आपस की बात – झूठ फैलाने वाले नहीं सच बताने वाला अख़बार पढ़ो
बहुत से लोगों के हर दिन की शुरुआत बीते कल की घटनाओं को जानने की उत्सुकता के साथ शुरू होती है। लेकिन आज-कल के अखबारों को देख जाइए, मेहनतकश जनता की रोज़मर्रा की समस्याओं या समाज के लिए उपयोगी ख़बरें ढूँढे से भी नहीं मिलेंगी। हाँ, साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली मनगढ़न्त ख़बरें और हिन्दुत्व व नफ़रत के मसाले डालकर पकाई गई ज़हरीली कहानियाँ इसके पन्नों पर भरी रहती हैं। अख़बारों का यह चरित्र धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश कहलाने वाले भारत के लोकतंत्र के चौथे खंभे की ढोल की पोल खोल देता है।














