत बनर्जी, कोलकाता; आशुतोष प्रताप सिंह; मीनाक्षी; हरजिन्दर सिंह; शुभदीप कुमार, हैदराबाद विश्वविद्यालय; मुन्ना कुमार पाण्डे, दिल्ली विश्वविद्यालय; प्रेम प्रकाश, सतीश कुमार; चन्द्रशेखरन नायर, मुम्बई; अनिर्वाण कर, ईश मिश्रा, जनहस्तक्षेप; भूमिका चौहान, छात्र, दिल्ली; पी. विजयन; ज्ञानेंद्र ओझा; ऐनी स्लेटर, रैडिकल विमेन, अमेरिका; शालिनी, जनचेतना; तर्कवागीश; अनुराग ठाकुर; नीरज जैन; विनय, जेएनयू; अशोक कुमार राणा; सूर्य प्रकाश, क्रालोस; मयंक दीक्षित; पीयूष; समय; नेहा, स्त्री मज़दूर संगठन; सनी सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय; सी.एल. गुप्ता, स्वतन्त्र मिश्र; विशाल वातवानी; पाली राज, शाकम्भरी, स्त्री मुक्ति लीग; लाल बहादुर; राजीव कुमार; दधीचि पटेल; अशोक पाण्डे, हल्द्वानी; राज कुमार, गुड़गाँव; किरण त्रिवेदी; सुमित सैनी; शाहनवाज मलिक; अंकित कुमार वार्ष्णेय, अभिषेक श्रीवास्तव, पत्रकार; नवीन प्रकाश; प्रवीण त्रिवेदी; पृथ्वी; शिवार्थ पाण्डे, दिशा छात्र संगठन, लखनऊ; अरुण कुमार; गौरव सोलंकी, संवाददाता, दिल्ली; विमला सक्करवाल; जितेंद्र; कात्यायनी, राहुल फाउण्डेशन; चन्द्रशेखर चौबे; विभा सिंह, मुम्बई; वेद प्रकाश सिंह; विजय प्रकाश सिंह, संपादक, लोक सुरभि; प्रभाकर पाण्डेय, कामता प्रसाद; भूपेन सिंह, पत्रकार; अभिषेक श्रीवास्तव; मनोज पटेल; प्रशान्त; जय पुष्प; माधोदास; क्रिस्टीन टिकनर; आशुतोष कुमार; रवि भूषण पाठक; अखिलेश प्रताप सिंह; सुयश सुप्रभ; आलोक कौशिक; डा. प्यारे मोहन शर्मा, पटियाला; रोहित; सौरव बनर्जी; आनन्द सिंह, पुणे; सत्यम, राहुल फ़ाउण्डेशन; सन्दीप, पत्रकार; बिमल राय, चौथी दुनिया; रमेश शर्मा; पुनीत; इंद्रसेन वर्मा; दीपक; विभास कुमार; चंदन सिंह; निहार भारद्वाज; अवनीश सिंह, निदेशक, सार्थक सिविल एकेडेमी, इलाहाबाद; रवि भारद्वाज; ममता साहनी; ममता, व्यवसायी; उस्मान; प्रणव प्रियदर्शी; डा. हर्बर्ट पिमलॉट, विल्प्फ़ेड युनिवर्सिटी फ़ैकल्टी एसोसिएशन, कनाडा; आर चेतनक्रान्ति; जीत बहादुर, अधिवक्ता उच्च न्यायालय, इलाहाबाद; केके राय, वरिष्ठ एडवोकेट उच्च न्यायालय, इलाहाबाद; ताराचंद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय; प्रदीप वर्मा; हरिकेश; विजय सिंह, फ़ोरम फ़ॉर डेमोक्रेटिक स्ट्रगल; राम गौतम, मुम्बई; सफवान आमिर, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स; भाषा सिंह, जन संस्कृति मंच; मुकुल सरल, जन संस्कृति मंच; मनीषा श्रीवास्तव, नोएडा; प्रमोद कुमार; डा. सुधीर सक्सेना, दुनिया इन दिनों; पूर्वी; नितिन कुलश्रेष्ठ; सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, नीपा रंगमण्डली, लखनऊ; उपेन्द्र स्वामी; धीरज कुमार; पीटर एगलिन, विल्प्फ़ेड युनिवर्सिटी फ़ैकल्टी एसोसिएशन, कनाडा; आलोक अग्रवाल, नर्मदा बचाओ आन्दोलन; विमला, स्त्री मज़दूर संगठन; एन.के. जीत, लोक मोर्चा पंजाब; जावेद इनायत; हरीश, लुधियाना; इन्दर; अवतार; संजीव, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़; हरप्रीत, रैशनलिस्ट सोसायटी, पंजाब; बलकार सिद्धू, पंजाबी लेखक सभा, चण्डीगढ़; राहुल दारापुरी, जसवन्त मोहाली, पंजाबी लेखक; संजय, एडवोकेट, हाईकोर्ट, चण्डीगढ़; वकास जहीर, आरलेट्टा मरे; प्रशान्त कुमार, एनईआईटी, ग्रेटर नोएडा; सुनील शर्मा, अनिल शर्मा, राजीव तिवारी, प्रीति सोनी, अनन्त मिश्रा, रामचन्द्र भाटिया, हिन्दुस्तान; सुशील दोशी, जनसन्देश टाइम्स; खजान सिंह, अध्यापक; उग्रनाथ नागरिक; निहाल सिंह; जी.के. चक्रवर्ती; उत्कर्ष सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता; पारसनाथ विश्वकर्मा; किरण शाहीन, मीडिया कार्य समूह; महिपाल सिंह, पीयूसीएल; सिद्धार्थ नारायण, आल्टरनेटिव लॉ फ़ोरम; बबलू लोइतोन, ह्यूमन राइट्स एलर्ट; टी. संजीव; डा. मीसा शिवा; सुनील कुमार, पत्रकार; पास्कल तिर्की, इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट; मदन मोहन बैरवा, पीयूसीएल; अनिल शर्मा, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रण्ट ऑफ़ इण्डिया; विपिन कुमार राय, शहरी अधिकार मंच; सुब्रत डे, एक्शन एड भारत; एम.पी. दुबे, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क; उमेश चन्द्र, जी.पी.एफ.एन.; प्रोफ़ेसर वाई.के. रंजन, भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ राष्ट्रीय अभियान; रमाकान्त शोल्डा, गोण्डा शान्ति परिषद; सुभाष गौतम, समयान्तर; शारिक नकवी, डीडी कश्मीर; शिखा, छात्र; जोशना, क्रिटिकल क्वेस्ट; बिलाल, अहमदाबाद; शिव दास, दैनिक जागरण, दिल्ली; आर दुबे, पीयूसीएल; बाबूलाल शर्मा, जीसीसी; एस.एम. जकी अहमद, हेजार्ड्स सेण्टर; राजेश जौहर; नेमिचन्द, पीयूसीएल; विजय अग्रवाल, लेखक; पीबी दीवान, एडवोकेट; शाहीन नजर, पीयूसीएल; सुनील प्रभाकर, यूथ फ़ोर जस्टिस; 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