मज़दूर आन्दोलन के दमन और गोरखपुर में श्रम क़ानूनों की स्थिति की जाँच के लिए दिल्ली से गयी तथ्यसंग्रह टीम की रिपोर्ट
दिल्ली से गये मीडियाकर्मियों के एक जाँच दल ने 19 से 21 मई तक गोरखपुर का दौरा करके और विभिन्न पक्षों से बात करने के बाद नई दिल्ली में अपनी जाँच रिपोर्ट जारी की। इस दल में हिन्दुस्तान के वरिष्ठ उपसम्पादक नागार्जुन सिंह, फिल्मकार चारु चन्द्र पाठक और कोलकाता के पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सौरभ बनर्जी शामिल थे। तीन दिनों के दौरान जाँच दल ने विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों, श्रम विभाग, स्थानीय सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, श्रम संगठनों, मीडियाकर्मियों, श्रमिकों, श्रमिक नेताओं और प्रबुद्ध नागरिकों से मुलाक़ात करके इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जाँच की।
जाँच दल की रिपोर्ट के अनुसार फायरिंग की घटना का तात्कालिक कारण यह था कि कई कारख़ानों के क़रीब 1500 मज़दूर 1 मई को आयोजित मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की रैली में शामिल होने के लिए दिल्ली चले गये थे जबकि कारख़ाना मालिकान इसका विरोध कर रहे थे। दिल्ली से लौटने पर 18 चुनिन्दा श्रमिकों को निलम्बित कर दिया गया। 3 मई को हथियारबन्द लोग जब श्रमिक नेता प्रशान्त को ज़बरदस्ती फैक्टरी के अन्दर ले जाने का प्रयास कर रहे थे तब श्रमिक आक्रोशित हुए और इसके विरोध तथा अपने बचाव में उन्होंने पथराव किया। इसके बाद फैक्टरी के अन्दर से हुई फायरिंग में 19 मज़दूर और एक छात्रा घायल हो गये।
जाँच टीम इस निष्कर्ष पर पहुँची कि 3 मई को हुई फायरिंग एक अलग-थलग घटना नहीं बल्कि गोरखपुर में दो वर्ष से मालिकों और मज़दूरों के बीच में चल रहे टकराव की ही परिणति है। पिछले लगभग दो वर्ष से मज़दूर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं जो अब संगठित रूप ले चुका है। यह फैक्टरी प्रबन्धन के लिए चिन्ता का सबब बन चुका है। श्रमिकों के प्रति प्रशासनिक दृष्टिकोण भी सहयोगात्मक नहीं है। जाँच में यह बात मुख्य रूप से उभरकर आयी कि श्रमिकों का पक्ष पूरी तरह नहीं सुना जा रहा है और प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा और बल प्रयोग से बात और बिगड़ रही है।
जाँच टीम ने अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश शासन से माँग की है कि अंकुर उद्योग लिमिटेड में हुई फायरिंग की उच्च स्तरीय जाँच करायी जानी चाहिए। टीम कमिश्नर द्वारा मजिस्ट्रेट जाँच के आदेश को असंगत मानती है क्योंकि पूरे प्रकरण में प्रशासनिक भूमिका सन्देह के दायरे में है। टीम की अन्य संस्तुतियों में फायरिंग के दोषी व्यक्तियों की गिरफ्तारी, श्रमिकों तथा उनके नेतृत्व से सौहार्दपूर्ण माहौल में वार्ता करके उनकी समस्याओं का समाधान करना, गोरखपुर औद्योगिक क्षेत्र की फैक्टरियों में श्रम क़ानूनों की वास्तविक तस्वीर सामने लाना और इनमें श्रम क़ानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित कराना, पुलिस की भूमिका की जाँच कराना और गोलीकाण्ड में घायल लोगों को सरकार द्वारा उचित मुआवज़ा दिया जाना शामिल है।
पूरी रिपोर्ट इस वेबसाइट पर देखी जा सकती है :
मज़दूर बिगुल, मई-जून 2011
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