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बेरोज़गारी और आर्थिक संकट के दौर में बढ़ती आत्महत्याएँ

पिछले साल का कोरोना काल आपको याद होगा। ऑक्सीजन, दवाइयों, बेड की कमी के कारण लोग मारे जा रहे थे। गंगा तक इन्सानों की लाशों से अट गयी थी और श्मशानों के आगे लम्बी-लम्बी क़तारें लगी थीं। इसमें मौत के गर्त में समाने वाले ज़्यादातर मेहनतकश तबक़े के लोग थे। मोदी सरकार इस क़त्लेआम को अंजाम देकर आपदा में अवसर निकालने में लगी हुई थी। इसके साथ ही पूरी पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा मज़दूरों की जा रही हत्याओं के आँकडों में और इज़ाफ़ा हो गया।

बीते साल क़र्ज़ों की माफ़ी के साथ पूँजीपति हुए मालामाल!

साल 2021 को याद कीजिए। कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर था और सरकार की क्रूरता ने इसे दोगुना घातक बना दिया। लाखों लोगों ने इस कारण अपनी जान गवायी। ऑक्सीजन, बेड, दवाइयों के लिए हाहाकार मचा हुआ था। श्मशानों के आगे लाशों की क़तारें लगी हुई थीं। ये तो था देश की आम अवाम का हाल। मगर दूसरी तरफ़, 2021 में कोरोना महामारी के दौरान भी बड़े पूँजीपतियों की सम्पत्ति में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। अकेले गौतम अडानी की सम्पत्ति में पिछले साल 49 बिलियन डॉलर (यानी लगभग 4 लाख करोड़ रुपये) का इज़ाफ़ा हुआ है। इसी दौरान इनकी वफ़ादार मोदी सरकार जनता को मरता छोड़ इन सेठों का मुनाफ़ा बढ़ाने में जी जान से लगी हुई थी और अपने आक़ाओं के क़र्ज़ माफ़ कर रही थी।

आज़ादी का (अ)मृत महोत्सव : अडानियों-अम्बानियों की बढ़ती सम्पत्ति, आम जनता की बेहाल स्थिति

मेहनतकश साथियों, इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी?

बढ़ती महँगाई और मज़दूरों के हालात

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ याद कीजिए ये नारा 2014 में खूब प्रचलित हुआ था। आज इस मोदी सरकार को आए 7 साल से अधिक हो गए। जहां एक तरफ बढ़ती महँगाई से पूँजीपति अकूत मुनाफ़ा बना रहा हैं, जिसमें मोदी सरकार उनका भरपूर साथ दे रही है, जहां बीते एक वर्ष में महँगाई बेरोज़गारी ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है, वहीं मोदी के चहेते अदानी की संपत्ति बीते एक साल में 57 अरब डॉलर बढ़ी है। साल 2022 में अब तक कमाई के मामलें में गौतम अडानी टॉप पर हैं।

मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग: कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं।

दिल्ली मेट्रो में काम कर रहे सफ़ाई कर्मचारियों के बदतर हालात

देश की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में अपनी मेट्रो सेवा के लिए मशहूर है। चमचमाती मेट्रो की चमक के पीछे दरअसल उन श्रमिकों के ख़ून पसीने की मेहनत है जिनका कहीं ज़िक्र तक नहीं किया जाता। केन्द्र राज्य के स्वामित्व वाली दिल्ली मेट्रो में भारत सरकार (50 प्रतिशत) तथा दिल्ली सरकार (50 प्रतिशत) का बराबरी का मालिकाना है। जब भी मेट्रो से होने वाले अकूत मुनाफ़े पर गाल बजाना हो तो दोनों ही सरकारें अपनी दावेदारी पेश करने लगती है। लेकिन वहीं जब यहाँ काम करने वाले श्रमिक अपने हक़ अधिकार की माँग करते हैं तो दोनों ही सरकारें कन्नी काटती रहती हैं।

दुनिया की सबसे ताक़तवर कम्पनियों में से एक को हराकर अमेज़न के मज़दूरों ने कैसे बनायी अपनी यूनियन

दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक अमेज़न लगातार अपने यहाँ मज़दूरों की यूनियन बनने से रोकने की कोशिश करती रही है। यूनियन न बन पाये इसके लिए वह अरबों रुपये अदालती कार्रवाई पर और तरह-तरह की तिकड़मों पर ख़र्च करती रही है। मज़दूरों को डराने-धमकाने, उनके बीच फूट डालने के लिए उसने बाक़ायदा कई फ़र्मों को करोड़ों के ठेके दिये हुए हैं।

मई दिवस 1886 से मई दिवस 2022 : कितने बदले हैं मज़दूरों के हालात?

इस वर्ष पूरी दुनिया में 136वाँ मई दिवस मनाया गया। 1886 में शिकागो के मज़दूरों ने अपने संघर्ष और क़ुर्बानियों से जिस मशाल को ऊँचा उठाया था, उसे मज़दूरों की अगली पीढ़ियों ने अपना ख़ून देकर जलाये रखा और दुनियाभर के मज़दूरों के अथक संघर्षों के दम पर ही 8 घण्टे काम के दिन के क़ानून बने। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि 2022 में कई मायनों में मज़दूरों के हालात 1886 से भी बदतर हो गये हैं। मज़दूरों की ज़िन्दगी आज भयावह होती जा रही है। दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए 12-12 घण्टे खटना पड़ता है।

भगतसिंह की विरासत को विकृत कर हड़पने की घटिया कोशिश में लगी ‘आप’

पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के बाद से भगतसिंह के अनुयायी होने का तमगा हासिल करने में लगी हुई है। इसके ज़रिए ‘आप’ ख़ुद को ‘सच्चा राष्ट्रवादी’ साबित करना चाहती है। चुनाव जीतने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान ने भगतसिंह के गाँव खटकड़ कलाँ में जाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और भगतसिंह के सपनों को पूरा करने के बड़े-बड़े दावे किये, जिनका असलियत से कोई लेना देना नहीं है।

मेहनतकशों पर कोरोना की तीसरी लहर की मार

कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। देश के कई राज्यों में कोरोना केसों की संख्या कम हो रही है और कई राज्यों में इसका अधिकतम उभार आना अभी बाक़ी है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे शहरों में केस अब कम हो रहे हैं। वहीं कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बेंगलुरु में अभी भी फैलना जारी है। 23 जनवरी तक पूरे देश मे 3,06,064 कोरोना केस आ चुके हैं और प्रतिदिन औसतन 500-600 मौतें हो रही हैं। इस बार पिछले वर्ष की तरह मौतें नहीं हो रहीं, पर इसके बावजूद यह बड़े पैमाने पर फैल रहा है। कोरोना का नया वेरियेण्ट ओमिक्रॉन उतना घातक नहीं है। यह फैलता ज़्यादा तेज़ है, लेकिन इसके कारण मृत्यु दर अभी काफ़ी कम ही है।