वजीरपुर के मज़दूरों के संघर्ष के बारे में
मजदूर साथियो, मेरा नाम बाबूराम हैं, मैं गरम मशीन का ओपेरटर हूँ। मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में रहता हूँ। साथियों, मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया के मजदूरों के हालात के बारे में लिख रहा हूँ।
मजदूर साथियो, मेरा नाम बाबूराम हैं, मैं गरम मशीन का ओपेरटर हूँ। मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में रहता हूँ। साथियों, मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया के मजदूरों के हालात के बारे में लिख रहा हूँ।
यह बात आज हम लोग शायद न मान पायें मगर सच यही है कि लूट, खसोट व मुनाफे पर टिकी इस पूँजी की व्यवस्था में उम्रदराज लोगों का कोई इस्तेमाल नहीं है। और पूँजी की व्यवस्था का यह नियम होता है कि जो माल(क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था में हर व्यक्ति या रिश्ते-नाते सब माल के ही रूप होते हैं) उपयोग लायक न हो उसे कचरा पेटी में डाल दो। हम अपने आस-पास के माहौल से दिन-प्रतिदिन यह देखते होंगे कि फलाने के माँ-बाप को कोई एक गिलास पानी देने वाला भी नहीं जबकि उनके चार-चार लड़के हैं। फलाने के कोई औलाद नहीं और वो इतने गरीब है कि उनका बुढ़ापा जैसे-तैसे घिसट-घिसट कर ही कट रहा है। फलाने के लड़के नहीं है मगर लड़की व दामाद ने तीन-तिकड़म कर सम्पत्ति पर कब्जा करके माँ-बाप को सड़क पर ला दिया।
राम, कृष्ण, अल्लाह, मसीह की पूजा करो
– अपने धर्म की सेवा करो
तो तुम्हारी जिन्दगी बदलेगी
और नहीं बदली
तो यह तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों का फ़ल है
शायद वो यह नहीं जानते
राम, कृष्ण, अल्लाह, मसीह की पूजा कर.कर के ही
हमारा ये हाल है
पर वो कहते हैं
तुम कुछ नहीं जानते
गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में संगठित हुए मज़दूरों ने अपने संगठन को विस्तारित करते हुए उसे वज़ीरपुर व दिल्ली के अन्य इलाकों के मज़दूरों की यूनियन के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया है। यह फैसला मज़दूरों ने 27 अगस्त को अपनी आम सभा में ध्वनि मत के जरिये पारित किया व दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना की।
मज़दूरों के जितने बड़े दुश्मन फ़ैक्टरी मालिक, ठेकेदार और पुलिस-प्रशासन होते हैं उतनी ही बड़ी दुश्मन मज़दूरों का नाम लेकर मज़दूरों के पीठ में छुरा घोंपनेवाली दलाल यूनियनें होती हैं। ये दलाल यूनियनें भी मज़दूरों के हितों और अधिकारों की बात करती हैं पर अन्दरखाने पूँजीपतियों की सेवा करती हैं। ऐसी यूनियनों में प्रमुख नाम सीटू, एटक, इंटक, बी एम एस, एच एम एस और एक्टू का लिया जा सकता है। इनका काम मज़दूर वर्ग के आन्दोलन को गड्ढे में गिराना तथा मज़दूरों और मालिकों से दलाली करके अपनी दुकानदारी चलाना है। जहाँ कहीं भी मज़दूरों की बड़ी आबादी रहती है ये वहाँ अपनी दुकान खोलकर बैठ जाते हैं और अपनी रस्म अदायगियों द्वारा दुकान चलाते रहते हैं। जब किसी मज़दूर के साथ कोई दुर्घटना हो जाये या उसके पैसे मालिक रोक ले या उसे काम से निकाल दिया जाये तो इन यूनियनों का असली चेहरा सामने आ जाता है। सबसे पहले तो 100-200 रुपये अपनी यूनियन की सदस्यता के नाम पर लेते हैं, उसके बाद काम हो जाने पर 20-30 प्रतिशत कमीशन मज़दूर से लेते हैं। ज़्यादातर मामलों में मज़दूरों को कुछ हासिल नहीं होता है।
हम ‘मज़दूर बिगुल’ के लेखों को चाव से पढ़ते हैं साथ ही इससे सीख भी लेते हैं तथा अपने अन्य मज़दूर भाइयों को भी इसके बारे में बताते हैं। साथियो मैं आप सबसे यही कहना चाहूँगा कि हमें एकजुट होना होगा और मज़दूर राज कायम करना होगा तभी हम अपने दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।
आखिर समझ में नही आता कि इतनी बड़ी,
मज़दूर आबादी का ही भाग्य क्यों मारा जाता है,
भगवान इन्हीं लोगों से क्यों नाराज रहता है,
मै पिण्टू, माधोपुरा बिहार का रहने बाला हूँ, अपने घर में बहन-भाई में सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरी उम्र 15 साल है। मुझसे छोटी मेरी दो बहने हैं। 2010 मे मेरे पापा गुजर गये, तो अब मेरी माँ व हम तीन भाई-बहन ही हैं। ग़रीबी तो पहले से ही थी, लेकिन पापा के गुजरने के बाद दुनिया के तमाम नाते-रिश्तेदारों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया। गाँव के कुछ लोग गुड़गाँव मे काम करते थे तो मेरी माँ ने बड़ी मुसीबत उठाकर 4 रुपये सैकड़ा पर 1000 रुपये लेकर व जो काम करते थे उनसे हाथ जोड़कर मुझे जैसे-तैसे गुड़गाँव भेज दिया। क्योंकि घर मे सबसे बड़ा मैं ही था और गाँव पर भी मेरी माँ और मैं मज़दूरी करके ही पेट पाल रहे थे। खेत व जमीन मेरे पास कुछ नहीं है, बस रहने के लिए गाँव में एक झोपड़ी है।
आज सारे पूँजीपतियों का एक ही नज़रिया है। ‘हायर एण्ड फायर’ की नीति लागू करो यानी जब चाहे काम पर रखो जब चाहे काम से निकाल दो, और अगर मज़दूर विरोध करें तो पुलिस-फौज, बांउसरों के बूते मज़दूरों का दमन करके आन्दोलन को कुचल दो। ऐसे समय अलग-अलग फैक्टरी-कारख़ाने के आधार पर मज़दूर नहीं लड़ सकते और न ही जीत सकते हैं। इसलिए हमें नये सिरे से सोचना होगा कि ये समस्या जब सारे मज़दूरों की साझा है तो हम क्यों न पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक के ऑटो सेक्टर के स्थाई, कैजुअल, ठेका मज़दूरों की सेक्टरगत और इलाकाई एकता कायम करें। असल में यही आज का सही विकल्प है वरना तब तक सारे मालिक-ठेकेदार ऐसे ही मज़दूरों की पीठ पर सवार रहेंगे।
बावल (रेवाड़ी) औद्योगिक क्षेत्र में पिछले लम्बे समय से पास्को और मिंडा फुरुकावा कम्पनी के मज़दूर अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। पहली अगस्त को बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी ने बावल के मज़दूरों के साथ हो रहे शोषण-दमन के खिलाफ गुड़गांव- मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों का सम्मेलन करके ये तय कर दिया है कि बावल के मज़दूर चुपचाप मालिकों-प्रशासन-श्रमविभाग की तानाशाही नहीं बर्दाश्त करेगें। बावल में हुए सम्मेलन में तमाम ट्रेड यूनियनों, मज़दूर संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन की अध्यक्षता एआईएस के महेन्द्र सिंह ने की। मज़दूर सम्मेलन में निम्न प्रस्तावों को पारित किया गया।