बुलन्दशहर की हिंसा : किसकी साज़िश?
अब भी सँभल जाओ, इससे पहले कि पूरा समाज पागल बना दी गयी जानलेवा भीड़ के हवाले कर दिया जाये!

 नवमीत

जैसाकि पहले से आशंका थी, आम चुनावों से पहले देश में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिशें तेज़ हो गयी हैं। कुछ समय पहले से ही अयोध्या में राम मन्दिर बनाने के मुद्दे को फिर से हवा दी जा रही थी। लव जिहाद व गौहत्या जैसे मुद्दे तो तब से गर्म चल रहे थे जब से केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनी है। बीच-बीच में राज्यों के चुनाव हुए तो ये तमाम मुद्दे और भी गर्मी पकड़ते रहे हैं। गौरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएँ भी लगातार जारी हैं। ताज़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर का है। वहाँ योजनाबद्ध ढंग से गौहत्या के नाम पर भीड़ को भड़काया गया और फिर हिंसा, आगजनी व उत्पात मचाया गया। भीड़ को नियन्त्रित करने के लिए ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस अधिकारी की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी। साथ में हमेशा की ही तरह सोशल मीडिया पर भी तमाम तरह की अफ़वाहें फैला कर माहौल को और ख़राब करने की पूरी कोशिश की जाती रही। हिंसा के दौरान सुमित नामक एक और युवक मारा गया। बाद में तस्वीरों और वीडियो से यह साफ़ हो गया कि वह भी हिंसा करने वालों में शामिल था। हर चुनाव से पहले इस तरह की घटना होना अब आम बात हो गयी है। लेकिन हर बार की ही तरह यहाँ भी कुछ गम्भीर सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनके बारे में बात करना बहुत ज़रूरी है।

3 दिसम्बर को बुलन्दशहर के महाव गाँव के खेतों में गाय के मांस के टुकड़े मिले थे। ये टुकड़े बाक़ायदा गन्ने के खेत में इस तरह से लटकाये गये थे जिससे दूर से दिखायी दे जायें। बाद में यह भी पता चल गया कि जानवर को कम से कम 48 घण्टे पहले मारकर वहाँ लाया गया था। ग़ौरतलब है कि इसके 3 दिन बाद यानी 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी आने वाली थी और राम मन्दिर का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ था। इसी दिन घटनास्थल से 50 किलोमीटर दूर ही मुसलमानों का धार्मिक समागम इज़्तिमा हो रहा था जिसमें लाखों मुसलमान शिरक़त कर रहे थे। अफ़वाह यह भी फैलायी गयी थी कि गौहत्या की वारदात को इज़्तिमा में शामिल हुए लोगों ने अंजाम दिया है। सुदर्शन न्यूज़ नामक संघी न्यूज़ चैनल के मालिक सुरेश चह्वाणके ने तो बाक़ायदा इस बात की झूठी ख़बर भी फैलायी थी जिसका खण्डन यूपी पुलिस ने ट्वीट करके किया। यहाँ एक चीज़़ और देखने वाली थी कि महाव गाँव बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाइवे पर पड़ता है और इज़्तिमा के समापन के बाद इस मार्ग से लाखों मुसलमानों को गुज़रना था। ‘दैनिक जागरण’ की ख़बर के अनुसार महाव गाँव में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद संघ परिवार के हिन्दू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने चिरगाँवठी गाँव के पास बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाईवे पर मांस के टुकड़ों को ट्रैक्टर-ट्राली में रख कर जाम लगा दिया था। जिस समय जाम लगाया गया था, उसके ठीक एक घण्टे पहले यानी 11 बजे इज़्तिमा का समापन हो गया था और इसी मार्ग से इज़्तिमा में शामिल मुसलमानों को अपने वाहनों से लौटना था। दंगे के लिए इससे बेहतर जगह और समय क्या हो सकता था? पुलिस ने समय रहते मुसलमानों को तो घटनास्थल से पहले ही दूसरे रूट से भेज दिया था लेकिन घटनास्थल पर हिंसा भड़क उठी। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में भीड़ और पुलिस की झड़प हो गयी जिसमें एक व्यक्ति सुमित और एक पुलिस अफ़सर सुबोध कुमार सिंह की गोली लगने से मौत हो गयी। सुबोध कुमार को गोली मारने से पहले बुरी तरह पीटा और घसीटा भी गया था।

पुलिस ने इस मामले में बजरंग दल के कार्यकर्ता योगेश राज और हिन्दू संगठनों के अन्य कार्यकर्ताओं सहित 27 लोगों को नामजद किया है। फिर 5 दिसम्बर को बजरंग दल के संयोजक व इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या में मुख्य आरोपी योगेश राज का एक वीडियो सामने आया। वीडियो में योगेश राज ख़ुद को निर्दोष बता रहा है और कह रहा है कि वह घटना के वक़्त स्याना थाने में एफ़आईआर करवाने गया हुआ था। जागरण अख़बार के अनुसार स्याना थाने के मुंशी ने बताया कि योगेश राज ने एफआईआर 12:43 मिनट पर दर्ज करवाई थी जिसकी सीपीआई लेकर वह 12:50 पर थाने से निकल गया। भीड़ और पुलिस की झड़प लगभग 1 बजे शुरू हुई और 1:35 मिनट पर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को गोली मारी गयी थी। जहाँ यह घटना हुई वह जगह थाने से 11 किमी दूर है। 12:50 से 1:35 के बीच में 45 मिनट के समय में 11 किलोमीटर जाना मुश्किल काम नहीं है। पुलिस का कहना है कि योगेश थाने से निकल कर सीधा घटनास्थल पर पहुँच गया और लोगों को भड़काने लगा।

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक पुलिस योगेश को गिरफ़्तार नहीं कर सकी थी। नवभारत टाइम्स की ख़बर के अनुसार पुलिस को उसके मोबाइल की लोकेशन दिल्ली और उसके आसपास इलाक़े में मिली है। अख़बार के न्यूज़पोर्टल ने लिखा है कि पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि योगेश राज 6 दिसम्बर तक दिल्ली में एक हिन्दू संगठन के नेता के घर में शरण लिये हुए था। सवाल यह है कि अगर पुलिस को उसकी लोकेशन पता थी तो गिरफ़्तारी क्यों नहीं हो पा रही थी? क्या पुलिस पर “ऊपर” से दबाव था?

दूसरी तरफ़ सुमित और सुबोध कुमार के शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ तो एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। इनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार दोनों को .32 बोर के पिस्टल से गोली मारी गयी थी। सवाल यह उठता है कि दोनों को कहीं एक ही हथियार से एक ही व्यक्ति द्वारा तो गोली नहीं मारी गयी है?

घटना का एक और वीडियो सामने आया है जिसमें पता चल रहा है कि खेत में खड़े एक पुलिसवाले को देख आक्रोशित भीड़ पथराव करती हुई…मारो-मारो की आवाज़ लगा रही है। ग़ौरतलब है कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार ही दादरी में अख़लाक हत्याकाण्ड के जाँच अधिकारी थे। अख़लाक को भी गौहत्या की अफ़वाह के चलते भीड़ द्वारा मार दिया गया था। अभी सुबोध कुमार का एक पुराना वीडियो आया है जिसमें वह कह रहे हैं कि अख़लाक हत्याकाण्ड की जाँच को प्रभावित करने के लिए उन पर ऊपर से लगातार दबाव बनाया जा रहा था। ज़ाहिर है वह बुलन्दशहर की घटना से पहले से ही कट्टरपन्थी हिन्दू संगठनों के निशाने पर थे।

जागरण अख़बार ने लिखा है कि इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में सामने आया है कि छह युवक घटनास्थल से क़रीब 500 मीटर दूर बैठे थे। इन सभी युवकों के चेहरे पर नक़ाब था ताकि उन्हें कोई पहचान ना सके। इसलिए रिपोर्ट में इन युवकों के नाम नहीं दिये गये हैं। अनुमान है कि यही छह युवक पूरे घटनाक्रम के साज़िशकर्ता हो सकते हैं। इनकी तलाश की जा रही है। ये युवक कौन थे और किस मक़सद से वहाँ बैठे थे यह एक गम्भीर सवाल है।

घटना जिस जगह हुई वह चिरगाँवठी गाँव की पुलिस चौकी के पास है। नवभारत टाइम्स की ख़बर के अनुसार गाँव के प्राथमिक और जूनियर माध्यमिक विद्यालय में तीन दिसम्बर को 150 से अधिक छात्रों को समय से पहले सुबह सवा 11 बजे ही मिड डे मील दे दिया गया था। स्कूल में मिड डे मील परोसने वाले राजपाल सिंह ने कहा कि उस दिन उसे भोजन जल्दी वितरित करने और बच्चों को घर भेजने के आदेश मिले थे। इसके अलावा शिक्षकों को भी जल्द घर निकल जाने को कहा गया था। आदेश का कारण बताया गया था कि उस दिन स्थिति खराब हो सकती थी।

बीबीसी हिन्दी ने लिखा है कि “गाँव के ठीक बग़ल में अगर रात को दर्जन भर पशुओं की हत्या हुई भी तो दो बड़े सवालों का जवाब किसी के पास नहीं। पहला ये कि दर्जन भर पशुओं को मारने के लिए कितने लोग पहुँचे थे और कहाँ से आये? फिर वे ग़ायब कैसे हो गये? दूसरा ये कि दर्जन भर पशुओं को मारते समय जो कोलाहल मचता है उसे रात के सन्नाटे में किसी गाँव वाले ने क्यों नहीं सुना?” ये तमाम बातें हैं जो गम्भीर सवाल खड़े करती हैं।

इतनी बड़ी घटना होने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारी की हत्या की कठोरता से जाँच करने के बजाय पुलिस को गौहत्या का पता लगाने के आदेश दे दिये। अगर कहीं गौहत्या होगी तो इसकी जि़म्मेदारी पुलिस और प्रशासन की होगी। मुख्यमन्त्री ने गौहत्या की ज़िम्मेदारी तो तय कर दी लेकिन गाय के नाम पर इंसानों की हत्या की ज़िम्मेदारी किसकी होगी? योगी ने जल्द से जल्द गौ हत्यारों को पकड़ने के आदेश दिये जबकि इंसानों की हत्या को निहायत बेशर्मी के साथ ”दुर्घटना” बता दिया।

इस दौरान पुलिस ने हिंसा के मुक़दमे में कुल 27 लोगों को नामज़द किया है जिनमें से 4 की गिरफ़्तारी हो चुकी है। नामज़द लोगों में मुख्य आरोपी योगेश राज बजरंग दल का जि़ला संयोजक है। बजरंग दल का दंगे फैलाने का पुराना इतिहास रहा है। कई साल पहले ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स व उनके दो बच्चों को ज़िन्दा जलाने में भी इसी संगठन के कार्यकर्ता दारासिंह को सज़ा हुई थी। गुजरात दंगे हों या मुज़फ़्फ़रनगर दंगे हर जगह आरएसएस के इस संगठन का नाम आगे रहता आया है। दो साल पहले ख़बर आयी थी कि यह संगठन उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में “आत्मरक्षा शिविर” नाम से आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र चला रहा है। इन केन्द्रों में कहने को तो आत्मरक्षा सिखाने की बात होती है लेकिन हक़ीक़त में यहाँ अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलायी जाती है और उसे भुनाते हुए उनके क़त्लेआम के लिए हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

ज़ाहिर है, यह सब एकदम से नहीं हुआ है, इसकी तैयारियाँ काफ़ी समय से चल रही थीं। फिर झूठ की तो आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने फै़क्टरी लगा रखी है। हिटलर के प्रचार मन्त्री गोएबल्स का कहना था कि अगर किसी झूठ को सौ बार दोहराओ तो वह सच बन जाता है। आरएसएस सहित दुनिया के तमाम फासीवादी इसी मूल मन्त्र पर चलते हैं। और आरएसएस को इसमें ख़ासतौर पर महारत हासिल है। आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी। उस समय, जबकि सारा देश अंग्रेज़ों से मुक्ति की लड़ाई लड़ रहा था, आरएसएस ने अंग्रेज़ों से सहयोग की नीति अपनायी थी। अंग्रेज़ देश में हिन्दू-मुस्लिम को आपस में लड़वा कर शासन करते थे, उनकी सेवा करते हुए आरएसएस ने यह बख़ूबी सीखा। गौरक्षा समितियाँ भी इस संगठन ने तभी बनानी शुरू कर दी थीं, और तभी से इसके निशाने पर मुसलमान रहे हैं। गोएबल्स के पदचिन्हों पर चलते हुए आरएसएस ने 100 नहीं बल्कि करोड़ों बार यह बात दोहरायी है कि मुसलमान देश के लिए ख़तरा हैं, ये विदेशी हैं। इन्हें भगा देना चाहिए, ख़त्म कर देना चाहिए। और यह कि मुस्लिम जानबूझ कर बीफ़ खाते हैं, ताकि हिन्दुओं को चिढ़ा सकें। लेकिन जो विदेशी, यानी अंग्रेज़, असल में बीफ़ खाते थे, देश को ग़ुलाम बना कर बैठे थे, उनके आरएसएस तलवे चाटता था। अभी कुछ सालों से, यानी बाबरी ध्वंस के बाद से, इन्होंने अपनी ताक़त में लगातार इज़ाफ़ा किया है और इसी दौरान इनके झूठे प्रचार में भी लगातार इज़ाफ़ा होता आया है। अब हर कहीं लगातार दंगे और साम्प्रदायिक हिंसा की ख़बरें आ रही हैं। गुजरात दंगों से पहले भी ये लोग ऐसी घटिया वारदातें करते रहते थे लेकिन उसके बाद से तो इनकी बाढ़ सी आ गयी है। कभी दंगे, कभी विरोधियों की दिन-दिहाड़े सुनियोजित हत्याएँ, तो कभी मॉब लिंचिंग। कभी गाय के नाम पर, कभी लव जिहाद के नाम पर, कभी मन्दिर-मस्जिद के नाम पर।

अच्छे दिन लाने का वायदा करके सत्ता में आयी मोदी सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में अच्छे दिन लाने का काम सिर्फ़ पूँजीपतियों के लिए किया है। अपने हर चुनावी वायदे का मज़ाक़ उड़ाते हुए मोदी जी कभी बेरोज़गारों को पकौड़े तलने की सलाह दे रहे हैं तो कभी नोटबन्दी जैसी आपदाएँ पैदा कर रहे हैं। अब जबकि चुनाव आने वाले हैं तो साम्प्रदायिक तनाव लगातार बढ़ाया जा रहा है। और इसके कारण भी ज़ाहिर हैं। पूरी दुनिया सहित भारत भी असाध्य आर्थिक संकट की चपेट में है। पूँजीवादी व्यवस्था को इससे उबरने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। असल में होता यह है कि पूँजीवाद में समाज की तमाम सम्पत्ति चन्द लोगों के पास आ जाती है और बहुसंख्यक मेहनतकश मज़दूर, किसान और निम्न मध्यवर्ग लगातार वंचित होकर पिसता चला जाता है। जब पूँजीवाद का संकट आता है तो हालात और बदतर होने लगते हैं। बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छँटनी होती है, बेरोज़गारी फैलती है, छोटे धन्धे बन्द होने लगते हैं। भुखमरी, बेरोज़गारी से त्रस्त जनता में आक्रोश बढ़ता जाता है और इस समय कोई सही क्रान्तिकारी शक्ति नेतृत्व देने के लिए हो तो क्रान्ति होने की सम्भावना भी बढ़ने लगती है। ऐसे में पूँजीपति वर्ग के पास एक ही चारा बचता है। वह होता है फासीवाद की शरण में जाने का। फासीवाद एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है जो अपना आधार समाज के तमाम संस्तरों में बनाता है। अधिकतर मध्यवर्ग में और काफ़ी हद तक मज़दूरों में भी। यह जनता का ध्यान मुख्य समस्या से हटाने के लिए एक काल्पनिक शत्रु का निर्माण करता है। जर्मनी में हिटलर की पार्टी ने यहूदियों को शत्रु बताया था। भारत में आरएसएस मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को बताता है। फासीवाद झूठा प्रचार करता है कि यह कथित शत्रु ही समस्याओं का असली कारण है। और असली समस्याएँ भी भुखमरी, अशिक्षा, महँगाई और बेरोज़गारी नहीं बल्कि लव जिहाद, गौहत्या और मन्दिर-मस्जिद हैं। इन समस्याओं के हल के लिए वह ”फ़ाइनल सॉल्यूशन” देता है कि इस कथित शत्रु को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए। इसी झूठी चीज़़ का करोड़ों बार प्रचार करके इसे सच बनाने की कोशिश की जाती है। फासीवाद पुराने अतीत की महानता का गौरवगान करता है, अपने धर्म और नस्ल को सर्वश्रेष्ठ बताता है, देश-धर्म को ख़तरे में बताता है, युद्ध और सेना का गुणगान करता है, सस्ती देशभक्ति का प्रचार करता है। इनसे लोगों को लगता है कि अहा! यही तो स्वर्ग है। जबकि असल में यह घृणित फासीवादी नरक होता है। लोगों का ध्यान भटकाकर और उन्हें आपस में लड़वाकर फासीवाद अपने पूँजीवादी आक़ाओं को दोनों हाथों से जनता की मेहनत और देश के संसाधनों की लूट की खुली छूट दे देता है।

मोदी की सरकार और संघ परिवार असल में यही कर रहे हैं। लेकिन हमें फासीवादियों की इन कुत्सित साज़िशों का शिकार न होकर इनका भण्डाफोड़ करना चाहिए। शहीदे आज़म भगतसिंह ने कहा था कि “लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुक़सान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी ज़ंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।”

यही बात याद रखने की ज़रूरत है। हर जाति व धर्म से सम्बन्धित देश की मेहनतकश जनता को इनके बहकावे में न आकर इनके घटिया इरादों को नाकाम करना चाहिए और इन्हें मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपनी एकता क़ायम रखनी चाहिए।

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2018


 

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