गीडा : मज़दूरों की जान की क़ीमत पर मालिकों के मुनाफ़े के लिए विकसित होता औद्योगिक क्षेत्र

अम्बरीष

वैसे तो देश के किसी भी कारख़ाने में मज़दूरों की ज़िन्दगी दाँव पर लगी रहती है। लेकिन इधर योगी आदित्यनाथ के “उत्तम प्रदेश” गोरखपुर के औद्योगिक क्षेत्र गीडा (गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने इस मामले में मिसाल क़ायम कर दी है। गीडा में अप्रैल और मई के महीने में अलग-अलग कारख़ानों में होने वाली दुर्घटनाओं में 6 मज़दूरों की मौत हो गई और कई मज़दूर बुरी तरह से घायल  हो गये। घायल होने वाले मज़दूरों में अभी भी कई ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं। भाजपा का “रामराज्य” मज़दूरों पर बहुत भारी पड़ रहा है।

ग़ौरतलब है कि पिछले डेढ़ महीने में होने वाली दुर्घटनाओं में दो में तो बॉयलर फटने की वजह से भयानक हादसा हुआ। बॉयलर फटने के धमाके की आवाज़ कई किलोमीटर तक सुनाई दी और अगल-बगल के कारख़ानों  की दीवारों में दरार तक पड़ गयी। सबसे भयंकर हादसा 23 अप्रैल को गीडा के सेक्टर-13 में स्थित फास्ट फूड व नूडल्स बनाने की फैक्ट्री में बॉयलर फटने से हुआ। धमाके के बाद पूरे कारख़ाने में भयंकर आग  लग गई और कारख़ानों की दीवार और टिन शेड तक भरभरा कर गिर गये। कुछ मज़दूर ही गेट फाँदकर बाहर निकल सके। आग इतनी भयंकर थी कि मज़दूर हज़रत बिलाल (उम्र-18 वर्ष) और उमर फारुख़ (उम्र – 38 वर्ष) की  95 प्रतिशत जल जाने की वजह से उसी दिन मौत हो गयी, जबकि बुरी तरह जले  दो मज़दूर की इलाज के दौरान मौत हो गयी। 2 मई को गीडा के सेक्टर-23 में स्थित गैलेंट फैक्ट्री में दुर्घटना हुई। बिना किसी सुरक्षा उपकरण के गैलेंट फैक्ट्री की भारी मशीनों को शिफ्ट करने के दौरान मजदूर अखिलेश (उम्र – 32 वर्ष) और भानू प्रकाश पाण्डेय (उम्र – 55 वर्ष)  की मशीन में दबकर दर्दनाक मौत हो गई। इनमें अखिलेश फ्लोर मशीन चलाने का काम करता था और भानू मज़दूरों को पानी पिलाने का काम करता था। 4 मई को गीडा के सेक्टर-23 में स्थित शहर के कुख्यात पूँजीपति अशोक जालान की सरिया बनाने वाली अंकुर स्टील कम्पनी में बॉयलर फटने के बाद आग लग गई। जिसमें दो मजदूर भयंकर रूप से  जल गये।

इन घटनाओं के बाद प्रशासन कुम्भकरण की नींद से जागा और जाँच प्रक्रिया शुरू की। जाँच के दौरान पता चला कि गत्ता निर्माण की आड़ में अवैध रूप से नूडल्स की फैक्ट्री चल रही थी। सेक्टर-13 और सेक्टर-15 में 50 फैक्ट्री की जाँच की गई, जिसमें से कुछ बन्द मिलीं और कई फैक्ट्रियों के संचालक कोई काग़ज़ात नहीं दिखा सके।

गोरखपुर के गीडा में इस तरह की घटनाएँ आये-दिन होती रहती हैं। दुर्घटना होने के बाद श्रम विभाग जाँच के नाम पर कुछ रुटीनी क़वायद करके, लीपा-पोती करके कुम्भकरणी नींद से अपने जागने की क़ीमत मालिकों से वसूलकर फिर से सो जाता है। मज़दूरों को ना तो उचित मुआवजा और न ही उचित दवा-इलाज मिलता है। मिलता है तो बस अंग-भंग शरीर या फिर  मौत। सुरक्षा उपकरणों की कमी, जानबूझकर मानकों का उल्लंघन कर अवैध तरीक़े से चलने वाले कारख़ानों में मज़दूरों को मौत के मुँह में झोंकने के बावजूद योगी सरकार द्वारा न तो मालिकों के घरों पर बुलडोज़र चलता है और न ही मालिकों पर कोई कार्रवाई होती है।

गीडा को पूर्वी उत्तर प्रदेश के औद्योगिक हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत कुल 13135 एकड़ क्षेत्रफल आता है। जिसे कुल 32 सेक्टर में बाँटा गया है। इनमें 12 औद्योगिक सेक्टर बनाये गये हैं। गीडा में अब तक 1543 एकड़ भूमि विकसित किया जा चुका है जिसमें से 1170.40 एकड़ भूमि आबण्टित की गयी है। इन 12 सेक्टरों में कई सारी छोटी-बड़ी कम्पनियाँ स्थापित हैं, जिनकी संख्या 1050 के आसपास है। जिनमें से मात्र 127 कम्पनियों के पास उत्पादन के सर्टिफिकेट हैं। जबकि लगभग 902 कम्पनियाँ अवैध रूप से संचालित हो रही हैं। इन कम्पनियों में खाद्य सामग्री, कृषि से सम्बन्धित वस्तुओं, पशुओं से सम्बन्धित मालों, प्लास्टिक की वस्तुओं, सरिया, सीमेण्ट और यहाँ तक कि ख़तरनाक केमिकल आदि का उत्पादन किया जाता है। इन सभी कम्पनियों में लगभग 40000 मज़दूर काम करते हैं।

गीडा में संचालित प्रमुख कम्पनियों में गैलेंट स्टील इण्डिया, ग्लाइकोल, आई जीएल डिस्टि‍लरी, एबीआर पेट्रो, निमानी प्लाईवुड, आज़म रबर्स, ट्राइ डेंट स्टील, विनायक उद्योग, एस एण्ड जे वेबर जेस, मोदी केमिकल्स, अंकुर स्टील फैक्ट्री, पारले, केयान डिस्टि‍लरी आदि है। इनमें से कई कम्पनियों का उद्घाटन योगी आदित्यनाथ ने ही किया है।

गीडा ने गोरखपुर के दक्षिण में स्थित धुरियापार में 5500 एकड़ में औद्योगिक गलियारा विकसित कर रहा है जिसमें कि अब तक 600 एकड़ भूमि अधिग्रहीत कर ली गयी है। धुरियापार में कुल 13 सेक्टर विकसित किए जायेंगे। इस क्षेत्र में भारतीय ऑयल द्वारा कम्प्रेस्ड बायो गैस प्लाण्ट की स्थापना प्रमुख है। इसके अलावा, अडानी समूह और जेके समूह द्वारा यहाँ सीमेण्ट फैक्ट्रियाँ बनायी जायेंगी। अभी जबकि गीडा का औद्योगिक क्षेत्र निर्माणाधीन है तब इतनी दुर्घटनाएँ आने वाले दिनों की भयावह तस्वीर पेश कर देते हैं। इस इलाक़े में सुरक्षा-व्यवस्था के नाम पर पूरा पुलिसिया तन्त्र इस तरह विकसित किया गया है कि किसी तरह की राजनीतिक हलचल को रोका जा सके और मज़दूरों को इस बर्बर तन्त्र के नीचे दबाकर रखा जा सके।

निश्चित तौर पर, गीडा में आने वाले वक़्त में मालिक, सरकार और प्रशासन का गठजोड़ मज़दूरों के ख़िलाफ़ बहुत तानाशाहाना तरीक़े से काम करेगा। इसलिए गीडा के इलाक़े में काम करने वाले मज़दूरों को भविष्य में अपने हितों के मद्देनज़र अपनी मजबूत वर्गीय लामबन्दी करनी होगी। उन्हें अपनी एकजुट यूनियन खड़ी करनी होगी। मज़दूर यदि संगठित हो जायें तो प्रशासन का ज़ोर उन पर नहीं चल सकता है, चाहे वे कितना ही प्रयास क्यों न कर लें। पुलिसिया दमन के बूते मज़दूरों को कुचलने में प्रशासन और मालिकान तभी कामयाब होते हैं, जब मज़दूर खण्ड-खण्ड में टूटे होते हैं और अपनी एकजुट यूनियन नहीं खड़ी करते। गीडा के मज़दूरों को ऐसी यूनियन खड़ी करने के लिए आज ही कमर कस लेनी होगी।     

 

 

मज़दूर बिगुल, मई 2025

 

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