Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

होण्डा मानेसर के ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी

आईएमटी मानेसर स्थित होण्डा मोटरसाइकिल ऐण्‍ड स्कूटर्स इण्डिया के ठेका मज़दूरों का संघर्ष पिछले 5 नवम्बर से जारी है। मन्दी का हवाला देकर बिना किसी पूर्वसूचना के मज़दूरों की छँटनी किये जाने के विरोध में मज़दूर संघर्ष की राह पर हैं।

होण्डा से 3,000 ठेका मज़दूरों को निकालने के विरोध में संघर्ष तेज़

होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर्स के मानेसर प्लाण्ट से मन्दी की आड़ में पिछले तीन महीनों से ठेका श्रमिकों को 50 से 100 के समूह में निकाला जा रहा है। धीरे-धीरे कम्पनी ने लगभग तीन हज़ार मज़दूरों की छँटनी कर दी है। अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में भी मज़दूरों ने इसके विरोध में सांकेतिक भूख हड़ताल की थी। मगर कम्पनी प्रबन्धन अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है।

इस मज़दूर की मौत का ज़िम्मेदार कौन है?

इस मज़दूर की मौत का ज़िम्मेदार कौन है? पिछले 13 अक्टूबर को धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र स्थित पीएमआई कम्पनी के एक मज़दूर मुकेश कुमार की मृत्यु हो गयी। मज़दूरों के लिए…

शिरोकी टेक्निको प्राइवेट लिमि‍टेड के निकाले गये ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी

शिरोकी टेक्निको प्राइवेट लिमि‍टेड के निकाले गये ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी शिरोकी टेक्निको प्राइवेट लिमि‍टेड, बावल, ज़ि‍ला रेवाड़ी (हरियाणा) के मज़दूर कोर्ट के आदेश के कारण फ़ैक्टरी गेट से…

गाँव की ग़रीब आबादी के बीच मनरेगा मज़दूर यूनियन की ज़रूरत और ‘क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के अनुभव

पिछले लगभग 6-7 महीनों से हरियाणा के कलायत ब्लॉक के आसपास के गाँवों में रहने वाले मनरेगा मज़दूर संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष की शुरुआत इस बात को लेकर हुई कि मनरेगा विभाग उनके गाँव में रहने वाले सभी मज़दूरों का मनरेगा कार्ड बनाये और मनरेगा के तहत मिलने वाला काम जितना जल्द हो सके शुरू करवाये। क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले ये मज़दूर अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। मनरेगा मज़दूर अपने इस संघर्ष के दौरान कलायत के तीन-चार गाँव में मनरेगा का काम शुरू करवाने में कामयाब भी हुए हैं। मनरेगा मज़दूरों को अपना यह संघर्ष जारी रखने में बहुत सारी दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी दिक्क़तों का ज़िक्र हम आगे करेंगे।

गुड़गॉंव ऑटोमोबाइल पट्टी में जगह-जगह मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

कंसाई नैरोलेक पेंट्स लिमिटेड के बावल (ज़ि‍ला रेवाड़ी, हरियाणा) प्लाण्ट के करीब 250 ठेका मज़दूरों को श्रम विभाग के समक्ष लिखि‍त समझौते के बावजूद कम्पनी में अभी तक काम पर वापस नहीं लिया जा रहा है। कम्पनी बदले की भावना से एक के बाद एक नया बहाना गढ़ के हड़ताल में शामिल अधिकांश ठेका मज़दूरों समेत अन्य ठेका मज़दूरों को काम पर वापस नहीं ले रही है।

Important

मन्दी के बीच मज़दूरों के जीवन के हालात और संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की दलाली

मन्दी के हालात पर बात करते हुए पहले स्टील फ़ैक्ट्री में काम करने वाले बिगुल संवाददाता विष्णु ने बताया कि जहाँ ठण्डा रोला की फ़ैक्ट्री में एक कारीगर को 8 घण्टे काम करने के लिए तनख़्वाह 9000 रुपए मिलता था तो अब ज़्यादातर फ़ैक्ट्री में मालिक दिहाड़ी पर 8 घण्टे के 250 रुपए दे रहा है। आम तौर पर दिहाड़ी में 50 रुपए तक की कमी हुई है। यह बात न सिर्फ ठण्डा रोला फ़ैक्ट्री के लिए सच है बल्कि आम तौर पर पूरे सेक्टर में मन्दी की वजह से वेतन कम हुआ है। वज़ीरपुर से लेकर सब जगह यही हाल है। फ़ैक्ट्री मालिक किसी भी बात के बहाने से मज़दूर को काम से निकाल देता है और काम की असुरक्षा बढ़ गयी है।

कारख़ानों में काम करने वाली स्त्री मज़दूरों के बुरे हालात

सूरत की एक कपड़ा फ़ैक्टरी में काम करने वाली स्त्री मज़दूर ने बीबीसी को बताया कि काम की जगह पर शौचालय तो है पर उसे ताला लगा रहता है। उसे दिन में सिर्फ़ दो बार ही खोला जाता है। वे हमें पेशाब करने जाने से रोकते हैं। इसलिए हम पानी नहीं पीते और पेशाब का ज़ोर पड़ने पर उसे रोके रखना पड़ता है। माहवारी के दिनों में औरतें काम पर नहीं आतीं, जब वे छुट्टी माँगने जाती हैं तो उनके पैसे काट लिये जाते हैं। वड़ोदरा के एक कारख़ाने में लक्ष्मी 10 घण्टों की शिफ़्ट में काम करती है। उसका कहना है कि “मर्दों और औरतों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। हमें सिर्फ़ 150 रुपये दिये जाते हैं, जबकि साथ काम करने वाले मर्दों को 300 रुपये दिये जाते हैं। औरतों के लिए अलग से शौचालय भी नहीं है।

कर्नाटक के गारमेण्ट मज़दूरों का उग्र आन्दोलन और लम्बे संघर्ष की तैयार होती ज़मीन

पूरे गारमेण्ट सेक्टर में कार्यस्थल के हालात अमानवीय हैं। जैसा हिम्मतसिंग गारमेण्ट फ़ैक्टरी में हुआ, वह हर फ़ैक्टरी की कहानी है। मज़दूरों के साथ गाली-गलौज, मारपीट आम बात है। हमने ऊपर बताया है कि पूरे सेक्टर में महिला मज़दूरों की संख्या ज़्यादा है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अध्ययन के मुताबिक़ सात गारमेण्ट मज़दूर परिवारों में से एक परिवार महिला मज़दूर की कमाई पर आश्रित है। उनके साथ तो और भी ज़्यादा बदसलूकी की जाती है। यौन हिंसा, छेड़छाड़ रोज़मर्रा की घटनाएँ हैं। इतना ही नहीं उन्हें ज़बरदस्ती काम करने और ओवरटाइम करने पर भी मज़बूर किया जाता है। उनके दोपहर का खाना खाने, चाय पीने, शौचालय जाने तक के समय में से कटौती की जाती है। वर्कलोड बढ़ा दिया जाता है और उत्पादन तेज़ करने की माँग की जाती है। 1 घण्टे में उन्हें 100 से 150 तक शर्टें तैयार करनी होती हैं। काम पूरा न होने पर अपमान और जिल्लत झेलना पड़ता है। दरअसल मुनाफ़े की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए मज़दूरों के आराम करने के समय में कटौती करके काम के घण्टे को बढ़ाया जाता है। फ़ैक्टरियों में खुलेआम श्रम क़ानूनों का उल्लंघन होता है और श्रम विभाग चुपचाप देखता रहता है। अगर इस अपमान और ि‍जल्लत के ख़िलाफ़ मज़दूर आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

वज़ीरपुर की एक और फ़ैक्टरी में करण्ट से एक मज़दूर की मौत! फिर भी ख़ामोशी!

इन मौतों के दोषी वज़ीरपुर के मालिक हैं जो अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए हमारी सुरक्षा के इन्तज़ाम पर सौ रुपये तक भी ख़र्च नहीं करते हैं। अपने दाँतों से सिक्के दबाकर बैठे इन मालिकों की हवस ने ही हमारे मज़दूर साथी की जान ली है। और साथ ही श्रम विभाग और सरकार भी उतनी ही जि़म्मेदार है क्योंकि बिना इनकी मिलीभगत के ये मालिक ऐसी हरकत नहीं कर सकते और ये इन पर किसी प्रकार की कार्रवाई भी नहीं होती है। इस बात को समझने के लिए हमें श्रम क़ानूनों और उनको लागू करने की प्रक्रिया को देख लेना चाहिए।