लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर

बिगुल संवाददाता

पिछले 4 अक्टूबर से लुधियाना के लगभग 45 टेक्सटाइल (पावरलूम) कारखानों में मज़दूर हड़ताल की लड़ाई लड़ रहे हैं। टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के 70 टेक्सटाइल (पावरलूम) कारखानों के मज़दूरों ने अपनी एक पंचायत करके माँग-पत्रक तैयार किया था और अपने-अपने मालिकों को सौंपा था। इस माँग-पत्रक में 30 प्रतिशत पीसरेट/वेतन वृद्धि, कम से कम 8.33 प्रतिशत के हिसाब से बोनस तथा सभी श्रम क़ानून लागू करने की माँगें उठाई गईं। 38 कारखानों के मालिकों ने मज़दूरों से 15 प्रतिशत पीसरेट/वेतन वृद्धि और 8.33 प्रतिशत बोनस लागू करने की माँग मानते हुए समझौता कर लिया। लेकिन बाकी कारखानों के मालिक मज़दूरों के अधिकार देने को तैयार नहीं हुए। इसके चलते मजबूरन मज़दूरों को हड़ताल पर जाना पड़ा है। कुछ और कारखानों के मज़दूर भी बाद में हड़ताल में शामिल हो गये। हड़ताल के बाद कुछ कारखानों में समझौता भी हो गया।

Ludhiana strike 6 oct13

इस समय टे.हो.का.यू. के नेतृत्व में 27 कारखानों के मज़दूर हड़ताल पर बैठे हैं। उधर एक मज़दूर को मालिकों द्वारा पीटे जाने के बाद 4 अक्टूबर से ही गीता नगर के लगभग 30 कारखानों के मज़दूर लाल झण्डा टेक्सटाइल-होज़री मज़दूर यूनियन के बैनर तले ऐसी ही माँगों पर हड़ताल पर बैठ गये हैं। गीतानगर में 5 कारखानों में 12 प्रतिशत वेतन/पीसरेट वृद्धि का समझौता हो चुका है। हड़ताल वाले कारख़ानों में रिपोर्ट लिखे जाने तक 12 दिन तक भी कोई समझौता नहीं हो पाया है। जहाँ मालिक अड़ियल रवैया अपनाये हुए हैं वहाँ मज़दूर भी अपने अधिकार हासिल करने तक अनिश्चितकाल तक काम ठप्प रखने पर डटे हुए हैं।

Ludhiana strike 7 oct13

मज़दूरों ने श्रम विभाग और प्रशासन तक अपनी आवाज़ पहुँचाई है। लेकिन सरकारी मशीनरी मज़दूरों के हक में कोई भी कदम उठाने को तैयार नहीं है। श्रम विभाग कार्यालय में पर्याप्त संख्या में अधिकारी और कर्मचारी ही नहीं हैं और जो हैं भी वो पूँजीपतियों के पक्के सेवक हैं। अन्य क्षेत्रों के कारखानों की तरह टेक्सटाइल कारखानों में भी श्रम कानून लागू नहीं होते हैं। मज़दूर पीस रेट पर काम करते हैं और कुछ महीने मज़दूरों को बेरोज़गारी झेलनी पड़ती है। बाकी समय उन्हें 12-14 घण्टे कमरतोड़ काम करना पड़ता है। देश-विदेश में बिकने वाले शाल व होज़री बनाने वाले इन मज़दूरों को बेहद गरीबी की ज़िन्दगी जीनी पड़ रही है। ‘बिगुल’ द्वारा इन मज़दूरों के बीच किये गये निरन्तर प्रचार-प्रसार और संगठन बनाने की कोशिशों की बदौलत अगस्त 2010 में टेक्सटाइल मज़दूरों के एक हिस्से ने अपना संगठन बनाकर एक नये संघर्ष की शुरुआत की थी। पिछले वर्ष तक इस संघर्ष की बदौलत 38 प्रतिशत पीसरेट/वेतन वृद्धि और ई.एस.आई. की सुविधा हासिल की गयी है। लेकिन लगातार बढ़ती जा रही महँगाई के कारण स्थिति फिर वहीं वापस आ जाती है। मालिकों के मुनाफे तो बढ़ जाते हैं लेकिन वे अपनेआप मज़दूरों की मज़दूरी बढ़ाने, बोनस देने तथा अन्य अधिकार देने को तैयार नहीं होते। एकजुट होकर लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई अन्य राह मज़दूरों के पास बचती नहीं है।

टेक्सटाइल होज़री कामगार यूनियन ने मज़दूरों के बीच लगातार वर्गीय चेतना का प्रचार-प्रसार किया है। नियमित चलने वाली साप्ताहिक मीटिंगों, चुनिन्दा मज़दूरों के अध्ययन मण्डल, ‘बिगुल’ अखबार, पर्चों, किताबों तथा जुबानी प्रचार आदि माध्यमों से हुए प्रचार और मालिकों के खिलाफ़ संघर्ष ने मज़दूरों में चेतना का विकास किया है और संगठन को मजबूती दी है। पिछले समय में मालिकों ने मज़दूरों की एकता तोड़ने की भरसक कोशिशें की हैं। तरह-तरह के बहाने बनाकर अगुवा मज़दूरों की छँटनी करना, डराना-धमकाना, लालच देना आदि तरह के हथकण्डे अपनाये गए हैं। मालिकों की यह खुशफहमी कि मज़दूरों का संगठन बिखर जायेगा और मज़दूर फिर से उनके पैर की जूती बन जायेंगे, इस हड़ताल ने दूर कर दी है। यह मज़दूरों में विकसित हुई चेतना की बदौलत है।

लाल झण्डा टेक्सटाइल-होज़री मज़दूर यूनियन के नेतृत्व वाले इलाके गीतानगर में हड़ताली मज़दूरों का मनोबल तोड़ने के लिए मालिकों द्वारा डराने-धमकाने के लिए पुलिस- प्रशासन की मदद ली जा रही है। 15 अक्टूबर को एक मशीन मास्टर और कारीगर के साथ एक फैक्ट्री मालिक द्वारा मारपीट की गई। इसके बाद इस इलाके के मज़दूरों और मशीन मास्टर की यूनियन द्वारा टिब्बा रोड, पुलिस चौंकी का घेराव किया गया। इस समय टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब भी मालिकों की इस गुण्डागर्दी के खिलाफ़ संघर्ष में शामिल हुई। साझे तौर पर पुलिस चौकी का घेराव करके दोषी मालिक को अन्दर करवाया गया और माफ़ी मँगवाने के बाद ही मज़दूरों ने धरना हटाया। टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष राजविन्दर का कहना है कि उनके संगठन का निरन्तर प्रयास है कि टेक्सटाइल मज़दूर व्यापक एकता बनाकर लड़ाई लड़ें। मज़दूरों में भी यही भावना है। लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों की दो इलाकों में चल रही हड़तालों में अगर कुछ हद तक भी तालमेल बनाकर लड़ाई लड़ी जाती तो मालिकों पर अधिक दबाव बनता। मज़दूरों के साथ मालिकों द्वारा मारपीट की इस घटना के बाद पुलिस चौकी पर टे.हो.का.यू. द्वारा धरने में मज़दूरों की बड़ी संख्या में भागीदारी व्यापक एकता बनाने की उनकी कोशिशों का ही एक अंग है। उनका कहना है कि श्रम अधिकारों को हासिल करने के लिए मालिकों की संगठित ताकत का मुकाबला बड़ी एकता के ज़रिए ही किया जा सकता है।

 

मज़दूर बिगुलअक्‍टूबर  2013

 


 

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