Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

बांगलादेश के गारमेण्ट मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

बांगलादेशी मज़दूरों का भयंकर शोषण और उत्पीड़न जारी है। अपने वेतन के लिए तीन माह से संघर्ष कर रहे मज़दूरों को न भूख की परवाह है न ही पुलिस दमन की। पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण बहुत से मज़दूर कमजोर हो गए हैं, कई ने बिस्तर पकड़ लिया है और तमाम अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन आन्दोलन का जोश बरकरार है। पिछले दो सप्ताह के दौरान हड़ताल के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस, सरकार और मालिकों के गुण्डों ने कई बार हमले किए और कुछ ही दिन पहले कब्जा की गयी फैक्ट्रियों में जबरन घुसकर यूनियन पदाधिकारियों को बेरहमी से पिटाई के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। तुबा समूह के हड़ताली मज़दूरों का भयंकर उत्पीड़न और फैक्ट्री मालिकों और सरकार की बेरुखी के कारण स्थिति भयानक होती जा रही है। मज़दूर पिछले दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। तुबा समूह का मालिक वही शख्स है जो ताजरीन फैक्ट्री का मालिक रह चुका है। ताजरीन फैक्ट्री में अग्निकांड के एक साल बाद फैक्ट्री मालिक की गिरफ्तारी हुई थी और अब उसने हड़ताल का फायदा उठाकर जमानत भी प्राप्त कर ली है।

इलाक़ाई एकता ही आज की ज़रूरत है!

यह बात तो जगजाहिर है कि आज सभी कम्पनियों मे मज़दूरों को ठेकेदार के माध्यम से, पीसरेट, कैजुअल व दिहाड़ी पर काम पर रखा जाता है। मज़दूरों को टुकड़ो मे बाँटने के लिए आज पूरा मालिक वर्ग सचेतन प्रयासरत है। ऐसी विकट परिस्थतियों मे भी आज तमाम मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ता या मज़दूर वर्ग से गद्दारी कर चुकीं ट्रेड यूनियनें उसी पुरानी लकीर को पीट रहे हैं कि मज़दूर एक फैक्ट्री मे संघर्ष के दम पर जीत जाऐगा। बल्कि आज तमाम फैक्ट्रियों मे जुझारू आन्दोलनों के बाबजूद भी मज़दूरों को जीत हासिल नहीं हो पायी। क्योंकि इन सभी फैक्ट्रियों मे मज़दूर सिर्फ एक फैक्ट्री की एकजुटता के दम पर संघर्ष जीतना चाहते थे। दूसरा इन तमाम गद्दार ट्रेड यूनियनों की दलाली व मज़दूरों की मालिक भक्ति भी मज़दूरों की हार का कारण है। वो तमाम फैक्ट्रियाँ जिनमे संघर्ष हारे गये – रिको, बजाज, हीरो, मारूति, वैक्टर आदि-आदि।

जय भारत मारुती कम्पनी में मज़दूरों के काम के भयंकर हालात!

यह कम्पनी किसी भी मज़दूर को कम्पनी के तहत नही भर्ती करती है। सड़क से मज़दूरों को पकड़कर काम करवाने के लिए इस कम्पनी ने 12 ठेकेदार रख रखे हैं। जिसके माध्यम से मज़दूरों को भर्ती होना होता है। मशीनों के माध्यम से बहुत ही कठिन व उन्नत टेक्नोलोजी के काम को भी टुकड़ों मे बाँटकर एकदम इतना आसान बना दिया है कि किसी भी मशीन को 10-12 साल का बच्चा भी चला लेगा जैसे-लर्निंग मशीन, सी.एन.सी. मशीन, पंचिग मशीन, ड्रिल मशीन, मिग वेल्ड़िग मशीन, पावर प्रेस मशीन आदि-आदि सभी मशीनें इतनी आसान बना दी हैं। कि उन मशीनों में पीस रखकर सिर्फ एक बटन दबाना होता है।

कम्पनी न्यूनतम मज़दूरी नहीं देगी, मगर कम खर्च में बजट बनाकर जीने की “ट्रेनिंग” ज़रूर दिलवा देगी

‘जितना मिले उसमें ही खुश रहो’ जी हाँ यह राय है, ‘मैट्रिक्स क्लोथिंग प्रा.लि.’ कम्पनी की जो खाण्डसा रोड़ मोहम्मदपुर गाँव, गुड़गांव में स्थित है। इस कम्पनी के मालिक का नाम ‘गौतम नायर’ है। एक दिन शाम 3 बजे से कम्पनी के पर्सनल विभाग की तरफ से एक अभियान लिया गया कि कम्पनी के सभी मजदूरों को यह बताना है कि बचत कैसे होती है। इस अभियान मे पर्सनल विभाग के 5 लोगों का पूरा एक दस्ता चल रहा था। यह दस्ता चार मंजिला कम्पनी के चारो डिपार्ट मे (एक डिपार्ट मे सिलाई की कम से कम 8 लाइन और हर लाइन मे कम से कम 25 मजदूर) बाकायदा 10 मिनट के लिए एक लाइन को बन्द कराया जाता जिसमे एक लाइन के सभी मजदूरों को एक जगह इकट्ठा कर भाषण में यह बताया जाता है कि आपकी तनख्वा पी.एफ., ई.एस.आई. काटकर लगभग 4700 रु है और इतनी महँगाई मे 4700 रु मे खर्च चलाना मुश्किल पड़ता है। मगर आप लोग अगर अपना बजट बनाकर खर्च करें तो आप इस तनख्वा मे भी बचत कर सकते है। और उस बचत से आप एक दिन गाड़ी, प्लाट, घर खरीद सकते हैं।

मज़दूरों को दूसरों के भरोसे रहना छोड़कर ख़ुद पर भरोसा करना होगा!

हमें एक ऐसी ताकत बनानी होगी कि लूटेरे हमें जात-धर्म के नाम पर बाँट ही ना पाये। इसी तरह जब पल्लेदार के साथ कोई समस्या हो तो सेल्स मैन उनके साथ आये। जब भी किसी मज़दूर के साथ कोई भी परेशानी हो तो हम सबकी नींद हराम हो जाये। हमें जागना ही होगा-अपने हक़ के लिए, अपने अधिकार के लिए। हमारा धर्म है कि हम मेहनतकशों की जारी लूट के खिलाफ़ एकजुट होकर लड़े। दोस्तों, मेहनतकश साथियों हमारे लिए कोई लड़ने नहीं आने वाला चाहे वो ‘आम आदमी पार्टी’ हो अन्ना हजारे या नरेन्द्र मोदी। दोस्तो हम मज़दूरों को ही अब अपने कदम बढ़ाने होंगे।

कारख़ाना मालिक द्वारा एक मज़दूर की बर्बर पिटाई के खि़लाफ़ लुधियाना के दो दर्जन से अधिक कारख़ानों के सैकड़ों पावरलूम मज़दूरों ने लड़ी पाँच दिन लम्बी जुझारू विजयी हड़ताल

टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में मेहरबान, लुधियाना के दो दर्जन से अधिक पावरलूम कारख़ानों में सैकड़ों मज़दूरों ने एक जुझारू हड़ताल कामयाबी के साथ लड़ी है। 14 जुलाई की शाम से शुरू हुई और 19 जुलाई की दोपहर तक जारी रही यह हड़ताल वेतन वृद्धि, फ़ण्ड, बोनस जैसी आर्थिक माँगों पर नहीं थी बल्कि एक पावरलूम मज़दूर चन्द्रशेखर को मोदी वूलन मिल्ज़ के मालिक जगदीश गुप्ता द्वारा बुरी तरह पीटे जाने के खि़लाफ़ और मालिक के खि़लाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करवाने की माँग पर लड़ी गयी थी।

वज़ीरपुर के गरम रोला मज़दूरों का ऐतिहासिक आन्दोलन

वज़ीपुर मज़दूर आन्दोलन के दौरान गरम रोला मज़दूरों ने राज्यसत्ता के इस पूरे चरित्र को भी एक हद तक समझा है। चाहे वह श्रम विभाग हो, पुलिस हो, या अदालतें हों, मज़दूर यह समझ रहे हैं कि पूरी राज्यसत्ता की वास्तविक पक्षधरता क्या है, उसका वर्ग चरित्र क्या है और मज़दूर आन्दोलन केवल क़ानूनी सीमाओं के भीतर रहते हुए ज़्यादा कुछ हासिल नहीं कर सकता है। आन्दोलन के पूरे होने पर हम एक और विस्तृत रपट ‘मज़दूर बिगुल’ में पेश करेंगे और आन्दोलन की सकारात्मक और नकारात्मक शिक्षाओं पर विस्तार से अपनी बात रखेंगे। अभी आन्दोलन जारी है और हम उम्मीद करते हैं कि यह आन्दोलन अपने मुकाम तक पहुँचेगा।

पूँजीपतियों को श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाने की और भी बड़े स्तर पर खुली छूट

पूँजीवादी लेखकों से इसके पक्ष में लेख लिखवाकर श्रम अधिकारों को क़ानूनी तौर पर ख़त्म करने का माहौल बनाया जा रहा है। इसका एक उदाहरण है झुनझुनवाला का 8-7-14 को दैनिक जागरण में छपा लेख। वह लिखता है कि श्रम क़ानूनों का ढीला करने से रोज़गार बढ़ेंगे, मज़दूरों का भला होगा। वह कहता है कि मनरेगा योजना भी ख़त्म कर दी जानी चाहिए और इस पर सरकार के सालाना ख़र्च होने वाले चालीस करोड़ रुपये पूँजीपतियों को सब्सिडी के रूप में देने चाहिए। उसके हिसाब से इस तरीके से रोज़गार बढ़ेगा। वह मोदी सरकार को कहता है कि राजस्थान की तरज पर तेज़ी से श्रम क़ानूनों में बदलाव किया जाये। झुनझुनवाला की ये बातें पूरी तरह मुनाफ़ाख़ोरों का हित साधने के लिए हैं। मज़दूर हित की बातें तो महज़ दिखावा है।

गरम रोला कारखाने के मज़दूरों का जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन

आज वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के गरम रोला कारखाने के मज़दूरों ने जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन किया। जन्तर-मन्तर से संसद मार्ग तक 500 की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और श्रम मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना ज्ञापन सौंपा। ज्ञात हो कि पिछले बीस दिनों से गरम रोला कारखाने के मज़दूर गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में अपनी माँगों को लेकर हड़ताल पर हैं। गरम रोला एकता समिति के रघुराज ने बताया कि वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में सरेआम श्रम कानूनों का उल्लंघन होता है। लेबर कोर्ट पास में ही नीमड़ी काॅलोनी में है लेकिन ठीक उनकी नाक के नीचे मज़दूरों का शोषण बदस्तूर जारी है। इसलिए मज़दूर इन कारखानों में श्रम कानूनों को लागू करवाने की अपनी माँग को लेकर हड़ताल पर हैं। वजीरपुर का यह वही औद्योगिक क्षेत्र है जहाँ लोहे को पिघला कर स्टेनलेस स्टील बनायी जाती है। बेहद खतरनाक और जोखिम भरे माहौल में मज़दूरों को बारह से चौदह घण्टे खटना पड़ता है। यहाँ न तो कोई न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है और न ही किसी तरह की कोई सुरक्षा है। आए दिन दुर्घटनायें होती रहती हैं।

मिंडा फ़रूकवा इलेक्ट्रिक कम्पनी में मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

पूरे बावल क्षेत्र में पिछले 2 माह से अलग-अलग फ़ैक्टरियों के मज़दूर यूनियन बनाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे है चाहे वे एहरेस्टी के मज़दूरों हो या पास्को के। इसलिए ये बात साफ़ है कि आज पूरे गुड़गांव-मानेसर-धारुहेड़ा-बावल में मज़दूरों की कुछ साझा मांग बनाती है जैसे यूनियन बनाने की मांग, ठेका प्रथा खत्म करने की मांग या जबरन ओवरटाईम खत्म करने की मांग। ये सभी हमारी साझा मांगें है इसलिए इनके खिलाफ़ भी हमें साझा संघर्ष करना होगा क्योंकि हम सभी मज़दूर जानते है मालिकों-सरकार-पुलिस-प्रशासन गठजोड़ एकजुट होकर मज़दूरों के खिलाफ़ है और इनके खिलाफ़ सिर्फ़ एक फ़ैक्टरी के आधार पर नहीं जीता जा सकता है बल्कि पूरे आटो सेक्टर या पूरे इलाके के मज़दूरों की फ़ौलादी एकता कायम करके ही मज़दूर विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जबाव दिया जा सकता है। इसलिए हमें अपने फ़ैक्टरी संघर्ष के साथ ही पूरे आटो सेक्टर के मज़दूरों की एकता कायम करने की लम्बी लड़ाई में जुटाना होगा।