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बढ़ती महँगाई और मज़दूरों के हालात

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ याद कीजिए ये नारा 2014 में खूब प्रचलित हुआ था। आज इस मोदी सरकार को आए 7 साल से अधिक हो गए। जहां एक तरफ बढ़ती महँगाई से पूँजीपति अकूत मुनाफ़ा बना रहा हैं, जिसमें मोदी सरकार उनका भरपूर साथ दे रही है, जहां बीते एक वर्ष में महँगाई बेरोज़गारी ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है, वहीं मोदी के चहेते अदानी की संपत्ति बीते एक साल में 57 अरब डॉलर बढ़ी है। साल 2022 में अब तक कमाई के मामलें में गौतम अडानी टॉप पर हैं।

मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग: कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं।

दिल्ली मेट्रो में काम कर रहे सफ़ाई कर्मचारियों के बदतर हालात

देश की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में अपनी मेट्रो सेवा के लिए मशहूर है। चमचमाती मेट्रो की चमक के पीछे दरअसल उन श्रमिकों के ख़ून पसीने की मेहनत है जिनका कहीं ज़िक्र तक नहीं किया जाता। केन्द्र राज्य के स्वामित्व वाली दिल्ली मेट्रो में भारत सरकार (50 प्रतिशत) तथा दिल्ली सरकार (50 प्रतिशत) का बराबरी का मालिकाना है। जब भी मेट्रो से होने वाले अकूत मुनाफ़े पर गाल बजाना हो तो दोनों ही सरकारें अपनी दावेदारी पेश करने लगती है। लेकिन वहीं जब यहाँ काम करने वाले श्रमिक अपने हक़ अधिकार की माँग करते हैं तो दोनों ही सरकारें कन्नी काटती रहती हैं।

दुनिया की सबसे ताक़तवर कम्पनियों में से एक को हराकर अमेज़न के मज़दूरों ने कैसे बनायी अपनी यूनियन

दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक अमेज़न लगातार अपने यहाँ मज़दूरों की यूनियन बनने से रोकने की कोशिश करती रही है। यूनियन न बन पाये इसके लिए वह अरबों रुपये अदालती कार्रवाई पर और तरह-तरह की तिकड़मों पर ख़र्च करती रही है। मज़दूरों को डराने-धमकाने, उनके बीच फूट डालने के लिए उसने बाक़ायदा कई फ़र्मों को करोड़ों के ठेके दिये हुए हैं।

मई दिवस 1886 से मई दिवस 2022 : कितने बदले हैं मज़दूरों के हालात?

इस वर्ष पूरी दुनिया में 136वाँ मई दिवस मनाया गया। 1886 में शिकागो के मज़दूरों ने अपने संघर्ष और क़ुर्बानियों से जिस मशाल को ऊँचा उठाया था, उसे मज़दूरों की अगली पीढ़ियों ने अपना ख़ून देकर जलाये रखा और दुनियाभर के मज़दूरों के अथक संघर्षों के दम पर ही 8 घण्टे काम के दिन के क़ानून बने। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि 2022 में कई मायनों में मज़दूरों के हालात 1886 से भी बदतर हो गये हैं। मज़दूरों की ज़िन्दगी आज भयावह होती जा रही है। दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए 12-12 घण्टे खटना पड़ता है।

भगतसिंह की विरासत को विकृत कर हड़पने की घटिया कोशिश में लगी ‘आप’

पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के बाद से भगतसिंह के अनुयायी होने का तमगा हासिल करने में लगी हुई है। इसके ज़रिए ‘आप’ ख़ुद को ‘सच्चा राष्ट्रवादी’ साबित करना चाहती है। चुनाव जीतने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान ने भगतसिंह के गाँव खटकड़ कलाँ में जाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और भगतसिंह के सपनों को पूरा करने के बड़े-बड़े दावे किये, जिनका असलियत से कोई लेना देना नहीं है।

मेहनतकशों पर कोरोना की तीसरी लहर की मार

कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। देश के कई राज्यों में कोरोना केसों की संख्या कम हो रही है और कई राज्यों में इसका अधिकतम उभार आना अभी बाक़ी है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे शहरों में केस अब कम हो रहे हैं। वहीं कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बेंगलुरु में अभी भी फैलना जारी है। 23 जनवरी तक पूरे देश मे 3,06,064 कोरोना केस आ चुके हैं और प्रतिदिन औसतन 500-600 मौतें हो रही हैं। इस बार पिछले वर्ष की तरह मौतें नहीं हो रहीं, पर इसके बावजूद यह बड़े पैमाने पर फैल रहा है। कोरोना का नया वेरियेण्ट ओमिक्रॉन उतना घातक नहीं है। यह फैलता ज़्यादा तेज़ है, लेकिन इसके कारण मृत्यु दर अभी काफ़ी कम ही है।

गंगासागर मेले में फिर से कोरोना फैलाने की इजाज़त

पिछले वर्ष जब हज़ारों लोग कोरोना और सरकार की लापरवाही के कारण मर रहे थे, तब भाजपा सरकार ने कुम्भ मेले का आयोजन किया था, जहाँ लाखों की तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई थी और यह भी उस दौरान कोरोना के फैलने का एक कारण था। इसी राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने गंगासागर मेले का आयोजन कराया। यह मेला हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर 8-16 जनवरी के बीच लगता है। ज्ञात हो कि इस मेले में लाखों की संख्या में पूरे देश से लोग आते हैं। इस समय यह बीमारी फैलने का एक बड़ा स्थल बन सकता था।

सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

पर्यावरण और मज़दूर वर्ग

हर साल की तरह इस बार भी इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर एक गैस चैम्बर बन गया है जिसमें लोग घुट रहे हैं। दिल्ली और आसपास के शहरों में धुँआ और कोहरा आपस में मिलकर एक सफ़ेद चादर की तरह वातावरण में फैला हुआ है, जिसमें हर इन्सान का साँस लेना दूभर हो रहा है। ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ को मिलाकर इसे दुनियाभर में ‘स्मॉग’ कहा जाता है। मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए ये पूँजीवादी व्यवस्था मेहनतकशों के साथ-साथ प्रकृति का भी अकूत शोषण करती है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरे समाज को जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण के रूप में भुगतना पड़ता है।