डिलीवरी मज़दूरों के निर्मम शोषण पर टिका है ई-कॉमर्स का कारोबार
ये डिलीवरी मज़दूर अपनी पीठ पर प्रतिदिन 40 किलोग्राम तक का बोझ बाँधकर माल को ग्राहकों तक डिलीवर करने के लिए दिन भर बाइक से भागते रहते हैं। मध्यवर्ग के कई अपार्टमेंटों में तो इन डिलीवरी मज़दूरों को लिफ्रट इस्तेमाल करने तक की इजाज़त नहीं होती जिसकी वजह से उन्हें भारी-भरकम बोझ लिए सीढ़ियों से ऊपर की मंजिलों पर चढ़ना-उतरना होता है। इस कमरतोड़ मेहनत का नतीजा यह होता है कि वे अमूमन कुछ ही महीनों के भीतर पीठ दर्द, गर्दन दर्द, स्लिप डिस्क, स्पॉन्डिलाइटिस जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल के स्पोर्ट्स इंजरी सेन्टर के डॉक्टर बताते हैं कि उनके पास आने वाले मरीज़ों में रोज़ दो-तीन मरीज़ ऐसे होते हैं जो किसी न किसी ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनी के लिए डिलीवरी मज़दूर का काम करते हैं। चूँकि अधिकांश डिलीवरी मज़दूर ठेके पर काम करते हैं इसलिए उन्हें कोई स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नहीं मिलती। यही नहीं माल को ग्राहकों तक पहुँचाने की जल्दबाजी में बाइक चलाने से उनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी बढ़ जाती है। दुर्घटना होने की सूरत में भी इन डिलीवरी मज़दूरों को ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनियों की ओर से न तो दवा-इलाज का खर्च मिलता है और न ही कोई मुआवजा।