जाति अहंकार में चूर गुण्डों द्वारा दलित छात्र की सरेआम पीट-पीटकर हत्या

अमित

उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठी योगी सरकार एक तरफ़ जहाँ अपराधियों पर लगाम लगाने, पुलिस के हाथ खुले होने का ढिंढोरा पीटकर जनता के असन्तोष पर परदा डालने में लगी हुई है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में फासिस्ट सत्ता द्वारा संरक्षण प्राप्त गुण्डों द्वारा किया जाने वाला नंगा नाच इस परदे को नोचकर फासीवादी निज़ाम की बर्बर सच्चाई को उजागर कर रहा है।

पिछले दिनों इलाहाबाद में दिलीप सरोज नाम के एक दलित छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। इस घटना का सीसीटीवी फ़ुटेज और वीडियो जब वायरल हुआ तो देखने वाला हर शख्स स्तब्ध रह गया है। इस घटना स्थल से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर इलाहाबाद के एसएसपी और उसके 100 मीटर आगे डीएम का ऑफि़स था। लेकिन घटना होने के बहुत देर बाद भी पुलिस वहाँ नहीं पहुँची। पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता इतनी कि इलाहाबाद के विभिन्न छात्र संगठनों और जनसंगठनों की ओर से जब इस मुद्दे पर व्यापाक आन्दोलन की शुरुआत की गयी, तब जाकर पुलिस ने 24 घण्टे बाद एफ़आईआर दर्ज किया। दिलीप सरोज की मृत्यु की सूचना मिलते ही छात्रों की एक बड़ी संख्या ने अगली सुबह एकजुट होकर पहले एसएसपी ऑफि़स और फिर डीएम ऑफि़स का घेराव किया। उसके बाद छात्रों ने इलाहाबाद स्थित बालसन चौराहा पर क्रमिक  अनशन की शुरुआत की। आन्दोलन के दौरान संघियों का एक गुट इस पूरे आन्दोलन पर यह आरोप लगाता रहा कि एक छात्र की हत्या को जातिगत पहचान से जोड़ा जा रहा है और यह कि वर्तमान सरकार से इसका कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन बाद में हत्या के मुख्य आरोपी विजय शंकर सिंह की सुल्तानपुर के भाजपा नेता चन्द्रभद्र सिंह के घर से गिरफ़्तारी हुई। योगी सरकार ने अपराध पर अंकुश लगाने के नाम पर बहुत से निर्दोष युवाओं के एनकाउण्टर कराने का काम किया है। जबकि प्रदेश के मुख्यमन्त्री और उपमुख्यमन्त्री के ऊपर संगीन अपराधों के मुक़दमे दर्ज हैं। सत्ता पाते ही योगी सरकार ने इन मुक़दमों को रद्द करने का फ़ैसला करके अपने रास्ते में आने वाली क़ानूनी रुकावट को भी साफ़ करने की पूरी तैयारी कर ली है। इतना ही नहीं, फासिस्ट गिरोहों द्वारा भीड़ को उकसा कर हत्याएँ, गुण्डा गिरोहों द्वारा पीट-पीट कर हत्या, गाय और राष्ट्रवाद के नाम पर दंगा आदि फ़ासीवादी कुकृत्य एक के बाद लगातार अंज़ाम दिये जा रहे हैं।

जब तमाम छात्र संगठन और युवा दोषियों को न्याय दिलाने के लिए मैदान में थे तो कुछ लोग छात्र के साथ ‘दलित’ शब्द लगाने को मुद्दा बनाने लगे। दलित के नाम पर राजनीति भी कुछ लोग कर रहे थे, जैसाकि हर ऐसे मसले में होता है, लेकिन यह एक तथ्य है कि हत्यारों द्वारा इतने भयानक बर्बरतापूर्ण व्यवहार के पीछे धन, सत्ता के अलावा जातिगत श्रेष्ठता का अहंकार भी था। यह भी सच्चाई है कि इस समय उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार की सवर्णवादी उद्दण्डता को बढ़ावा देने की राजनीति चल रही है, उसने भी हत्यारों के हौसले बुलन्द करने का काम किया है। प्रशासन का रुख भी कम सवर्णवादी नहीं है। अगर दिलीप की जगह कोई गाय होती तो पूरा प्रशासन एक टाँग पर खड़ा हो जाता। मगर यहाँ एक तरफ़ तो दलित वोटबैंक को झाँसा देने के लिए दिलीप के परिवार को 20 लाख मुआवज़ा देने की घोषणा की गयी, दूसरी ओर दिलीप को न्याय दिलाने के सवाल पर अनशन कर रहे छात्रों-युवाओं को हटाने के लिए पुलिस ने चार गाड़ी रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स बुलाने से लेकर डराने-धमकाने तक पूरा ज़ोर लगा दिया।

इस पूरी घटना के ख़िलाफ़ और फ़ासीवादी सत्ता को चुनौती देते हुए इलाहाबाद के छात्र एवं जनसंगठनों की ओर से चलाये जाने वाले इस आन्दोलन को एक तरफ़़ चुनावी पार्टियों से जुड़े हुए छात्र संगठनों ने महज़ दिलीप के परिवार को मुआवज़ा दिलाने और अपराधी को फाँसी की सज़ा दिलाने की माँग के इर्द-गिर्द घुमाने का काम किया, जबकि दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा समेत विभिन्न प्रगतिशील और जनवादी संगठनों का मानना था कि यह हत्या कोई अचानक की जाने वाले हत्या नहीं है। आज के समय में फासिस्ट सत्ता के द्वारा पाले गये सवर्णवादी मानसिकता द्वारा यह हत्या की गयी है। दिलीप को न्याय तभी मिलेगा जब इस घटना से सबक़ लेकर सवर्णवादी मानसिकता और गुण्डई को बढ़ावा देने वाले साम्प्रदायिक फासीवाद के ख़िलाफ़ एक व्यापक आन्दोलन की तैयारी की जाये।

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2018

 

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments