Category Archives: श्रम क़ानून

आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 के ज़रिए मज़दूरों के अधिकारों पर फ़ासीवादी सत्ता का एक और हमला!

बीते 30 जून को फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 लाया गया। ज्ञात हो कि यह अध्यादेश केन्द्र सरकार को आवश्यक रक्षा सेवाओं में लगे फ़ैक्टरी मज़दूरों के हड़ताल पर रोक लगाने समेत अनेक अधिकारों को निरस्त करने की अनुमति देता है।

मज़दूरों की लूट और बढ़ाने के लिए अब अप्रेण्टिस क़ानून में बदलाव की तैयारी

मोदी सरकार के केन्द्र में सत्तासीन होने के बाद से ही लगातार मज़दूर विरोधी नीतियों को लागू किया जा रहा है। तमाम श्रम क़ानूनों को ढीला करने का काम किया जा रहा है। इसी कड़ी में यह सरकार अप्रेण्टिस क़ानून में बदलाव की तैयारी कर रही है। यह अनुमान है कि आने वाले मानसून सत्र में यह सरकार अप्रेण्टिस क़ानून में बदलाव से जुड़े बिल को मंज़ूरी के लिए ला सकती है। इस नये क़ानून के आने के बाद कोई भी कम्पनी 15 फ़ीसदी तक अप्रेण्टिस स्टाफ़ रख सकती है, जबकि पहले इन कम्पनियों को 10 फ़ीसदी से अधिक अप्रेण्टिस स्टाफ़ रखने की मंज़ूरी नहीं थी।

पंजाब के खेत मज़दूरों के बदतर हालात का ज़िम्मेदार कौन?

पंजाब का नाम आते ही हरेक के मन में एक ख़ुशहाल प्रदेश की छवि ही आती होगी। आये भी क्यों नहीं? यह राज्य हरित क्रान्ति की प्रयोगशाला बना और इसने खाद्यान्न उत्पादन के नये-नये कीर्तिमान स्थापित किये। लेकिन इस ख़ुशहाल छवि के पीछे एक चीज़ को हमसे छिपा दिया जाता है। वह चीज़ है इस चमक-दमक के पीछे ख़ून-पसीना बहाने वाले खेत मज़दूरों का जीवन।

कोरोना की आपदा : मालिकों के लिए मज़दूरों की लूट का अवसर

कोरोना काल को एक बार फिर अवसर में तब्दील करते हुए फासीवादी मोदी सरकार मज़दूरों की श्रम-शक्ति की लूट को तेज़ी से लागू कर रही है। कोरोना महामारी में सरकार की बदइन्तज़ामी की वजह से जब एक तरफ़ आम मेहनतकश आबादी दवा-इलाज़ की कमी और राशन की समस्या की दोहरी मार झेल रही है तब ऐसे वक्त में गोवा की सरकार ने मज़दूरों के काम के घण्टे बढ़ाकर उन पर एक और हमला किया है। कोविड-19 का हवाला देते हुए गोवा में भाजपा की सरकार ने मज़दूरों के काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिये हैं ताकि मालिकों के मुनाफ़े को बरकरार रखा जा सके।

खेतिहर मज़दूरों की बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

2011 की जनगणना के अनुसार देश में खेती में लगे हुए कुल 26.3 करोड़ लोगों में से 45% यानी 11.8 करोड़ किसान थे और शेष लगभग 55% यानी 14.5 करोड़ खेतिहर मज़दूर थे। पिछले 10 वर्षों में यदि किसानों के मज़दूर बनने की दर वही रही हो, जो कि 2000 से 2010 के बीच थी, तो माना जा सकता है कि खेतिहर मज़दूरों की संख्या 15 करोड़ से काफ़ी ऊपर जा चुकी होगी, जबकि किसानों की संख्या 11 करोड़ से और कम रह गयी होगी। मगर ग्रामीण क्षेत्र की सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद खेतिहर मज़दूरों की बदहाली और काम व जीवन के ख़राब हालात की बहुत कम चर्चा होती है।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : मज़दूरों के काम और जीवन पर एक आरम्भिक रिपोर्ट

चौड़ी-चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ मकानों की तरह बने कारख़ाने एक बार को देख कर लगता है कि कहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की जगह रिहायशी क्षेत्र तो नहीं। कई कारख़ाने तो हरे-हरे फूलदार गमलों से सज़े इतने ख़ूबसूरत मकान से दिखते हैं कि वहम होता है शायद यह किसी का घर तो नहीं। लेकिन नहीं ओखला फेज़ 1 और ओखला फेज़ 2 के मकान जैसे दिखने वाले कारख़ाने और कारख़ानों जैसे दिखने वाले कारख़ाने, सभी एक समान मज़दूरों का ख़ून निचोड़ते हैं…

कोरोना महामारी के बीच मोदी सरकार का श्रम क़ानूनों पर बड़ा हमला

जहाँ एक तरफ़ आर्थिक संकट और कोरोना महामारी के इस दौर में मेहनतकश आबादी पहले ही बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी से परेशानहाल है वहीं दूसरी तरफ़ मोदी सरकार पूँजीपतियों को मज़दूरों के ख़ून का एक-एक कतरा निचोड़ लेने के लिये बचे-खुचे श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने में बुलेट ट्रेन की स्पीड से लग गयी है। वैसे तो उदारीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद से ही श्रम क़ानूनों को कमज़ोर बनाने का काम अन्य सरकारों ने भी किया है लेकिन मोदी सरकार उन्हें पूरी तरह ख़त्म कर देने पर आमादा है।

कोरोना के बहाने मज़दूर-अधिकारों पर मोदी सरकार की डकैती

एक ऐसे वक़्त में जब कोरोना महामारी से पूरा देश जूझ रहा है फ़ासीवादी मोदी सरकार लगातार श्रम क़ानूनों पर हमले कर रही है और मज़दूरों के रहे-सहे अधिकारों को भी ख़त्म करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। कोरोना महामारी के कारण पहले से ही डगमगा रही वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस गहरी मन्दी में धँसने की ओर जा रही है उसमें पूँजीपति वर्ग का मुनाफ़ा ना मारा जाये इसके लिए दुनिया भर में सरकारों द्वारा मज़दूरों के बचे-खुचे सारे अधिकार ख़त्म किये जा रहे हैं।

सेठों को मज़दूर की लूट की छूट देने में सारी पार्टियाँ एक हैं!

कोरोना संकट ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया कि इस पूँजीवादी व्यवस्था का असली चरित्र क्या है। सरकार ने एक ओर जहाँ आनन-फ़ानन में बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन करके करोड़ो मज़दूरों को अपने हाल मरने के लिए छोड़ दिया, तो वहीं अब ‘अर्थव्यवस्था बचाने’ के नाम पर मज़दूरों की सुरक्षा और पहले से जर्जर श्रम क़ानूनों में अहम बदलाव कर उन्हें और कमज़ोर रही है।

कोरोना के बहाने मज़दूर-अधिकारों पर मोदी सरकार की डकैती

कोरोना महामारी के कारण पहले से ही डगमगा रही वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस गहरी मन्‍दी में धँसने की ओर जा रही है उसमें पूँजीपति वर्ग का मुनाफ़ा ना मारा जाये इसके लिए दुनिया भर में सरकारों द्वारा मजदूरों के बचे खुचे-सारे अधिकार खत्म किये जा रहे हैं। दुनिया भर में तमाम दक्षिणपंथी, फासीवादी सत्ताएँ ऐसे ही कड़े कदम ले रही हैं। भारत में भी मोदी सरकार पूरी नंगई के साथ अपनी मज़दूर विरोधी और पूँजीपरस्त नीतियों को लागू करने में लगी हुई है। कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था का जो नुकसान हुआ है, उसका हर्जाना यह सरकार मज़दूर वर्ग से वसूलेगी।