दवा उद्योग का आदमख़ोर गोरखधन्धा
अगर नकली दवा से बच भी लिया जाये तो एक नया हथकण्डा तैयार खड़ा है। पिछले साल ख़बर आयी थी कि आन्ध्रप्रदेश और तेलंगाना में अहमदाबाद की एक दवा कम्पनी से उसकी दवाओं की बिक्री बढ़ाने की एवज में 44 डॉक्टरों को कैश और गिफ्ट लेते हुए पकड़ा गया था। इंडियन मेडिकल काउंसिल ने आन्ध्रप्रदेश मेडिकल काउंसिल से इन डॉक्टरों के खिलाफ़ “एक्शन” लेने के निर्देश भी दिये थे। बहरहाल डॉक्टरों के खिलाफ़ एक्शन लिया जाना हालाँकि ज़रूरी है लेकिन इसके लिए सिर्फ डॉक्टर ज़िम्मेदार नहीं हैं। डॉक्टरों और दवा कंपनियों का यह “अपवित्र गठजोड़” कोई नई खोज नहीं है। बहुत पहले से ही दवा कंपनियाँ अपने एजेंटों के ज़रिये यह काम अंजाम देती आ रही हैं। कंपनियों और थोक व्यापारियों के लिए काम करने वाले एजेंट या मेडिकल रिप्रेज़ेंटेटिव अपने “टारगेट” पूरे करने हेतु डॉक्टरों को पकड़ते हैं और कमीशन के एवज़ में डॉक्टरों के भी टारगेट तय होते हैं। यहाँ से शुरू होता है मुनाफे़ की हवस का नंगा नाच जिसमें दवा कम्पनियाँ, दवा विक्रेता और डॉक्टर सभी एक साथ ताल से ताल मिलाते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए तमाम तरह की गैर ज़रूरी दवाएँ मरीज़ों पर थोप दी जाती हैं जो बहुत बार उनके स्वास्थ्य को नुकसान भी पहुँचाती हैं। इसके अलावा मरीज़ की जेब पर जो बोझ पड़ता है उसके बारे में लिखने की भी ज़रूरत नहीं है। साथ में बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के पीछे एक कारण उनका गैर ज़रूरी इस्तेमाल भी है।