कारखाना इलाक़ों से
इलाक़ाई एकता ही आज की ज़रूरत है!
आनन्द, गुड़गाँव
कई मज़दूरों की आपबीती घटनाओं से, बयानों से और साक्षात तथ्यों से यह बात एकदम स्पष्ट हो चुकी है कि आज पूँजीपति वर्ग (मालिकों का समूह) मज़दूरों के श्रम की शक्ति (काम करने की ताकत) को लूटकर मुनाफ़े में तब्दील करने के लिए एकजुट है। और इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि हम जिन मज़दूरों की हड्डियाँ तक निचोड़कर मुनाफ़ा कमा रहे हैं कहीं वो एकजुट न हो जायें या यूनियन न बना लें। और जिस तरह से भी सम्भव हो सके कानूनी या गैरकानूनी तरीके से आज मज़दूरों की ताकत को बाँटने व बरगलाने मे वे कामयाब भी हो रहे हैं।
आइये कुछ तथ्यों से इस चर्चा को और भी स्पष्ट करते हैं।
1- कुछ मज़दूर जो मिण्डा कम्पनी मे काम करते थे (मिण्डा कम्पनी आटो सेक्टर कम्पनियों के पार्ट पुर्जे बनाती है और यह कम्पनी आई.एम.टी. मानेसर मे स्थित है।) उनका यह दावा है कि कम्पनी में मज़दूरों को सिर्फ छह महीनों के लिए ही रखा जाता है। और उसके बाद निकाल दिया जाता है और नई भर्ती ली जाती है, और यह क्रम लगातार चलता रहता है।
2- बजाज मोटर्स के मज़दूरों का भी यही दावा है (बजाज मोटर्स क. एन.एच. 8 पर नरसिम्हपुर में गाँव के पास स्थित है।) कि कम्पनी सिर्फ छः महीनों के लिए ही भर्ती करती है। और उसके बाद निकाल देती है या कोई ज्यादा ही मालिक भक्त मज़दूर है, उसको नये सिरे से भर्ती कर लेती है।
3- हीरो मोटोकार्प मे भी काम कर चुके कुछ मज़दूरों का भी यही कहना है। यह कम्पनी एन.एच.8, खाण्डसा गाँव के पास स्थित है।
4- ‘जय भारत मारुति’ ग्रुप कम्पनी मे मज़दूरों की भर्ती 12 ठेकेदारों के माध्यम से होती है। और बहुत ही कम मज़दूरों को कम्पनी स्थाई (परमानेण्ट) करती है। या यूं कहा जाऐ तो पूरी कम्पनी मे स्थाई मज़दूर 5-6 प्रतिशत ही हैं। पूरी कम्पनी मे लगभग 2500 मज़दूर काम करते हैं और उत्पादकता मे यह कम्पनी सर्वश्रेष्ठता के कई पुरस्कार भी पा चुकी है। (यह कम्पनी भी आटो सेक्टर कम्पनियों के पार्ट पुर्जे बनाती है, यह कम्पनी खाण्डसा रोड़ सेक्टर 37 मोहम्मदपुर गाँव मे स्थित है।)
5- श्रीराम पिस्टन एंव रिंग लिमिटेड यह कम्पनी राजस्थान के भिवाड़ी ‘जिला अलवर’ मे स्थित है। इसकी एक शाखा गाजियाबाद मे भी स्थित है, यह कम्पनी सभी दो पहिया, चार पहिया वाहन निर्माता कम्पनियों के लिए पिस्टन एंव रिंग व वाल्व बनाती है। इस कम्पनी मे लगभग 1800 मज़दूर काम करते थे। जिनमे 500 के लगभग स्थाई थे बाकि सभी मज़दूरों को एफ.टी.सी. (फिक्सड टर्म कॉन्ट्रेक्ट) के तहत भर्ती किया जाता था। इस कम्पनी मे सभी 1800 मज़दूरों की तनख़्वाह 6 से 8 हजार रू के बीच में ही मिलती थी। इस कम्पनी के मज़दूरों ने 15 अप्रैल 2014 से कम्पनी की इन लुटेरी नीतियों के खिलाफ जुझारू संघर्ष किया जो कि अभी तक लगातार जारी है।
इन तथ्यों के बाबजूद यह बात तो जगजाहिर है कि आज सभी कम्पनियों मे मज़दूरों को ठेकेदार के माध्यम से, पीसरेट, कैजुअल व दिहाड़ी पर काम पर रखा जाता है। मज़दूरों को टुकड़ो मे बाँटने के लिए आज पूरा मालिक वर्ग सचेतन प्रयासरत है। ऐसी विकट परिस्थतियों मे भी आज तमाम मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ता या मज़दूर वर्ग से गद्दारी कर चुकीं ट्रेड यूनियनें उसी पुरानी लकीर को पीट रहे हैं कि मज़दूर एक फैक्ट्री मे संघर्ष के दम पर जीत जाऐगा। बल्कि आज तमाम फैक्ट्रियों मे जुझारू आन्दोलनों के बाबजूद भी मज़दूरों को जीत हासिल नहीं हो पायी। क्योंकि इन सभी फैक्ट्रियों मे मज़दूर सिर्फ एक फैक्ट्री की एकजुटता के दम पर संघर्ष जीतना चाहते थे। दूसरा इन तमाम गद्दार ट्रेड यूनियनों की दलाली व मज़दूरों की मालिक भक्ति भी मज़दूरों की हार का कारण है। वो तमाम फैक्ट्रियाँ जिनमे संघर्ष हारे गये – रिको, बजाज, हीरो, मारूति, वैक्टर आदि-आदि।
इन तमाम उदाहरणों, तथ्यों व चर्चा से यह बात एकदम स्पष्ट हो चुकी है कि आज एक-एक फैक्ट्री मे मज़दूर संघर्ष नहीं जीत सकते इसलिए आज संगठन बनाने का एक ही तरीका है, वो है इलाक़ाई पैमाने की एकजुटता!
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2014
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन