Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

हज़ारों मज़दूरों ने निकाली विशाल रैली, तोड़-फोड़ करने वाले तत्वों को खदेड़ा, और की सामुदायिक रसोई की शुरुआत की घोषणा

आज दिनांक 20 जून 2014 को, गरम रोला मजदूर एकता समिति के नेतृत्‍व में जारी हड़ताल के 15वें दिन करीब 3 हज़ार मजदूरों ने श्रीराम चौक पर सुबह 9 बजे इकट्ठा होकर पूरे वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में रैली निकाल कर अपनी एकजुटता और जुझारूपन का परिचय दिया| रैली में लगभग 3000 मज़दूरों ने भाग लिया| इनमें गरम रोला एवं ठंडा रोला में काम करने वाले मज़दूर, तपाई का काम करने वाले मज़दूर और तेजाब का काम करने वाले सभी मज़दूर शामिल थे| इसके बाद, प्रत्येक दिन की भांति सभी मजदूर वजीरपुर के राजा पार्क में आगे की सभा चलाने के लिए एकत्रित हुए जहाँ हड़ताल में शामिल सभी मज़दूरों ने अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने का दृढ़ निश्चय लिया|

वज़ीरपुर स्टील उद्योग के गरम रोला के मज़दूर फि़र से जुझारू संघर्ष की राह पर

इस हड़ताल का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि 26 फ़ैक्टरियों के मज़दूरों ने हर कारख़ाने की कमेटी बनाकर इस हड़ताल का संचालन किया, जो ट्रेडयूनियन जनवाद की मिसाल है। यह हमारी इस लड़ाई का सकारात्मक पहलू है। अब गरम रोला मज़दूरों को इन सकारात्मक अनुभवों को आगे बढ़ाते हुए क्या करना होगा? बिगुल मज़दूर दस्ता का यह मानना है कि गरम रोला मज़दूर एकता समिति को अपने संघर्ष को गरम रोला के साथ ही स्टील लाइन से जुड़े तमाम अन्य पेशों जैसे ठण्डा रोला, सर्किल, तेज़ाब, तैयारी, फुडाई और पैकिंग व वज़ीरपुर इलाक़े की सभी फ़ैक्टरियों के मज़दूरों के साथ जोड़ना होगा। 700 कारख़ानों में मज़दूरों की ज़्यादातर माँगें समान हैं। वज़ीरपुर इलाक़े के मज़दूर उधम सिंह पार्क, शालीमार बाग़ व सुखदेव नगर की झोपड़पट्टियों में रहते हैं और यहाँ मज़दूरों की आवास, पानी व अन्य साझा माँगें भी बनती हैं। इसलिए गरम रोला के संघर्ष को और भी जीवन्त तरीक़े से अन्य पेशों के मज़दूरों के साथ जोड़ने की ज़रूरत है।

बैक्सटर मेडिसिन कम्पनी में यूनियन बनाने के लिए मज़दूरों का संघर्ष!

गुड़गाँव के आईएमटी मानसेर में दवा कम्पनी बैक्सटर मेडिसिन ने 27 मई 2014 को बिना किसी पूर्व सूचना के ‘ए’ शिफ्ट में ड्यूटी पर आये मज़दूरों में से 17 नेतृत्वकारी मज़दूरों को निलम्बन का पत्र पकड़ा दिया। कम्पनी की तानाशाही के खि़लाफ़ मज़दूरों ने संघर्ष का रास्ता चुना और अपने बाहर निकाले गये साथियों की बहाली के लिए एकजुट होकर प्रशासन के दरवाज़े पर दस्तक दी।

नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं निर्माण उद्योग में काम करने वाले मज़दूर

इस क्षेत्र में काम करने वाली मज़दूर आबादी ठेके पर बेहद कम मज़दूरी पर तथा बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के अमानवीय जीवन जीने को मजबूर है। कार्यस्थल पर सुरक्षा के पुख्ता इन्तज़ाम न होने के कारण हर दिन मज़दूरों के साथ कोई न कोई दुर्घटना होती रहती है, जिनमें कई बार उन्हें अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ता है। इसके अलावा हर समय धूल-भरे वातावरण में काम करने के कारण, आवश्यक सुरक्षा उपकरणों के अभाव, और आस-पास फैली गन्दगी के कारण मज़दूरों को कई जानलेवा बीमारियाँ अपना शिकार बना लेती हैं। लेकिन चूँकि मज़दूरों को अलग-अलग ठेकेदारों के माध्यम से काम पर रखा जाता है, और उनके पास रोज़गार सम्बन्धी कोई भी रिकॉर्ड नहीं होता है। इसलिए अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो मालिक और ठेकेदार पुलिस के साथ मिल मज़दूर के परिवार को डरा-धमकाकर या थोड़ी सी रक़म देकर पूरे मामले को वहीं ख़त्म कर देते हैं।

नांगलोई और मंगोलपुरी में मज़दूर माँगपत्रक अभियान की नये सिरे से शुरुआत

ऐसी गुलामों जैसी ज़िन्दगी में मज़दूर अलग-अलग कुछ नहीं कर सकता है और न ही एक फ़ैक्टरी के 50-100 मज़दूर कुछ कर सकते हैं। इसलिए दिल्ली कामगार यूनियन और उद्योग नगर मज़दूर यूनियन ने इलाक़े के सभी मज़दूरों का संयुक्त माँगपत्र बनाकर अभियान की शुरुआत की है, ताकि पूरे औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों की साझा माँगों जैसे न्यूनतम वेतन, ठेका प्रथा समाप्त करने, डबल रेट से ओवरटाइम, पीएफ़ व ईएसआई आदि पर मज़दूरों को एकजुट किया जा सके।

दुनिया के मज़दूर भाई एक हो।

प्यारे साथियो, अब समय आ गया है कि हम कारख़ानों में काम करने वाले ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में कार्य करने वाला मज़दूर, चाहे वह इमारत बनाने वाला हो या फिर कार या मोटर साइकिल – सभी को मिलकर एक साथ पूँजीवाद के खि़लाफ़ आवाज़ उठानी होगी, क्योंकि आजतक मज़दूरों की आवाज़ दबायी जाती थी। लेकिन अब दुनिया के मज़दूर एक हो रहे हैं और एक दिन पूँजीवाद को ख़त्म करके ही रहेंगे। मज़दूर राज क़ायम करके रहेंगे।

An Appeal to all justice-loving citizens and workers

They wish to break the workers through hunger. But these steel workers are holding on; they are fighting even with half-filled stomach to secure their legitimate, legal and constitutional rights. Are they demanding anything unjust? No! They are just demanding their lawful rights and are fighting for them even with half-filled stomach. Many workers’ households have begun to face severe food crisis. In order to tackle this situation the ‘Garam Rolla Mazdoor Ekta Samiti’ is starting a community kitchen from Saturday 21 June onwards. We are determined not to let the strike broken under any circumstance.

सभी इंसाफ़पसन्द नागरिकों और मज़दूरों के नाम एक अपील

वे मज़दूरों को भूख से तोड़ना चाहते हैं। लेकिन ये इस्पात मज़दूर डटे हुए हैं; आधा पेट खाकर भी लड़ रहे हैं, ताकि उनके जायज़, कानूनी और संवैधानिक हक़ उन्हें मिल सकें। क्या वे कुछ ग़लत माँग रहे हैं? नहीं! वे तो बस अपने कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं और इसके लिए आधे पेट भी लड़ रहे हैं। कई मज़दूरों के घर खाने का भयंकर संकट पैदा हो चुका है। इस समस्या से निपटने के लिए ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ शनिवार (21 जून) से सामुदायिक रसोई की शुरुआत कर रही है। हम किसी भी हालत में हड़ताल को टूटने नहीं देंगे।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नाम मज़दूरों का खुला पत्र

प्रधानमन्त्री पद के लिए आपने जिस संविधान की शपथ ली, उसी संविधान के तहत हम मज़दूरों के लिए 260 श्रम क़ानून बने हुए हैं। लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के 66 साल बाद भी श्रम क़ानून सिर्फ़ काग़ज़ों की शोभा बढ़ाते हैं, असल में मज़दरों को न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है न ही पीएफ़, ईएसआई की सुविधा। पूरे देश में ठेका प्रथा लागू करके मज़दूरों को आधुनिक गुलाम बना लिया गया है। इन सारे श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले फ़ैक्टरी मालिक या व्यापारी किसी न किसी चुनावी पार्टी से जुड़े हुए हैं या करोड़ों का चन्दा देते हैं, बाक़ी ख़ुद भाजपा के कई सांसदों, विधायकों, पार्षदों की फ़ैक्टरियाँ हैं जहाँ श्रम क़ानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ायी जाती हैं। ऐसे में क्या आप या भाजपा इनके खि़लाफ़ मज़दूर हितों के लिए कोई संघर्ष चलाने वाले हैं?

आग उगलती गर्मी में भी श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों का संघर्ष जारी!

भिवाड़ी स्थित श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स के मज़दूर पिछले 15 अप्रैल से अपनी लम्बी हड़ताल जारी किये हुए है। लगभग 60 दिनों से आग उगलती गर्मी में मज़दूर पहले 10 दिन फ़ैक्टरी के अन्दर डेरा जमाये हुए थे और फिर 26 अप्रैल को कम्पनी में हुए बर्बर लाठीचार्ज के बाद कम्पनी गेट पर बैठे हुए हैं। ज्ञात हो कि इस दमन की कार्रवाई में राजस्थान पुलिस ने 26 नेतृत्वकारी मज़दूरों को ज़बरदस्ती गिरफ़्तार करके उन पर हत्या के प्रयास व अन्य कई गम्भीर धाराएँ लगी दीं। फिर भी मज़दूरों ने बर्बर दमन के खि़लाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा।