गोरखपुर के मज़दूरों के समर्थन में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों का प्रदर्शन
मानब विश्वास
कोलकाता। गोरखपुर के अंकुर उद्योग एवं वी.एन. डायर्स कारख़ानों के मज़दूरों पर प्रबन्धन द्वारा भाड़े के गुण्डों एवं पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से लगातार किये जाने वाले बर्बर हमलों के विरोध में पश्चिम बंगाल के औद्योगिक मज़दूरों ने भी आवाज़ उठायी। अंकुर उद्योग एवं वी.एन. डायर्स की घटनाओं के बारे में मज़दूरों को अवगत कराने के लिये श्रमिक संग्राम समिति की ओर से बड़े पैमाने पर पोस्टर और पर्चे तैयार किये गये जिनमें इन दो कम्पनियों के संघर्षरत मज़दूरों पर होने वाले हमलों के विरोध में अपनी आवाज़ उठाने का आह्वान किया गया।
27 मई 2011 को श्रमिक संग्राम समिति के बैनर तले कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन, हिन्दुस्तान इंजीनियरिंग एण्ड इण्डस्ट्रीज़ लि. (तिलजला प्लाण्ट), भारत बैटरी, कलकत्ता जूट मिल, सूरा जूट मिल, अमेरिकन रेफ़्रिजरेटर कम्पनी सहित विभिन्न कारख़ानों के तक़रीबन 500 मज़दूरों ने कोलकाता के प्रशासनिक केन्द्र एस्प्लेनेड में विरोध सभा आयोजित की। सभा को सम्बोधित करने वाले अधिकतर वक्ता मज़दूर थे जो अपने-अपने कारख़ानों में संघर्षों का नेतृत्व कर रहे हैं। वक्ताओं ने प्रबन्धन, गुण्डों, पुलिस-प्रशासन एवं दलितों की मसीहा कही जाने वाली मायावती के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मज़दूरों पर किये गये बर्बर कृत्यों की कठोर शब्दों में निन्दा की और उनके ख़िलाफ मज़दूरों के प्रतिरोध को अपना समर्थन जताया।
सभा में वक्ताओं ने निम्न बिन्दुओं पर बात की
1. भूमण्डलीकरण और उदारीकरण के इस दौर में पूँजीपति वर्ग ने भारत के मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ खुली जंग छेड़ दी है और मौजूदा श्रम क़ानूनों के उल्लंघन एवं मज़दूरों के हको-हुकूक में कटौती करने की खुली छूट दे दी है।
2. कांग्रेस, भाजपा, माकपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा सहित सभी चुनावी पार्टियाँ अपनी सरकारों (जहाँ कहीं वह सरकार में हैं) और ट्रेड यूनियनों द्वारा पूँजीपति वर्ग को ये हमले करने में मदद कर रही हैं क्योंकि वस्तुत: ये सभी भूमण्डलीकरण की नीतियों के पक्ष में हैं।
3. ऐसे में जहाँ कहीं भी मज़दूर पूँजीपतियों के हमलों के ख़िलाफ संघर्ष का रास्ता चुनते हैं उन्हें अपने अनुभव से इस बात का एहसास हो जाता है कि भूमण्डलीकरण की नीतियों के हमलों का जवाब देने के लिए उनके पास परम्परागत पार्टियों और उनके द्वारा नियन्त्रित ट्रेड यूनियनों से विच्छेद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। संघर्ष को एक नये सिरे से संगठित करने के लिए यह विच्छेद केवल सांगठनिक स्तर पर नहीं बल्कि संघर्ष के तौर-तरीक़े एवं वैचारिक प्रक्रिया के स्तर पर भी ज़रूरी है।
4. इन नेतृत्वकारी मज़दूरों ने अपने भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि संघर्ष को छेड़ने के लिए मात्र नये संगठन बनाना ही काफी नहीं है बल्कि इन नये संगठनों पर पूँजीपति वर्ग का क़ब्ज़ा फिर से न होने पाये इसके लिए इन संगठनों पर संघर्षरत मज़दूरों का पूरा नियन्त्रण होना एक पूर्वशर्त है।
5. वक्ताओं ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से ये अभिलाक्षणिकताएँ मज़दूर वर्ग के आन्दोलन में एक नयी परिघटना के रूप में सामने आयी हैं जैसा कि देशभर में कारख़ाना आधारित संघर्षों में देखने में आया है। वक्ताओं का कहना था कि गोरखपुर में जो कुछ भी हो रहा है वह इसी परिघटना की अभिव्यक्ति है। हालाँकि यह परिघटना अभी अपने भ्रूण रूप में है, लेकिन शासक वर्ग इसे इसी चरण में ही कुचल देना चाहता है, गोरखपुर के संघर्षरत मज़दूरों पर हमले इसीलिए हो रहे हैं।
इन हालात में इस विरोध सभा के वक्ताओं ने इन संघर्षों के नेतृत्वकारी मज़दूरों का देश के स्तर पर एक मंच बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे कि वे ख़ुद ही इन संघर्षों के दौरान पैदा होने वाली समस्याओं से निपट सकें और संयुक्त कार्रवाइयों द्वारा शासक वर्ग के हमलों का जवाब दे सकें और वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ायें।
सभा को सम्बोधित करने वालों में कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अख़बार ‘श्रमिक इश्तेहार’ के कार्यकारी सम्पादक तुषार भट्टाचार्य एवं गाजियाबाद से प्रकाशित होने वाले पाक्षिक ‘हमारी सोच’ के सम्पादक शुभाशीष डी. शर्मा भी थे।
इस सभा के दौरान एक तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम.के. नारायणन से मिला और अंकुर उद्योग एवं वी.एन. डायर्स के मज़दूरों के संघर्ष के समर्थन में उन्हें एक ज्ञापन दिया।
मज़दूर बिगुल, मई-जून 2011
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन