दिल्ली में न्यूनतम मज़दूरी पर हाई कोर्ट का फ़ैसला पूँजीवादी व्यवस्था की कलई खोल देता है
देश के किसी भी महानगर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यह भली-भाँति जानता है कि इस महँगाई और भीषण बेरोज़गारी के दौर में गुज़ारा करना कितना मुश्किल है। उस पर दिल्ली जैसे शहर में मज़दूरी करना, जहाँ न्यूनतम वेतन के भुगतान के क़ानून का नंगा उल्लंघन किया जाता है, वहाँ अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करना कितना कठिन है। लेकिन इस सबके बावजूद भी जिस न्यायपालिका को पहले मज़दूरों की ज़िन्दगी के हालात को मद्देनज़र रखना चाहिए था, उसने अपनी प्राथमिकता में मालिकों के मुनाफ़े को रखा।