Category Archives: संघर्षरत जनता

अरब धरती पर चक्रवाती जनउद्रेक का नया दौर और साम्राज्यवादी सैन्य-हस्तक्षेप

वर्तमान जनविद्रोहों की लहर यदि पीछे धकेल दी जाती है तो हो सकता है कि कुछ समय के लिए अरब जगत में अस्थिरता-अराजकता-गृहयुद्ध जैसा माहौल बन जाये। इस्लामी कट्टरपन्थी ताक़तों का प्रभाव-विस्तार भी हो सकता है। तेल सम्पदा पर इज़ारेदारी के लिए साम्राज्यवादी होड़ (जो आज सतह के नीचे है) कुछ नये समीकरणों को जन्म दे सकती है। फिलिस्तीन के अतिरिक्त लेबनान और सीरिया को भी कुटिल इज़रायली षड्यन्त्रों का शिकार होना पड़ सकता है। बचे हुए साम्राज्यवादी पिट्ठू और अधिक दमनकारी रुख़ अपना सकते हैं। लेकिन ये सभी नतीजे और प्रभाव अल्पकालिक ही होंगे। अरब जगत अब वैसा नहीं रह जायेगा, जैसा वह था। यदि सन्नाटा या उलटाव के दौर आयेंगे भी, तो लम्बे नहीं होंगे। अपेक्षाकृत अधिक छोटे अन्तरालों पर जनज्वार उमड़ते रहेंगे। उनकी आवर्तिता बढ़ती जायेगी और उग्रता भी। वर्तमान जन-विद्रोहों में मज़दूर वर्ग की सक्रियता उल्लेखनीय रही है। आगे, उभार के हर नये चक्र में, मज़दूर वर्ग, वर्ग संघर्ष की पाठशाला से शिक्षा लेगा और अपनी ऐतिहासिक विरासत को याद करेगा। अरब धरती पर वामपन्थ का पुराना इतिहास रहा है।

मज़दूरों और नौजवानों के विद्रोह से तानाशाह सत्ताएँ ध्वस्त

हर ऐसे विद्रोह के बाद ज़नता की राजनीतिक पहलकदमी खुल जाती है और वह चीज़ों पर खुलकर सोचने और अपना रुख तय करने लगती है। यह राजनीतिक उथल-पुथल भविष्य में नये उन्नत धरातल पर वर्ग संघर्ष की ज़मीन तैयार करती है। इसके दौरान ज़नता वर्ग संघर्ष में प्रशिक्षित होती है और आगे की लड़ाई में ऐसे अनुभवों का उपयोग करती है। मिस्र के मज़दूर आन्दोलन में भी आगे राजनीतिक स्तरोन्नयन होगा और मुबारक की सत्ता के पतन के बाद जो थोड़े सुधार और स्वतन्त्रता हासिल होंगे, वे मज़दूर आन्दोलन को तेज़ी से आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे। लेनिन ने कहा था कि बुर्जुआ जनवाद सर्वहारा राजनीति के लिए सबसे अनुकूल ज़मीन होता है। जिन देशों में निरंकुश पूँजीवादी सत्ताओं की जगह सीमित जनवादी अधिकार देने वाली सत्ताएँ आयेंगी, वहाँ सर्वहारा राजनीति का भविष्य उज्ज्वल होगा। इस रूप में पूरे अरब विश्व में होने वाले सत्ता परिवर्तन यदि क्रान्ति तक नहीं भी पहुँचते तो अपेक्षाकृत उन्नत वर्ग संघर्षों की ज़मीन तैयार करेंगे। हम अरब विश्व के जाँबाज़ बग़ावती मज़दूरों, नौजवानों और औरतों को बधाई देते हैं और उनकी बहादुरी को सलाम करते हैं! हमें उम्मीद है कि यह उनके संघर्ष का अन्त नहीं, बल्कि महज़ एक पड़ाव है और इससे आगे की यात्रा करने की ऊर्जा और समझ वे जल्दी ही संचित कर लेंगे।

सीटू की गद्दारी से आई.ई.डी. के मजदूरों की हड़ताल नाकामयाब

दुर्घटना के शिकार इन मजदूरों को कम्पनी के मालिकान मशीनमैन से हेल्पर बना देते हैं और उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। बीती दीपावली के दौरान इस कारख़ाने के मजदूरों ने हड़ताल की थी और कारख़ाने पर कब्जा कर लिया था। सीटू के नेतृत्व ने इस आन्दोलन को अपनी ग़द्दारी के चलते असफल बना दिया था। सीटू के नेतृत्व ने मजदूरों को मुआवजे के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करने की बजाय उनके दिमाग़ में यह बात बिठा दी थी कि मालिक उँगलियाँ कटने के बाद भी काम से निकालने की बजाय हेल्पर बनाकर मजदूरों पर अहसान करता है। जब मजदूरों ने दीपावली के दौरान संघर्ष किया तो मालिकों ने छह मजदूरों के ऊपर कानूनी कार्रवाई का नाटक करते हुए उन्हें निलम्बित कर दिया। वास्तव में, इन मजदूरों पर कोई एफ.आई.आर. दर्ज नहीं की गयी थी। लेकिन सीटू के नेतृत्व ने इस बारे में मजदूरों को अंधेरे में रखा और उनको यह बताया कि फिलहाल कारख़ाने पर कब्जा छोड़ दिया जाये और हड़ताल वापस ले ली जाये, वरना उन मजदूरों पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। मजदूर हड़ताल वापस लेने को तैयार नहीं थे, लेकिन सीटू ने बन्द दरवाजे के पीछे मालिकों से समझौता करके हड़ताल को तोड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि वे छह मजदूर भी काम पर वापस नहीं लिए गये और मजदूरों की वेतन बढ़ाने, बोनस देने आदि की माँगों को भी मालिकों ने नहीं माना।

न्यूनतम मजदूरी और बुनियादी अधिकारों के लिए बंगलादेश के टेक्सटाइल मजदूरों का आन्दोलन

सस्ते श्रम के दोहन के लिए पूरी दुनिया की ख़ाक छानने वाले पूँजीपतियों के लिए बंगलोदश वैसी ही मनमुआफिक जगह है जैसे कि भारत और तीसरी दुनिया के अन्य देश। भारत के पूँजीपतियों की तरह ही बंगलादेश के पूँजीपति साम्राज्यवादी लुटेरों के जूनियर पार्टनर बनकर अपने देश की जनता की हाड़-तोड़ मेहनत के बूते अपनी और विदेशी लुटेरों की तिजोरियाँ भरते हैं। यह जरूर है कि यहाँ के पूँजीपति वर्ग की हैसियत भारत के पूँजीपति वर्ग जितनी नहीं है, जो एक पर्याप्त भारी-भरकम जूनियर पार्टनर है और अपने विशालकाय घरेलू बाजार के बूते पर साम्राज्यवादी देशों के तमाम शिविरों से कई बार अपनी शर्तों पर लेन-देन करता है। बंगलादेशी पूँजीपति वर्ग इसकी तुलना में काफी निर्भर है और इसकी कई मामलों में भारतीय पूँजीपति वर्ग पर भी काफी निर्भरता है।

दिल्ली में मज़दूर माँग-पत्रक आन्दोलन-2011 क़ी शुरुआत

पूँजी का आकाश चूमता महल मज़दूरों को निचोड़कर बनाया जाता है, उनके अकथ दुखों-तकलीफों के सागर में खड़ा किया जाता है। मज़दूर यदि निचुड़कर हड्डियों का कंकालभर रह जाये तो पूँजीपति उन हड्डियों का भी पाउडर पीसकर बाज़ार में बेच देगा। इसलिए हमारा कहना है कि मज़दूर वर्ग के पास लड़ने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। आज अगर हम लड़ेंगे नहीं तो आने वाली पीढ़ियाँ इतिहास में दफन हमारी हड्डियों को खोदकर बाहर निकालेंगी और कहेंगी – ‘देखो ये उन ग़ुलामों की हड्डियाँ हैं, जिन्होंने अपनी ग़ुलामी के ख़िलाफ बग़ावत नहीं की।

प्रबन्धन की गुण्डागर्दी की अनदेखी कर मज़दूरों पर एकतरफ़ा पुलिसिया कार्रवाई

आज के दौर में किसी एक फैक्टरी के मज़दूर अकेले-अकेले बहुत दूर तक अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकते। हमें अपने इलाके के मज़दूरों को गोलबन्द करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। मज़दूरों को सीटू, एटक और इण्टक जैसे मज़दूर वर्ग के ग़द्दारों से छुटकारा पाना होगा और अपनी क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन खड़ी करनी होगी।

उँगलियाँ कटाकर मालिक की तिजोरी भर रहे हैं आई.ई.डी. के मज़दूर

पिछले आठ वर्षों में हाथ पर मशीन गिरने के कारण करीब 300 मज़दूर अपने हाथ की एक उँगली, कुछ उँगलियाँ और कईयों की तो पूरी हथेली ही इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भीतर हम एक ऐसे कारख़ाने की बात कर रहे हैं जहाँ 300 मज़दूर अपने हाथ खो देते हैं, कुशल मज़दूर से बेकार बन जाते हैं, और कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती।

संघर्ष की नयी राहें तलाशते बरगदवाँ के मज़दूर

वी. एन. डायर्स धागा मिल के मज़दूरों ने मैनेजमेण्ट द्वारा गाली-गलौज, मनमानी कार्यबन्दी और 5 अगुआ मज़दूरों को काम से निकाले जाने बावत दिये गये नोटिस के जवाब में 1 अगस्त सुबह 6 बजे से कारख़ाने पर कब्ज़ा कर लिया। रात 10बजे तक पूरी कम्पनी पर मज़दूरों का नियन्त्रण था। रात ही से सार्वजनिक भोजनालय शुरु कर दिया गया। सुबह तक कम्पनी पर कब्ज़े की ख़बर पूरे गाँव में फैल गयी। कई मज़दूरों ने अपने परिवारों को फैक्टरी में ही बुला लिया। महिलाओं और बच्चों के रहने के लिए फैक्टरी खाते में अलग से इन्तजामात किये जाने लगे। कौतूहलवश गाँव की महिलाएँ भी फैक्टरी देखने के लिए उमड़ पड़ीं। मज़दूरों ने उन्हें टोलियों में बाँटकर फैक्टरी दिखायी और धागा उत्पादन की पूरी प्रक्रिया से वाकिफ कराया। फैक्टरी के भीतर और बाहर हर जगह मज़दूर और आम लोगों का ताँता लगा हुआ था। विशालकाय मशीनों और काम की जटिलता से आश्चर्यचकित ग्रामीण एक ही बात कह रहे थे ‘हे भगवान! तुम लोग इतनी बड़ी-बड़ी मशीनें चलाते हो और पगार धेला भर पाते हो!!’

कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में 100 से भी अधिक पावरलूम कारख़ानों के मज़दूरों ने कायम की जुझारू एकजुटता

कारख़ाना मज़दूर यूनियन, लुधियाना के नेतृत्व में पहले न्यू शक्तिनगर के 42 कारख़ानों के मज़दूरों की 24 अगस्त से 31अगस्त तक और फिर गौशाला, कश्मीर नगर और माधोपुरी के 59 कारख़ानों की 16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक शानदार हड़तालें हुईं। दोनों ही हड़तालों में मज़दूरों ने अपनी फौलादी एकजुटता और जुझारू संघर्ष के बल पर मालिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। जहाँ दोनों ही हड़तालों में पीस रेट में बढ़ोत्तरी की प्रमुख माँग पर मालिक झुके वहीं शक्तिनगर के मज़दूरों ने तो मालिकों को टूटी दिहाड़ियों का मुआवज़ा तक देने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन इस हड़ताल की सबसे बड़ी उपलब्धि इस बात में है कि इस हड़ताल ने मज़दूरों में बेहद लम्बे अन्तराल के बाद जुझारू एकजुटता कायम कर दी है। 1992 में पावरलूम कारख़ानों में हुई डेढ़ महीने तक चली लम्बी हड़ताल के बाद 18 वर्षों तक लुधियाना के पावरलूम मज़दूर संगठित नहीं हो पाये थे। इन अठारह वर्षों में लुधियाना के पावरलूम मज़दूर एक भयंकर किस्म की निराशा में डूबे हुए थे। मुनाफे की हवस में कारख़ानों के मालिक उनकी निर्मम लूट में लगे हुए थे। लेकिन किसी संगठित विरोध की कोई अहम गतिविधि दिखायी नहीं पड़ रही थी। लेकिन अब फिर से कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में उनके संगठित होने की नयी शुरुआत हुई है। यही मज़दूरों की सबसे बड़ी जीत भी है। यह आन्दोलन न सिर्फ पावरलूम मज़दूरों के लिए बल्कि लुधियाना के अन्य सभी कारख़ाना मज़दूरों के लिए एक नयी मिसाल कायम कर गया है।

देश के विभिन्न हिस्सों में माँगपत्रक आन्दोलन-2011 की शुरुआत

यह एक महत्तवपूर्ण आन्दोलन है जिसमें भारत के मज़दूर वर्ग का एक व्यापक माँगपत्रक तैयार करते हुए भारत की सरकार से यह माँग की गयी है कि उसने मज़दूर वर्ग से जो-जो वायदे किये हैं उन्हें पूरा करे, श्रम कानूनों को लागू करे, नये श्रम कानून बनाये और पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों को रद्द करे। इस माँगपत्रक में करीब 26 श्रेणी की माँगें हैं जो आज के भारत के मज़दूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्यक्त करती हैं। इन सभी माँगों के लिए मज़दूर वर्ग में व्यापक जनसमर्थन जुटाने के लिए आन्दोलन चलाने के वास्ते एक संयोजन समिति का निर्माण किया गया है जो आन्दोलन की आम दिशा और कार्यक्रम को तय करेगी।