Category Archives: श्रम क़ानून

बरगदवां, गोरखपुर में मज़दूर नयी चेतना और जुझारूपन के साथ एक बार फिर संघर्ष की राह पर

गोरखपुर के बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र में मिल-मालिकों व प्रबन्धन द्वारा सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम करवाने और मज़दूरों के साथ आये दिन गाली-गलौज, मारपीट और अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ दो फैक्ट्रियों, अंकुर उद्योग प्राइवेट लिमिटेड व वी.एन.डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) लिमिटेड, में क्रमशः 18 जून व 1 जुलाई को मज़दूर हड़ताल पर चले गए और अपनी जुझारू एकजुटता के दम पर उन्होंने जीत हासिल की।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन द्वारा मालिकों से लड़ी जा रही क़ानूनी लड़ाई की पहली जीत!

अकसर क़ानूनी मामलों में मज़दूरों के बीच यह भ्रम पैदा किया जाता है कि वो मालिकों के पैसे की ताक़त के आगे नहीं जीत पाएंगे। मज़दूर द्वारा लेबर कोर्ट में केस दायर करने पर मालिक बिना किसी अपवाद के कोर्ट में उसे अपना मज़दूर मानने से साफ़ इनकार कर देता है और ऐसे हालात में अगर मज़दूर एकजुट न हो तो मालिकों के लिए उन्हें हराना और भी आसान हो जाता है। लेकिन राजनीतिक आंदोलनों के ज़रिये जो दबाव वज़ीरपुर के मजदूरों ने बनाया उसके चलते लेबर कोर्ट को भी मज़दूरों के पक्ष में फैसला देना पड़ा।

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के ठेका मज़दूरों के लम्बे संघर्ष की एक बड़ी जीत!

डीएमआरसी के ठेका मज़दूर लम्बे समय से स्थायी नौकरी, न्यूनतम मज़दूरी, ई.एस.आई., पी.एफ. आदि जैसे अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में ठेका कर्मियों ने कई जीतें भी हासिल की जैसे कि टॉम ऑपरेटरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी को लागू करवाना, तमाम रिकॉल मज़दूरों के मुकदमों को सफलतापूर्वक लेबर कोर्ट में लड़ना। इस संघर्ष के साथ ही यूनियन पंजीकरण के लिए भी मज़दूर लगातार प्रयास कर रहे थे।

पंजाब सरकार द्वारा ”इंस्पेक्टर राज” के ख़ात्मे का ऐलान — पूँजीपतियों के हित में मज़दूरों-मेहनतकशों के हकों पर डाका

मौजूदा समय में जब पूरी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक संकट के बादल छाये हुए हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ा रही है, मुनाफे सिकुड़ रहे हैं, सकल घरेलू गतिरोधव गिरावट का शिकार है, तब भारत के पूँजीवादी हुक्मरान देसी -विदेशी पूँजी के लिए भारत में साजगार माहौल के निर्माण की कोशिश में लगे हुए हैं। आर्थिक सुधारों में बेहद तेज़ी भारतीय पूँजीवादी हुक्मरानों की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है। ‘’इंस्पेक्टर राज’’ के ख़ात्मे की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का भी यही कारण है। आज मज़दूरों द्वारा भी पूँजीपति वर्ग के इस हमले के ख़िलाफ़ ज़ोरदार हल्ला बोलने की ज़रूरत है। ज़रूरत तो इस बात की है कि पहले से मौजूदा श्रम अधिकारों को तुरंत लागू किया जाये, श्रम अधिकारों को विशाल स्तर पर और बढ़ाया जाये। ज़रूरत इसकी है कि पूँजीपतियों पर बड़े टेक्स बढ़ाकर सरकार द्वारा जनता को बड़े स्तर पर सहूलतें मिलें। ज़रूरत इस बात की है कि पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों-मेहनतकशों की मेहनत की लूट पर लगाम कसने के लिए कानून सख़्त किए जाएँ। इन कानूनों के पालन के लिए अपेक्षित ढाँचा बनाया जाए। परन्तु पूँजीपतियों की सरकारों से जो उम्मीद की जा सकती है वह वही कर रही हैं – पूँजीपति वर्ग की सेवा। मज़दूर वर्ग यदि आज पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर कुछ थोड़ी-बहुत भी राहत हासिल करना चाहता है तो उसको मज़दूरों के विशाल एकजुट आन्दोलन का निर्माण करना होगा। पूँजीपति वर्ग द्वारा मज़दूर वर्ग पर बड़े एकजुट हमलों का मुकाबला मज़दूर वर्ग द्वारा जवाबी बड़े एकजुट हमले द्वारा ही किया जा सकता है।

चीन के बाद अब भारत के मज़दूरों के लहू को निचोड़ने की तैयारी में फ़ॉक्सकॉन

“मेक इन इण्डिया” के अलम्बरदार फ़ॉक्सकॉन का ढोल-नगाड़ों से स्वागत कर रहे हैं। “मेक इन इण्डिया” के तहत इतना बड़ा निवेश लाने के लिए कॉर्पोरेट मीडिया मोदी का गुणगान कर रहा है। पूँजीपति वर्ग के सच्चे सेवक मोदी ने सच में बहुत मेहनत की है! उन्होंने आर्थिक मंदी की दलदल में धंसे जा रहे विदेशी पूँजीपतियों को यह बताने में बहुत मेहनत की है कि “हे मेरे पूँजीपति मालिको! तुम्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे इस प्रधान सेवक ने भारत की जनता और जमीन दोनों को तुम्हारे स्वागत के लिए बिल्कुल तैयार कर दिया है। अब और अधिक मत तड़पाओ! आओ और जी भरकर लूटो।” पहले से ही क़ागज़ों की ख़ाक छान रहे श्रम क़ानूनों को लगभग ख़त्म कर देना, जल-जंगल-जमीन को कोड़ियों के दाम बेचने की तैयारी, पूँजीपतियों के लिए टैक्स की छूट आदि ये सब मोदी सरकार की “हाडतोड़” मेहनत ही तो है! दरअसल, विदेशी पूँजी को मोदी की यह पुकार सामूहिक तौर पर भारत के पूँजीपति वर्ग की ही पुकार है। फ़ॉक्सकॉन का ही उदाहरण ले लें तो टाटा और अदानी की फ़ॉक्सकॉन के साथ मिलकर आईफ़ोन और आईपैड बनाने की योजना है।
लेकिन इस पूरी योजना से अगर कोई ग़ायब है तो वह मज़दूर वर्ग ही है। मोदी के “श्रमेव जयते” की आड़ में मज़दूरों की हड्डियों तक को सिक्कों में ढालने की तैयारी चल रही है। और इस मज़दूर-विरोधी योजना का जवाब मज़दूर-एकजुटता से ही दिया जा सकता है।

देशी-विदेशी लुटेरों की ताबेदारी में मजदूर-हितों पर सबसे बड़े हमले की तैयारी

श्रम मंत्रालय संसद में छह विधेयक पारित कराने की कोशिश में है। इनमें चार विधेयक हैं – बाल मज़दूरी (निषेध एवं विनियमन) संशोधन विधेयक, बोनस भुगतान (संशोधन) विधेयक, छोटे कारखाने (रोज़गार के विनियमन एवं सेवा शर्तें) विधेयक और कर्मचारी भविष्यनिधि एवं विविध प्रावधान विधेयक। इसके अलावा, 44 मौजूदा केन्द्रीय श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर चार संहिताएँ बनाने का काम जारीहै, जिनमें से दो इस सत्र में पेश कर दी जायेंगी – मज़दूरी पर श्रम संहिता और औद्योगिक सम्बन्धों पर श्रम संहिता। इसके अलावा, न्यूनतम मज़दूरी संशोधन विधेयक और कर्मचारी राज्य बीमा विधेयक में भी संशोधन किये जाने हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में ही भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूरों से संबंधित क़ानून संशोधन विधेयक भी पेश किया जा सकता है। कहने के लिए श्रम क़ानूनों को तर्कसंगत और सरल बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। लेकिन इसका एक ही मकसद है, देशी-विदेशी कम्पनियों के लिए मज़दूरों के श्रम को सस्ती से सस्ती दरों पर और मनमानी शर्तों पर निचोड़ना आसान बनाना।

मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा और असंगठित मज़दूरों के आन्दोलन की चुनौतियाँ

भाजपा और नरेन्द्र मोदी आज पूंजीपति वर्ग की ज़रूरत है। आज विश्वभर में आर्थिक मन्दी छायी हुई है जिसके कारण मालिकों का मुनाफा लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में मालिकों को ऐसी ही सरकार की ज़रूरत है जो मन्दी के दौर में डण्डे के ज़ोर से मज़दूरों को निचोड़ने में उनके वफादार सेवक का काम करे और मज़दूरों की एकता को तोड़े। यही कारण है कि मोदी सरकार पूरी मेहनत और लगन से अपने मालिकों की सेवा करने में लगी हुई है। परिणामस्वरूप बेरोज़गारी भयंकर रूप से बढ़ती जा रही है और जिनके पास रोज़गार है उनके शोषण में भी इज़ाफ़ा होता जा रहा है व छँटनी का ख़तरा लगातार सिर पर मँडरा रहा है। इसके अलावा महंगाई बेतहाशा बढ़ती जा रही है; स्कूल-कॉलेजों की फीस, इलाज का खर्च भी बढ़ता जा रहा है। हमारी जेबों को झाड़ने के लिए लगातार टैक्स बढ़ाये जा रहे हैं और बुनियादी सुविधाओं में कटौती की जा रही है। जनता के गुस्से को शान्त रखने के लिए जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की साजिशें की जा रही है। दलितों और अल्पसंख्यकों पर भयंकर जुल्म ढाये जा रहे हैं। कुल मिलाकर मोदी सरकार के “अच्छे दिन” ऐसे ही हैं।

कौशल विकास: मज़दूरों के लिए नया झुनझुना और पूँजीपतियों के लिए रसमलाई

सरकार का कहना है कि सरकारी स्कूलों और आईटीआई संस्थानों को कम्पनियों द्वारा विभिन्न कोर्स चलाने के लिए दिया जायेगा, इस तरह ग़रीबों और निम्न मध्यवर्ग के बेटे-बेटियों को कुशल श्रमिक बनाने का रास्ता तैयार किया गया है। लेकिन चूँकि पहले से ही असंगठित क्षेत्र में करीब 44 करोड़ कामगार काम कर रहे हैं उनको कुशल श्रमिक बनाने के लिए अलग से एक विशेष योजना तैयार की गयी है, मोदी सरकार इन 44 करोड़ कामगारों को कारख़ानों में प्रशिक्षण देने वाली है और यहीं पर इस योजना का असली पेंच है। सवाल यह है कि जब इतने कारख़ाने हैं ही नहीं तब भला इतने बड़े-बड़े दावे क्यों किये जा रहे हैं! असल में यह कौशल विकास के नाम पर मज़दूरों को लूटने और पूँजीपतियों को सस्ता श्रम उपलब्ध कराने का हथकण्डा मात्र है। देश में एपेरेन्टिस एक्ट 1961 नाम का एक क़ानून है जिसके तहत चुनिन्दा उद्योगों में ट्रेनिंग की पहले से ही व्यवस्था मौजूद है। इस क़ानून के तहत कारख़ानों में काम करने वाले एपेरेन्टिस या ट्रेनी पहले से ही ज़्यादातर श्रम क़ानूनों के दायरे से बाहर हैं। सरकार के अनुसार इस समय देश में मात्र 23800 कारख़ाने ऐसे हैं जो एपेरेन्टिस एक्ट 1961 के अन्तर्गत आते हैं। सरकार की मंशा है कि अगले 5 सालों में इन कारख़ानों की संख्या बढ़ाकर 1 लाख कर दी जाये। ज़ाहिर सी बात है कि यह योजना केवल 5 साल के लिए नहीं है और इसका मक़सद है कि ट्रेनिंग या कौशल विकास के नाम पर ज़्यादा से ज़्यादा कारख़ानों को श्रम क़ानूनों और न्यूनतम वेतन के क़ानूनों के दायरे से बाहर कर दिया जाये।

“अच्छे दिनों” की असलियत पहचानने में क्या अब भी कोई कसर बाक़ी है?

16 मई को सत्ता में आने के ठीक पहले अपने ख़र्चीले चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का नारा था, “बहुत हुई महँगाई की मार–अबकी बार मोदी सरकार!” उस नारे का क्या हुआ? दुनिया भर में तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट के बावजूद पहले तो मोदी सरकार ने उस अनुपात में तेल की कीमतों में कमी नहीं की; और जो थोड़ी-बहुत कमी की थी अब उससे कहीं ज़्यादा बढ़ोत्तरी कर दी है। नतीजतन, हर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ महँगी हो गयी है। आम ग़रीब आदमी के लिए दो वक़्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। मोदी सरकार का नारा था कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर दिया जायेगा! लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के अब तक के कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया! ऐसे तमाम टूटे हुए वायदों की लम्बी सूची तैयार की जा सकती है जो अब चुटकुलों में तब्दील हो चुके हैं और लोग उस पर हँस रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के मुँह से “मित्रों…” निकलते ही बच्चों की भी हंसी निकल जाती है। लेकिन यह भी सोचने की बात है कि ऐसे धोखेबाज़, भ्रष्ट मदारियों को देश की जनता ने किस प्रकार चुन लिया?

हेडगेवार अस्पताल के ठेका सफ़ाई कर्मचारियों के संघर्ष के आगे झुके अस्पताल प्रशासन और दिल्ली सरकार

डीएसजीएचकेयू की संयोजक शिवानी ने बताया कि हमारी मुख्य माँग तो यही है कि दिल्ली सरकार दिल्ली में नियमित प्रकृति के कार्य में ठेका प्रथा समाप्त करने के अपने वायदे को पूरा करे। उन्होंने कहा कि मज़दूरों की एकजुटता के चलते हमें आंशिक जीत तो मिली है पर हमारा संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है; हमारी यूनियन ठेका प्रथा समाप्त करने की माँग को लेकर दिल्ली सरकार के अन्य अस्पताल के ठेका कर्मियों को गोलबन्द करेगी। दिल्ली स्टेट गवर्मेण्ट हॉस्पिटल कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ने इस जीत के बाद अब दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में ठेका प्रथा ख़त्म करवाने की माँग को लेकर सभी कर्मचारियों को एकजुट करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है