Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

गुड़गाँव के एक मज़दूर के साथ साक्षात्कार

आज पूरे देश की लगभग आधी से ज़्यादा आबादी या तो बेरोज़गार है या हर रोज़ काम करके ही अपना गुज़ारा कर पाती है। गुड़गाँव एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाले ऐसे लाखों मज़दूर रहते हैं। इनमें मुख्यतः ऑटोमोबाइल और गारमेण्ट सेक्टर के मज़दूर शामिल हैं। पर इतनी संख्या में होने के बावजूद आज यह आबादी सबसे बदतर ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है। इस रिपोर्ट में एक ऐसे ही मज़दूर से बात की गयी है जो पिछले 11 सालों से गुड़गाँव में काम कर रहा है और उसने लगभग सभी तरह की फ़ैक्टरियों में काम किया है। आइए जानते हैं गुड़गाँव के एक मज़दूर की कहानी उसी की ज़ुबानी!

गुड़गाँव के कापसहेड़ा से मज़दूरों की रिपोर्ट

अगर आप कभी गुड़गाँव में हैं तो शाम के 5 बजे के बाद गुड़गाँव के कापसहेड़ा में चले जाइए। 5 बजते ही आपको लोगों की एक बाढ़ दिखनी शुरू होगी। यह कोई मेला नहीं होगा और न ही कोई तमाशा! और ऐसा तो हर रोज़ होता है। लोगों की यह भीड़ रात के दस बजे तक दिखेगी। इस भीड़ में 13-14 साल से लेकर 65-70 की उम्र के लोग, पुरुष और महिलाएँ, सब दिख जायेंगे। सभी की वेश-भूषा भी कमोबेश एक जैसी ही दिखेगी। देखकर आश्चर्य होगा कि जिस सड़क पर दोपहर के समय बिल्कुल सन्नाटा पसरा होता है वहाँ अचानक इतने सारे लोग कहाँ से आ गये!

जानलेवा शोषण के ख़िलाफ़ लड़ते बंगलादेश के चाय बाग़ान मज़दूर

“हमारे एक दिन की तनख़्वाह में एक लीटर खाने का तेल भी नहीं आ सकता, तो हम पौष्टिक खाना, दवाइयाँ और बच्चों की पढ़ाई के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं?” बंगलादेश के चाय के बाग़ान में काम करने वाले एक मज़दूर का यह कहना है जिसे एक दिन काम करने के महज़ 120 टका मिलते हैं। अगस्त महीने की शुरुआत से बंगलादेश के चाय बाग़ानों में काम करने वाले क़रीब डेढ़ लाख मज़दूर अपनी जायज़ माँगों को लेकर सड़कों पर हैं। इन मज़दूरों की माँग यह है कि उन्हें गुज़ारे के लिए कम से कम 300 टका दिन का भुगतान किया जाये, तभी वे चाय के बाग़ानों में काम करेंगे।

उत्तर-पश्चिम दिल्ली के छोटे कारख़ानों में बेहद बुरी स्थितियों में खटती स्त्री मज़दूर

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में छोटे कारख़ानों का जालनुमा फैलाव देखने को मिलता है। ख़ासकर ये कारख़ाने मज़दूर बस्तियों के इर्द-गिर्द बसाये गये हैं ताकि सस्ते श्रम का दोहन किया जा सके। ऐसा ही एक जाल शाहबाद-डेरी से बवाना के आसपास के क्षेत्र में भी देखने को मिलता है। इन कारख़ानों में मुख्यतः धातु छँटाई ,पैकिंग इत्यादि का काम होता है। जिसमें तांबा, पीतल, चाँदी इत्यादि की छँटाई का काम किया जाता है।

सिडकुल, हरिद्वार में मज़दूरों की हड्डियाँ कैसे निचोड़ी जाती हैं (एक फ़ैक्टरी से रिपोर्ट)

हरिद्वार स्थित सिडकुल में पंखे बनाने वाली एक कम्पनी है, के.के.जी. इण्डस्ट्रीज लिमिटेड! पंखे बनाने वाली इस कम्पनी के मज़दूर ख़ुद गर्मी और घुटन-भरे माहौल में 12 घण्टे से लेकर 15-16 घण्टे तक काम करते हैं। यहाँ काम की स्थितियाँ बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हैं। ये कम्पनी हैवेल्स, ओरिएण्ट, पोलर, लूमिनस, गोदरेज, सूर्या, एंकर (पैनासोनिक) आदि कम्पनियों की वेण्डर कम्पनी है। इन सभी के पंखे के.के.जी. में बनते हैं। यह सिडकुल की उन कम्पनियों में शामिल है जहाँ न्यूनतम मज़दूरी बहुत ही कम है और काम के न्यूनतम घण्टे 12 हैं।

अघोषित छँटनी : नपीनो में स्थायी मज़दूरों की छँटनी की तरफ़ बढ़ते क़दम!

मानेसर (हरियाणा) के सेक्टर 3 के प्लाट नम्बर 7 में स्थित ‘नपीनो ऑटो एण्ड इलैक्ट्रॉनिक लिमिटेड’ (एटक से सम्बद्ध) के 271 महिला व पुरूष मज़दूर 14 जुलाई से कम्पनी कार्यस्थल पर ही मशीनों पर काम रोककर 24 घण्टे दिन-रात धरने पर बैठे थे। पिछले 4 सालों से लम्बित अपने सामूहिक माँगपत्रक को लागू करवाना और निलम्बित 6 साथियों की कार्यबहाली इनकी मुख्य माँगें हैं।

बेलसोनिका में मज़दूरों की छँटनी व ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी है!

पिछली 3 अगस्त को आई.एम.टी. मानेसर (गुड़गाँव) में स्थित बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेण्ट इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के मज़दूरों द्वारा प्रबन्धन की मज़दूर विरोधी नीतियों के चलते दो बार दो घण्टे का टूल डाउन करने पर प्रबन्धन ने मज़दूरों को आठ दिन की वेतन कटौती का नोटिस जारी कर दिया था। बेलसोनिका मारुति के लिए कलपुर्ज़े बनाती है।

ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एक रिपोर्ट

पिछले कुछ दिनों से गुड़गाँव पट्टी के ऑटो सेक्टर में एक हलचल पैदा हो गयी है। लगातार कम्पनियों में छँटनी, पैसे न दिये जाने, मज़दूरो की माँगें न माने जाने आदि के मामले सामने आ रहे हैं, जिसके विरोध में कई प्रदर्शन और हड़ताल भी हो रहे हैं। पिछले 3 महीने में धारूहेड़ा में हुण्डई मोबीस के मज़दूरों का धरना, जेएनएस के मज़दूरों की हड़ताल तथा पिछले महीने नपीनों के मज़दूरों की हड़ताल इसके उदाहरण हैं। अभी-अभी बेलसोनिका के मज़दूरों के साथ भी कई सारी घटनाएँ सामने आ रही हैं।

मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग: कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं।

आरटी पैकेजिंग के श्रमिकों का संघर्ष

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा की औद्योगिक पट्टी में शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रता है, जब श्रमिकों का संघर्ष न होता हो! एक कारख़ाने का संघर्ष थमा नहीं कि दूसरे में शुरू हो जाता है। जेएनएस, हुण्डई मोबिस के मज़दूरों का संघर्ष थमा ही था कि एक अन्य कारख़ाने से विरोध के स्वर उभरकर सामने आने लगे। पहली अप्रैल को धारूहेड़ा स्थित आरटी पैकेजिंग लिमिटेड (ए रोलोटेनरस् ग्रुप कम्पनी) के मज़दूर संघर्ष की राह पर चल पड़े।