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गंगासागर मेले में फिर से कोरोना फैलाने की इजाज़त

पिछले वर्ष जब हज़ारों लोग कोरोना और सरकार की लापरवाही के कारण मर रहे थे, तब भाजपा सरकार ने कुम्भ मेले का आयोजन किया था, जहाँ लाखों की तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई थी और यह भी उस दौरान कोरोना के फैलने का एक कारण था। इसी राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने गंगासागर मेले का आयोजन कराया। यह मेला हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर 8-16 जनवरी के बीच लगता है। ज्ञात हो कि इस मेले में लाखों की संख्या में पूरे देश से लोग आते हैं। इस समय यह बीमारी फैलने का एक बड़ा स्थल बन सकता था।

सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

पर्यावरण और मज़दूर वर्ग

हर साल की तरह इस बार भी इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर एक गैस चैम्बर बन गया है जिसमें लोग घुट रहे हैं। दिल्ली और आसपास के शहरों में धुँआ और कोहरा आपस में मिलकर एक सफ़ेद चादर की तरह वातावरण में फैला हुआ है, जिसमें हर इन्सान का साँस लेना दूभर हो रहा है। ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ को मिलाकर इसे दुनियाभर में ‘स्मॉग’ कहा जाता है। मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए ये पूँजीवादी व्यवस्था मेहनतकशों के साथ-साथ प्रकृति का भी अकूत शोषण करती है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरे समाज को जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण के रूप में भुगतना पड़ता है।

भाजपा के “रामराज्यों” में दलितों के ख़िलाफ़ बढ़ती बर्बर हिंसा!

फ़ासीवादी भाजपा-शासित राज्यों में हो रहे दलित-विरोधी अपराध बर्बरता की सारी हदें पार करते जा रहे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब दलितों के साथ सवर्ण जातिवादी गुण्डों द्वारा हिंसा की घटना सामने न आती हो। बीते दिन प्रयागराज के फाफामऊ में दलित परिवार के चार सदस्यों की जातिवादी गुण्डों द्वारा बर्बर हत्या कर दी गयी। देशभर में दलितों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा के इतिहास में यह घटना एक स्याह पन्ने की तरह दर्ज हो गयी है।

स्वतंत्र पत्रकारिता पर हो रहे फ़ासीवादी हमलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाओ!

बीते दिनों न्यूज़क्लिक व न्‍यूज़लॉण्‍ड्री के दफ़्तर पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई। कहने को तो आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों के यहाँ “सर्वे” के लिए पहुँचा था लेकिन यह कैसा सर्वे था जिसमें आयकर विभाग इन न्यूज़ चैनलों की वित्तीय रिपोर्ट निकालने के बजाय वहाँ काम कर रहे लोगों के फ़ोन और लैपटॉप ज़ब्त कर रहा था? उनकी निजी जानकारियाँ इकट्ठा कर रहा था?

केजरीवाल की हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद की राजनीति

बीते दिनों आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र रैली का आयोजन किया। रैली की शुरुआत अयोध्या से की गयी, जहाँ राम मन्दिर बनने वाला है। रैली में आम आदमी पार्टी के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यूपी में असल में रामराज्य सिर्फ़ आम आदमी की सरकार ही ला सकती है। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह ने कहा कि आम आदमी पार्टी ही सही मायने में ‘सच्चे राष्ट्रवाद’ की वाहक है, भाजपा नहीं!

कोरोना काल में मज़दूरों की जीवनस्थिति

आज देशभर के मज़दूर कोरोना की मार के साथ-साथ सरकार की क्रूरता और मालिकों द्वारा बदस्तूर शोषण की मार झेल रहे हैं। बीते वर्ष से अब तक पूरे कोरोनाकाल में मज़दूरों-मेहनतकशों का जीवन स्तर नीचे गया है। खाने-पीने में कटौती करने से लेकर वेतन में कटौती होने या रोज़गार छीने जाने से मज़दूरों के हालात बद से बदतर हुए हैं। कोरोना महामारी से बरपे इस क़हर ने पूँजीवादी व्यवस्था के पोर-पोर को नंगा करके रख दिया है।

बंगलादेश में एक बार फिर मुनाफे़ की आग की बलि चढ़े 52 मज़दूर

भारत हो या बंगलादेश या कोई अन्य पूँजीवादी देश, मालिकों के लिए मज़दूरों की अहमियत कीड़े-मकोड़ों से ज़्यादा नहीं होती। बीते 8 जुलाई को बंगलादेश में ढाका के नारायणगंज क्षेत्र में जूस के कारख़ाने में भीषण आग लगी, जिसमें 52 मज़दूरों की जान चली गयी और कई घायल हुए।

दिल्ली के ‘मास्टरों’ के प्लान में ग़रीब मेहनतकश आबादी कहाँ है?

दिल्ली को दुनिया का सबसे स्मार्ट शहर बनाने के लिए डी.डी.ए द्वारा बीते महीने मास्टर प्लान 2041 पेश किया गया। दिल्ली को आधुनिक और विकसित शहर बनाने के लिए यह चौथा मास्टर प्लान है। इससे पहले 1962, 2001 और 2021 तक दिल्ली में अलग-अलग मास्टर प्लान लागू हो चुके हैं। डी.डी.ए का मास्टर प्लान पर्यावरण को बेहतर बनाने, परिवहन को सुविधाजनक बनाने तथा आधारभूत संरचना को मज़बूत बनाने की बात पर ज़ोर देता है।

एक मज़दूर परिवार की एक सुबह

टिमटिमाती आँखें, सर पर हल्के-हल्के बाल, अपने पैरों को घसीटते हुए बच्चा खड़ा होने की कोशिश कर रहा था। बच्चे ने हरे रंग का कच्छा पहना था और हरी धारीदार टी-शर्ट। उम्र मुश्किल से एक वर्ष होगी। अचानक उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आयी, जैसे उसने कोई नयी तरकीब सोची हो और वह घुटनों के बल आगे बढ़ने लगा। बच्चे की आँखें देखकर पता चल रहा था कि वह अभी थोड़ी देर पहले ही रोकर चुप हुआ है।