गुड़गाँव के एक मज़दूर के साथ साक्षात्कार

आदित्य

आज पूरे देश की लगभग आधी से ज़्यादा आबादी या तो बेरोज़गार है या हर रोज़ काम करके ही अपना गुज़ारा कर पाती है। गुड़गाँव एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाले ऐसे लाखों मज़दूर रहते हैं। इनमें मुख्यतः ऑटोमोबाइल और गारमेण्ट सेक्टर के मज़दूर शामिल हैं। पर इतनी संख्या में होने के बावजूद आज यह आबादी सबसे बदतर ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है।
इस रिपोर्ट में एक ऐसे ही मज़दूर से बात की गयी है जो पिछले 11 सालों से गुड़गाँव में काम कर रहा है और उसने लगभग सभी तरह की फ़ैक्टरियों में काम किया है। आइए जानते हैं गुड़गाँव के एक मज़दूर की कहानी उसी की ज़ुबानी!
सवाल : पहले तो आप अपने बारे में बताइए। आप कब से गुड़गाँव में हैं और क्या काम करते हैं?
जवाब : हम उत्तर प्रदेश के इलाहबाद के रहने वाले हैं और गुड़गाँव में 2010 से रह रहे हैं। हम अभी उद्योग विहार के एक्सपोर्ट हाउस में काम करते हैं जिसमें मेरा काम कटिंग का है।
सवाल : आप लगभग 12 सालों से गुड़गाँव में हैं, तो इस दौरान आपने कहाँ-कहाँ और क्या-क्या काम किया है?
जवाब : 2010 से 2013 तक कुल 23 कम्पनियों में हमने काम किया था। जहाँ एक महीना, डेढ़ महीना, दो महीना ऐसे करके अपने ख़र्चे के लिए काम किया। क्योंकि हम एक पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग से आते थे, तो हमारे लायक़ काम हमें मिला नहीं, जबकि यह होना चाहिए कि मेहनत और शिक्षा के हिसाब से रोज़गार मिलना चाहिए। एक्सपोर्ट लाइन में काम करते हुए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा था हमारे साथ वह भी हमें रास नहीं आ रहा था। फिर एक जगह हमें एक-दो लोग ऐसे मिल गये जिनका व्यवहार अच्छा लगा तो 15 महीने वहाँ काम किया। हमसे इस दौरान ट्रौली धक्का देने से लेकर सामान ढोने का काम भी करवाया गया। फिर हमारी एक परीक्षा थी जिसके लिए हमें छुट्टी नहीं दी गयी, फिर भी हम परीक्षा देने चले गये। जब वापस आये तो हमें ब्रेक दे दिया गया। इसके बाद हमने एक ऑटोमोबाइल कम्पनी जय ऑटो कम्पनी में डेढ़-दो महीने काम किया। वहाँ बहुत ही मुश्किल काम था। 12 घण्टे की शिफ़्ट होती थी, उसमें भी नाइट ड्यूटी लगा दी जाती थी।
सवाल : क्या काम था वहाँ?
जवाब : वहाँ पर माल को उठाकर चलती हुई असेम्बली लाइन पर रखना होता था। वहाँ पर माल कभी कम नहीं होना चाहिए था। यहाँ पर काम छोड़ने के बाद फिर एक्सपोर्ट लाइन में ही एक जगह काम मिला जहाँ काम सिखाया गया। वहाँ हमने सैम्पलिंग और कटिंग का काम सीखा।
सवाल : अच्छा, तो आपने बताया कि एक जगह आपको परीक्षा देने के कारण काम छोड़ना पड़ा, तो क्या आप काम करने के साथ-साथ पढाई भी कर रहे थे और कहाँ तक आपने पढ़ाई की है?
जवाब : जी, हम तो लगातार काम करने के साथ अपना पढ़ने का समय भी निकालते थे और लगातार परीक्षाएँ दे रहे थे। हमने इण्टर तक तो पूरा क्लास किया है, फिर ग्रेजुएशन में कुछ दिन क्लास किया और फिर एमए तक लाइब्रेरी से किताबें लेकर पढ़ते थे। बाद में हमने आईटीआई भी किया। जब हमारी सैलरी 3900 थी तब भी हम 500 का फ़ॉर्म भरते थे। कई बार तो ओवरटाइम करके हम फ़ॉर्म का पैसा निकालते थे। हम तीन भाई हैं, हम तीनों हमेशा फ़ॉर्म भरते थे, बहुत पैसा हमने इसमें बहाया है, पर आज तक हममें से किसी की भी नौकरी नहीं लगी। हमने तो 2019 तक परीक्षाएँ दी हैं। 2019 के बाद दोबारा बीजेपी की सरकार आने के बाद तो वैकेंसी आनी ही बन्द हो गयी। फिर हमने फ़ॉर्म भरना ही छोड़ दिया।
सवाल : अभी कुल मिला के मज़दूरों की क्या हालत है, फ़ैक्टरियों की क्या हालत है, इसके बारे में बताइए।
जवाब : अभी मज़दूरों की स्थिति यही है कि वो 9-10 हज़ार की नौकरी कर रहे हैं। इसमें पूरा गुज़ारा हो नहीं पाता। मजबूरी में उनके अन्दर ओवरटाइम करने की बहुत ही ज़्यादा लालसा है। लेकिन इसमें कम्पनी को अगर ज़रूरत होती है तो ज़बर्दस्ती आपको रोककर काम करवाती है, पर अगर आपको ज़रूरत है कि आप ओवरटाइम करके कुछ कमा लें तो यह आपके हाथ में नहीं है। यहाँ तक कि कम्पनियों को ज़रूरत नहीं होने पर ब्रेक भी दे दिया जाता है। कई जगह जहाँ ब्रेक नहीं दिया जाता, मज़दूर स्थायी हैं या नियमित रूप से काम कर रहे हैं, वहाँ उनसे धमकाकर काम कराया जाता है। इंचार्ज हों, मैनेजर हों या सुपरवाइज़र सब इसमें शामिल होते हैं। कई बार बाथरूम तक जाने पर पाबन्दी लगा दी जाती है, या कभी 5 मिनट भी लेट हो गया तो उन्हें काम से निकालने की धमकी दे दी जाती है। यह स्थिति उस जगह की है जो हेड ब्रांच है कम्पनी का। जहाँ उसी कम्पनी का मालिक भी बैठता है। तो जहाँ पर सिर्फ़ प्रोडक्शन लाइन है वहाँ पर क्या स्थिति होगी आप सोच सकते हैं। 12-14 घण्टे की ड्यूटी के दौरान उन्हें 5 मिनट आपस में बैठकर बात करने का समय भी नहीं दिया जाता।
सवाल : कई बार यह भी सुनने को मिलता है कि मज़दूरों को वहाँ आपस में जाति-धर्म के नाम पर बाँटने का भी काम किया जाता है, तो इसपर क्या स्थिति है?
जवाब : हाँ, कम्पनियों में ज़्यादातर सुपरवाइज़र वैसे लोग को ही रखा जाता है जो सत्ता पक्ष के होते हैं। और अगर उन्हें पता चल जाये कि कुछ लोग ऐसी मानवतावादी बातें कर रहे हैं या मुस्लिम धर्म का है तो उनपर विशेष नज़र रखी जाती है और लोगों को भी उनके ख़िलाफ़ उकसाया जाता है। दूसरा, हमारी कम्पनी में मिलने पर राम-राम बोलने को कहा जाता है। अगर आप राम-राम नहीं बोल रहे हैं तो आप विपक्ष में हैं। ऐसी स्थिति में आप पर अलग से नज़र रखी जाती है, आपको काट दिया जाता है और ऐसी स्थिती पैदा कर दी जाती है कि आप घुटन महसूस करने लगेंगे। इस तरह से बर्ताव किया जाता है कि यह छोटी जाति का है या दूसरे धर्म का है इसलिए राम-राम नहीं कर रहा है। यहाँ तक कि यदि आप बाथरूम भी जाते हैं तो चापलूसों को पीछे भेज दिया जाता है यह देखने के लिए कि वह कुछ और कारण से तो नहीं गया!
सवाल : आपके अनुसार मज़दूरों की यह हालत होने का क्या कारण है और मज़दूरों को क्या करना चाहिए?
जवाब : इसका एक मुख्य कारण यह है कि मज़दूर आज बिखरे हुए हैं। मज़दूरों को जागरूक करने के लिए मज़दूरों तक पहुँच नहीं पा रही है जानकारी! किसी चीज़ को हम पढ़ या सुन रहे हैं तो हम तर्क कर रहे हैं कि यह सही है या ग़लत। मतलब कि आज सभी लोगों को तर्क के माध्यम से हमें जोड़ना चाहिए।
यह एक मज़दूर की कहानी है, जबकि ऐसे और हज़ारों-लाखों-करोड़ों मज़दूर आज सिर्फ़ गुड़गाँव ही नहीं देश के तमाम इलाक़ों में काम कर रहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा भी ली है, पर काम नहीं मिलने के कारण मजबूरन मज़दूरी कर रहे हैं। बाक़ी ऐसे मज़दूरों की संख्या तो करोड़ों में है जो ख़राब शिक्षा व्यवस्था के कारण दसवीं-बारहवीं या उससे भी पहले पढाई छोड़ने को मजबूर हो गये। मतलब साफ़ है, समस्या इस व्यवस्था में है, पूँजीवादी व्यवस्था में! अतः एक ऐसे समतामूलक समाज की स्थापना किये बग़ैर इस भेद और इस शोषण को नहीं मिटाया जा सकता।

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2022


 

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