Category Archives: संघर्षरत जनता

राष्ट्रपति मोर्सी सत्ता से किनारे, मिस्र एक बार फिर से चौराहे पर

इस तरह एक वार फिर, मिस्र की घटनाएँ यह साफ कर रही हैं कि पूँजीपति वर्ग की सत्ता का विकल्‍प मज़दूर वर्ग की सत्ता ही है और पूँजीवाद का विकल्‍प आज भी समाजवाद है। और किसी भी तरीके से पूँजीवाद का विरोध हमें ज़्यादा से ज़्यादा किसी चौराहे पर लाकर ही छोड़ सकता है, रास्ता नहीं दिखा सकता। भविष्य का रास्ता मज़दूर वर्ग की विचारधारा मार्क्सवाद और मार्क्सवादी उसूलों पर गढ़ी तथा जनसंघर्षों-आंदोलनों में तपी-बढ़ी मज़दूर वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी ही दिखा सकती है। मगर तब भी मिस्र की ताजा घटनाओं का महत्त्व कम नहीं हो जाता, इनसे यह एक बार फिर साबित होता है कि जनता अनंत ऊर्जा का स्रोत है, जनता इतिहास का बहाव मोड़ सकती है, मोड़ती रही है और मोड़ती रहेगी। मिस्र का आगे का रास्ता फिलहाल अँधेरे में डूबा दिखाई दे रहा है, लेकिन यह अकेले मिस्र की होनी नहीं है, तमाम दुनिया में अवाम रास्तों की तलाश कर रहा है।

असंगठित क्षेत्र के बादाम मज़दूरों ने 60 से ज्यादा फ़ैक्ट्रियों में 6 दिन की हड़ताल से मालिकों को झुकाया

पिछली हड़ताल की गलतियों से मज़दूरों ने सीख लिया था कि मज़दूरों की व्यापक एकता और सही नेतृत्व ही उन्हें जीत दिला सकता है। केएमयू की पकड़ मज़दूरों में व्यापक और गहरी हुई थी इसकी वजहें थीं, मज़दूरों के बीच सतत राजनीतिक प्रचार करना, मालिक द्वारा पैसा रोके जाने या पुलिस या दबंगों द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर मज़दूरों को संगठित करके संघर्ष करना। इसके अलावा इलाके में सुधार कार्य करना। इन सब कामों से केएमयू पर मज़दूरों का विश्वास बढ़ा था। इलाके में मौजूद दलाल ट्रेड यूनियन एक्टू का पूरी तरह से सफाया हो जाने का जिसके लोग मज़दूरों में भ्रम फैलाने और दलाली में लगे रहते थे, केएमयू को फायदा हुआ। अन्य पेशे के मज़दूरों जिनमें मुख्य रूप से भवन निर्माण मज़दूर, पेपर प्लेट मज़दूर, वॉकर फैक्ट्री मज़दूर आदि के खुलकर बादाम मज़दूरों के संघर्ष में साथ आने से मज़दूरों की इलाकाई एकता मजबूत हुई है।

इलाहाबाद में फासिस्टों की गुण्डागर्दी के ख़िलाफ़ छात्र सड़कों पर

फासिस्ट ताकतें अपने खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनना चाहती। और भारत में इनके हौसले लगातार बढ़ ही रहे हैं। पिछले दिनों, अंधविश्वास और जादू-टोने के खिलाफ लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र डाभोलकर की हत्या कर दी गयी, फिर पुणे में उनकी श्रद्धांजलि सभा पर एबीवीपी और बजरंग दल के गुंडों ने हमला करके आयोजक छात्रों को घायल कर दिया। इसी तरह, इलाहाबाद में लगायी जाने वाली दो प्रगतिशील दीवार पत्रिकाओं ‘प्रतिरोध’ और ‘संवेग’ को फाड़ने और उन्हें लगाने वाले छात्रों से फोन पर गाली गलौज करने और गुजरात के मुसलमानों की तरह काटकर फेंक देने की धमकी देने का मामला सामने आया है।

लुटेरे गिरोहों के शिकार औद्योगिक मज़दूर प्रशासन और फ़ैक्टरी मालिकों के ख़िलाफ़ संघर्ष की राह पर

लुधियाना में लूट-खसोट की वारदातों से तंग आकर बहादरके रोड वाले इलाक़े के हज़ारों फ़ैक्टरी मज़दूरों ने फ़ैक्टरियों में काम बन्द करके सुरक्षा बन्दोबस्त ना करने के ख़िलाफ़ पुलिस-प्रशासन और मालिकों के ख़िलाफ़ रोषपूर्ण प्रदर्शन किया। पिछले एक महीने में दर्जन से ज़्यादा लूट-खसोट की वारदातें इस इलाक़े में काम करने वाले मज़दूरों के साथ हो चुकी हैं। ये वारदातें आमतौर पर तनख़्वाह और एडवांस मिलने वाले दिनों में 10 से 15 तारीख़ और 25 से 30 तारीख़ के बीच होती हैं।

दिल्ली में बादाम मज़दूरों की हड़ताल की शानदार जीत!

24 जून को मालिको ने अन्ततः यूनियन के सदस्यों के साथ बैठक में माँगें मानने का लिखित समझौता किया जिसके बाद इलाके में मज़दूरों ने एक विजय रैली निकालकर अपनी जीत की घोषणा की। यह जीत सिर्फ़ बादाम मज़दूरों की नहीं बल्कि इलाके के उन मज़दूरों की भी है जो इलाक़ाई एकता के आधार पर बादाम मज़दूरों के साथ खड़े थे। इस हड़ताल में पेपर प्लेट मज़दूर, निर्माण मज़दूर, कुकर से लेकर खिलौना व अन्य फ़ैक्ट्रियों के मज़दूर बादाम मज़दूरों के साथ थे।

मारुति सुजुकी मज़दूर आन्दोलन-एक सम्भावनासम्पन्न आन्दोलन का बिखराव की ओर जाना…

हमारा मानना है कि मारुति सुजुकी के मज़दूरों ने लम्बे समय तक एक साहसपूर्ण संघर्ष चलाया और वह साहस एक मिसाल है। लेकिन यूनियन नेतृत्व की ग़लत प्रवृत्तियों, अवसरवाद और व्यवहारवाद के कारण आन्दोलन को सही दिशा नहीं मिल सकी और यही कारण है कि आज आन्दोलन इस स्थिति में है। दूसरा कारण, आन्दोलन में ‘इंक़लाबी-क्रान्तिकारी’ कामरेडों की अराजकतावादी संघाधिपत्यवादी, पुछल्लावादी सोच, और कानाफूसी और कुत्साप्रचार की राजनीति का असर है। और तीसरा असर है, एम.एस.डब्ल्यू.यू. के नेतृत्व का स्वयं का पुछल्लावाद

मेट्रो के ठेका कर्मचारियों ने प्रदर्शन कर डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला फूंका!

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरर्पोरेशन व ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम क़ानूनों के ग़म्भीर उल्लंघन के ख़िलाफ़ दिल्ली मेट्रो रेल कामगार यूनियन के बैनर तले सैंकड़ों मेट्रो कर्मियों ने जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया और डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला भी फूँका। मेट्रो कर्मियों ने बताया कि मेट्रो प्रशासन और अनुबन्धित ठेका कम्पनियों की मिलीभगत के कारण ही यहाँ श्रम-क़ानूनों का पालन नहीं किया जाता; जिसके चलते मेट्रो कर्मियों के हालात बदतर हो रहे है। ज्ञात हो कि मेट्रो प्रबन्धन अगले महीने की पहली तारीख़ को क़ानूनों को ताक़ पर रखते हुए 250 मेट्रो मज़दूरों को काम से निकाल रहा है। दिल्ली मेट्रो रेल प्रबंधन की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए दिल्ली मेट्रो रेल कामगार यूनियन की अगुवाई में मेट्रो मज़दूरों ने डी.एम.आर.सी. प्रशासन का पुतला फूँकने के बाद एक ज्ञापन केन्द्रीय श्रम-मंत्री, क्षेत्रिय श्रमायुक्त व मेट्रो प्रबन्धक मंगू सिंह को सौंपा।

नोएडा में मज़दूरों का आक्रोश सड़कों पर फूटा

नोएडा का औद्योगिक इलाका गत 20-21 फरवरी को मीडिया में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में था। वजह थी मज़दूरों के आक्रोश का सड़कों पर फूटना। पूँजीवादी ख़बरिया चैनल और अख़बार मज़दूरों को गुण्डा, अपराधी और बल्बाई घोषित कर रहे थे। मगर यही मीडिया मज़दूरों के ऊपर होने वाले रोज़-रोज़ के अन्याय और ज़ोर-ज़ुल्म पर चुप्पी साधे रहता है। देश के अन्य औद्योगिक इलाकों की तरह नोएडा के कम्पनी मालिक श्रम क़ानूनों का खुले आम उल्लंघन करते हैं, यह तो किसी से छुपा नहीं है, मगर अब तो पूरी की पूरी तनख़्वाह भी मार ली जा रही है। नोएडा में ऐसे हज़ारों मज़दूर मिल जायेंगे जिनकी एक-एक दो-दो महीने की तनख़्वाह कोई न कोई बहाना बनाकर मार ली गई है। इनमें से ज़्यादातर मामलों में मालिकों मैनेजरों और तथाकथित ठेकेदारों की मिलीभगत होती है। ऐसी ही एक घटना 20 वर्षीय मज़दूर विकास व उसके साथी मज़दूरों के साथ हुई। विकास के अनुसार वह डी – 125/63, नोएडा में हेल्पर के रूप में काम करता था।

दिल्ली में बादाम मज़दूर एक बार फिर हड़ताल की राह पर!

इस पूरे संघर्ष को महिला मज़दूरों ने करावलनगर मज़दूर यूनियन के बैनर तले बड़े ही सुनियोजित तरीके और रणनीतिक कुशलता से आगे बढ़ाया है। इस लड़ाई के दौरान इन लोगों ने पुलिस प्रशासन की “सक्रियता” का मुँहतोड़ जवाब देते हुए जीवट और बहादुरी का परिचय दिया है। मालिकों की समन्वय और समझौता नीति की धज्जियाँ उड़ाकर उनकी नींदें हराम कर दी हैं। किसी भी हालत में वे अपनी माँगों से डिगना नहीं चाहतीं और अपने तीखे तेवर के साथ संघर्ष में जुटी हैं। इतिहास बताता है कि विश्व में जहाँ भी बड़ी और जुझारू लड़ाइयाँ लड़ी गयीं सभी में महिला मज़दूरों ने अग्रणी भूमिका निभायी। सर्वहारा वर्ग की विजय अपनी इस आधी आबादी को साथ लिये बिना सम्भव नहीं। करावलनगर की स्त्री मज़दूरों का संघर्ष ज़िंदाबाद!

वज़ीरपुर में ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के नेतृत्व में हड़ताल

गरम रोला मज़दूर एकता समिति को अपने संघर्ष को गरम रोला के मज़दूरों के साथ ठंडा रोला के मज़दूरों, सर्कल के मज़दूरों और पोलिश के मज़दूरों व वजीरपुर इलाके के सभी फ़ैक्टरियों के मज़दूरों के साथ जोड़ना होगा। 700 कारखानों में मज़दूरों की ज़्यादातर माँगें समान हैं। वजीरपुर इलाके के मज़दूर ऊधम सिंह पार्क, शालीमार बाग व सुखदेव नगर की झोपड़पट्टियों में रहते हैं और यहाँ मज़दूरों की आवास, पानी व अन्य साझा माँगें बनती हैं। इन सभी माँगों को समेटने और इस लड़ाई को व्यापक बनाने का काम एक इलाकाई यूनियन ही कर सकती है। इसलिए गरम रोला मज़दूर एक