हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्ट और बर्बर इज़रायली ज़ायनवादी एक-दूसरे के नैसर्गिक जोड़ीदार हैं!

आनन्द सिंह

modi netanyahuपिछले साल इज़रायल जब गाज़ा में बमबारी करते हुए इस सदी के बर्बरतम नरसंहार को अंजाम दे रहा था उस समय भारत सहित दुनिया के तमाम इंसाफपसन्द लोग इज़रायल की इस बबर्रता के विरोध में सड़कों पर उतरे थे। लेकिन यही वो समय था जब भारत में सत्ता के गलियारों में हिन्दुत्ववादी फासिस्टों का उन्मादपूर्ण विजयोल्लास अपने चरम पर था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादी फासिस्टों को सत्ता में आए अब एक साल से भी ज़्यादा का समय बीत चुका है। जैसा कि उम्मीद थी, पिछले एक साल में हिन्दुत्ववादी भाजपा की सरकार ने अपने आचरण से यह साफ़ कर दिया है कि वह जॉयनवादी बर्बरों की वैचारिक रिश्तेदार है। इस वैचारिक रिश्तेदारी को और सुदृढ़ करने के मक़सद से नरेन्द्र मोदी ने इज़रायल की यात्रा पर जाने की घोषणा कर दी है। इस यात्रा से पहले जॉयनवादी बर्बरों को दोस्ती का तोहफ़ा भेजते हुए मोदी सरकार ने संयुक्‍त राष्ट्र संघ में पिछले तीन महीने में तीन बार इजरायल के खि़लाफ़ मतदान करने की बजाय अपने आपको मतदान से दूर रखा।

इज़रायल के साथ भारत के रिश्तों में गरमाहट नवउदारवाद के पदार्पण के साथ ही आनी शुरू हो गई थी जब नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने 1992 में इज़रायल के साथ राजनयिक रिश्तों की शुरुआत की। उसके बाद देवगौड़ा की संयुक्‍त मोर्चा की सरकार ने बराक मिसाइल के सौदे के समझौते पर हस्ताक्षर करके इज़रायल के साथ सामरिक संबन्धों की नींव रखी। ग़ौरतलब है कि उस सरकार में संसदमार्गी छद्म कम्युनिस्टों ने भी हिस्सा लिया था और गृह मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय उनके पास था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इज़रायल के साथ संबन्धों को नई ऊंचाइयों पर ले गई। यही वह दौर था जब इजरायल के नरभक्षी प्रधानमंत्री एरियल शैरोन ने भारत की यात्रा की। यह किसी इज़रायली प्रधानमंत्री की पहली भारत यात्रा थी। 2004 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेसी शासन में भी इज़रायल के साथ सामरिक संबन्धों में विस्तार की प्रक्रिया निर्बाध रूप से जारी रही।

पिछले साल मोदी के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादियों के सत्ता में पहुँचने के बाद से ही इज़रायल के साथ सम्बन्धों को पहले से भी अधिक प्रगाढ़ करने की दिशा में प्रयास शुरू हो चुके थे। गाज़ा में बमबारी के वक़्त हिन्दुत्ववादियों ने संसद में इस मुद्दे पर बहस कराने से साफ़ इनकार कर दिया था ताकि उसके जॉयनवादी भाई-बंधुओं की किरकरी न हो। पिछले ही साल सितंबर के महीने में न्यूयॉर्क में संयुक्‍त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली की बैठक के दौरान मोदी ने गुज़रात के मासूमों के खू़न से सने अपने हाथ को गाज़ा के निर्दाषों के ताज़ा लहू से सराबोर नेतन्याहू के हाथ से मिलाया। नेतन्याहू इस मुलाक़ात से इतना गदगद था मानो उसका बिछुड़ा भाई मिल गया हो। उसने उसी समय ही मोदी को इज़रायल आने का न्योता दे दिया था। गुज़रात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी पहले ही इज़रायल की यात्रा कर चुका है, लेकिन एक प्रधानमंत्री के रूप में यह उसकी पहली यात्रा होगी।

मोदी-नेतन्याहू मुलाकात के बाद अक्टूबर में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 80,000 करोड़ रुपये की रक्षा परियोजनाओं को मंजूरी दी। इसमें से 50,000 करोड़ रुपये नौसेना के लिए छह पनडुब्बियों के निर्माण में ख़र्च किये जायेंगे। 3,200 करोड़ रुपये 8000 इज़रायली टैंकरोधी मिसाइल स्पाइक की ख़रीद में ख़र्च किये जायेंगे। ग़ौर करने वाली बात यह है कि भारत ने इज़रायल की इस मिसाइल को अमेरिका की जैवेलिन मिसाइल के ऊपर तवज्जो दी है जिसके लिए अमेरिका लम्बे समय से लॉबिंग कर रहा था। अमेरिकी रक्षा मन्त्री चक हेगल ने पिछले साल अपनी भारत यात्रा के दौरान भी इस मिसाइल को भारत को बेचने के लिए लॉबिंग की थी। लेकिन अमेरिकी मिसाइल के ऊपर इज़रायली मिसाइल को तवज्जो देना हिन्दुत्ववादियों के इज़रायली जॉयनवादियों से गहरे रिश्तों को उजागर करता है। इज़रायल भविष्य में अपने इरॉन डोम नामक मिसाइल रोधी प्रणाली को भी भारत को बेचने की फिराक़ में है।

netanyahu rajnathपिछले साल नवम्बर की शुरुआत में गृहमन्त्री राजनाथ सिंह ने इज़रायल की यात्रा की। वर्ष 2000 में लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा के बाद से यह किसी भारतीय गृहमन्त्री की पहली इज़रायल यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान राजनाथ सिंह ने इज़रायली रक्षा कम्पनियों को ‘मेक इन इण्डिया’ मुहिम के तहत भारत में निवेश करने का न्योता दिया। इज़रायली रक्षा मन्त्री मोशे यालोन से मुलाकात के दौरान राजनाथ सिंह ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में रियायत देने के मोदी सरकार के फैसले को विशेष तौर पर रेखांकित किया। इज़रायली रक्षा मन्त्री ने अपनी ओर से रक्षा के क्षेत्र में भारत को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी हस्तान्तरित करने की मंशा जतायी। इस यात्रा के दौरान राजनाथ सिंह ने गाज़ा की सीमा पर इज़रायली सैनिक चौकियों का दौरा भी किया। अधिकारियों का कहना था कि राजनाथ सिंह इजरायल द्वारा इस्तेमाल की जा रही अत्याधुनिक सीमा सुरक्षा की प्रौद्योगिकी से काफी प्रभावित दिखे। इस प्रौद्योगिकी में उच्च गुणवत्ता वाली लम्बी रेंज वाले दिन के कैमरे और रात्रि प्रेक्षण प्रणाली शामिल है। इसके अतिरिक्‍त राजनाथ सिंह डिटेक्शन रडार से भी बहुत प्रभावित हुए जिसकी मदद से सीमा पार कई किलोमीटर तक की हलचल को आसानी से प्रेक्षित किया जा सकता है। यही नहीं गाज़ा की सीमा पर सुरंग बनाने के प्रयासों को निष्क्रिय करने के लिए सीस्मिक प्रणाली वाले मोशन सेंसर से भी राजनाथ सिंह प्रभावित हुए। ज़ाहिर है कि इज़रायल भविष्य में इन सभी प्रौद्योगिकियों को भारत को बेचने की योजना बना रहा है और राजनाथ सिंह को एक सम्भावित ग्राहक के रूप में देखकर उसने इन प्रौद्योगिकियों की नुमाइश की।

भारत से बढ़ती क़रीबी इज़रायल की अर्थव्यवस्था के लिए एक संजीवनी का काम कर रही है क्योंकि पिछले एक दशक से जारी बीडीएस (बॉयकॉट, डाइवेस्टमेंट एंड सैक्शन) आंदोलन की वजह से दुनिया के कई देशों ने इज़रायल के साथ व्यापारिक संबन्धों को बहुत सीमित कर दिया है जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में अमेरिका के अलावा भारत उन चन्द गिने-चुने देशों में है जिसका इज़रायल के साथ सामरिक और व्यापारिक सम्बन्ध फल-फूल रहा है। भारत इज़रायल द्वारा बेचे जाने वाले हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा ख़रीदार है और भारत को हथियारों की सप्लाई करने वाले देशों में इज़रायल का स्थान दूसरा है। केवल रक्षा के क्षेत्र में ही नहीं इज़रायल भारत के कई राज्यों में जल संरक्षण, सिंचाई आदि के क्षेत्र में तकनीकी सहायता के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोल चुका है और आने वाले दिनों में कई और खोलने की योजना है। भारत में हिन्दुत्ववादियों के सत्ता में क़ाबिज़ होने के साथ ही इस्लामिक आतंकवाद का हौव्वा एक बार फिर से जोर-शोर से खड़ा किया जा रहा है। आतंकवाद विरोध के नाम पर मासूमों के नृशंस क़त्ले-आम को अंजाम देने के इज़रायली तरीके को एक प्रसिद्ध इजरायली इतिहासकार ने क्रमिक नरसंहार की संज्ञा दी है। हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्ट अपने वैचारिक रिश्तेदार जॉयनवादियों से क्रमिक नरसंहार के इसी हुनर को सीखने के लिए बेकरार हैं ताकि भारत में भी उसे आजमाया जा सके। मोदी की आगामी इज़रायल यात्रा को हमें इसी परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2015


 

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