Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

अम्बेडकरनगर के गाँवों के कारख़ानों में खटते मज़दूरों के हालात

कुछ समय पहले तक हमारे गाँवों में मिट्टी के बर्तनों को कुम्हार अपने परिवार वालों के साथ मिलकर चाक पर बनाया करते थे। अब आप जिन कुल्हड़ों में शहरों में, ढाबों पर चाय पीते हैं वह कुम्हार के चाक पर नहीं, बल्कि कारख़ानों में बने होते हैं। अम्बेडकरनगर के ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे कई कारख़ाने खुल चुके हैं। लेकिन इन कारख़ानों में चाक की जगह उन्नत मशीनों पर काम करने के बावजूद लोगों का काम आसान होने के बजाय मुश्किल हो गया है क्योंकि मालिकों ने मशीनों का प्रयोग लोगों के काम को सरल बनाने के लिए नहीं बल्कि मुनाफ़ा कमाने के लिए किया है। पहले जब हाथों से चाक पर मिट्टी का बर्तन बनाया जाता था तो उत्पादन कम होता था। परन्तु मशीन का प्रयोग करने से उत्पादन ज़्यादा होता है जिससे मालिकों का मुनाफ़ा बढ़ता जाता है।

फ़ॉक्सकॉन की फ़ैक्ट्री में मज़दूरों के आन्दोलन का दमन : संक्षिप्त रिपोर्ट

वर्तमान चीन जहाँ नाम के लिए समाजवादी व्यवस्था स्थापित है, या फिर मज़दूर वर्ग के ग़द्दार देङ शियाओ पिङ के शब्दों में ‘बाज़ार समाजवाद’ स्थापित है, वह चीन आज दुनियाभर में श्रम के पूँजी द्वारा शोषण की सबसे बड़ी मण्डी बन चुका है। इस माह के मध्य में अन्तर्रराष्ट्रीय समाचारपत्रों व अन्य माध्यमों से कुछ तस्वीरें सामने आयीं, जिसमे हैज़मेट सूट पहने और हाथों में बैट लिये सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों का दमन कर रहे हैं। ‘द गार्जियन’ में 23 नवम्बर को छपी ख़बर के अनुसार चीन के झेंगझू शहर में कुछ दिनों से फ़ॉक्सकॉन कम्पनी में काम करने वाले मज़दूर प्रदर्शनरत हैं।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

सिडकुल, हरिद्वार के प्लास्टिक उत्पाद के उद्योग की एक फ़ैक्टरी की रिपोर्ट

हरिद्वार सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में प्लास्टिक उत्पाद के उद्योग की कई कम्पनियाँ हैं जैसे टीपैक पैकेजिंग इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड, एपेक्स इण्डस्ट्रीज, ट्रू ब्लू , फ़्रेश पेट आदि। कई कम्पनियाँ हैं जहाँ मज़दूरों की काम की स्थिति बेहद कठिन और थकाऊ है। यहाँ रोज़गार की सुरक्षा, श्रम अधिकार, कार्यस्थल पर सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक का भयंकर अभाव है।

सनबीम (गुड़गाँव) कम्पनी में ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ग़ैर-क़ानूनी ठेका प्रथा, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ संघर्ष की सम्भावनाएँ

सनबीम लाईटवेटिंग सोल्यूशन्स प्रा० लि० (गुड़गाँव) फ़ैक्टरी के ठेका मज़दूरों की 16 नवम्बर (बुधवार) 2022 को कम्पनी प्रबन्धन द्वारा बढ़ती बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ज़बरन ओवर टाइम जैसी अन्यायपूर्ण गतिविधियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा आख़िर फूट ही गया। मज़दूरों ने क़रीब 500-600 ठेका मज़दूरों की सफल रैली और अपनी एकजुटता से इस अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। संघर्ष की शुरुआत 27 सितम्बर 2022 को पाँच साथियों के अचानक बर्ख़ास्त (टर्मिनेट) कर देने से हो गयी थी।

हरिद्वार स्थित सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में हर साल बढ़ती बेरोज़गारी – क्या कर रही है सरकार?

हरिद्वार स्थित सिडकुल (SIIDCUL) औद्योगिक क्षेत्र का लेबर चौक दिहाड़ी मज़दूरों के रोज़गार पाने का अड्डा है। इस औद्योगिक क्षेत्र में दो लेबर चौक हैं जहाँ पर आसपास की मज़दूर बस्तियों से मज़दूर काम की तलाश में आते हैं। इन लेबर चौक पर कई प्रकार के काम करने वाले मज़दूर इकट्ठा होते हैं। मशीन चलाने वाले कुशल मज़दूर, फ़ैक्टरी में हेल्पर के तौर पर काम करने वाले, लोडिंग-अनलोडिंग करने वाले, फ़ैक्टरी के कैण्टीन में काम करने वाले, फ़ैक्टरी में सफ़ाई करने वाले, निर्माण मज़दूर, बेलदारी करने वाले मज़दूर। ठेकेदार इन्हीं लेबर चौक पर सस्ती श्रमशक्ति ख़रीदने आते हैं।

मथुरा रिफ़ाइनरी के संविदा श्रमिक पिछले 1 सितम्बर से आन्दोलनरत हैं!

हाल ही में मथुरा रिफ़ाइनरी के 18 संविदा श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया। रिफ़ाइनरी मैनेजमेण्ट और ठेकेदार के घृणास्पद गठबन्धन के ख़िलाफ़ मज़दूर 1 सितम्बर से ही धरने पर बैठे हैं। नये ठेकेदार ने आते ही इन श्रमिकों को काम पर से निकाल दिया था। मज़दूरों का कहना है कि खाते में आने वाले वेतन का आधा हिस्सा यदि ठेकेदार को वापस करेंगे तभी उनको काम पर रखा जायेगा। मज़दूरों द्वारा इस शर्त को न मानने के कारण उनको काम से निकाल दिया गया।

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल पट्टी में जारी मज़दूरों की छँटनी और बर्ख़ास्तगी का सिलसिला और मज़दूरों का प्रतिरोध : एक रिपोर्ट

अलग-अलग कम्पनियों में स्थायी मज़दूरों की जगह ठेका मज़दूरों और पुराने ठेका/कैज़ुअल मज़दूरों की जगह पहले से सस्ते और कम अवधि के लिए नये ठेका मज़दूरों, ट्रेनी, अप्रेण्टिस, टी.डब्ल्यू. जैसी विभिन्न श्रेणियों में मज़दूरों को बाँटकर सस्ते से सस्ते और सीमित अवधि के लिए मज़दूरों की भरती की प्रक्रिया जारी है। कहीं पर ठेका ख़त्म हो गया है, कहीं पर घाटा बताकर किसी लाइन को बन्द दिखाकर मज़दूर की छँटनी की जा रही है, तो कहीं वीआरएस का नोटिस लगाकर या मज़दूरों पर झूठा इल्ज़ाम लगाकर बाहर करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है।

गुड़गाँव के एक मज़दूर के साथ साक्षात्कार

आज पूरे देश की लगभग आधी से ज़्यादा आबादी या तो बेरोज़गार है या हर रोज़ काम करके ही अपना गुज़ारा कर पाती है। गुड़गाँव एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाले ऐसे लाखों मज़दूर रहते हैं। इनमें मुख्यतः ऑटोमोबाइल और गारमेण्ट सेक्टर के मज़दूर शामिल हैं। पर इतनी संख्या में होने के बावजूद आज यह आबादी सबसे बदतर ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है। इस रिपोर्ट में एक ऐसे ही मज़दूर से बात की गयी है जो पिछले 11 सालों से गुड़गाँव में काम कर रहा है और उसने लगभग सभी तरह की फ़ैक्टरियों में काम किया है। आइए जानते हैं गुड़गाँव के एक मज़दूर की कहानी उसी की ज़ुबानी!

गुड़गाँव के कापसहेड़ा से मज़दूरों की रिपोर्ट

अगर आप कभी गुड़गाँव में हैं तो शाम के 5 बजे के बाद गुड़गाँव के कापसहेड़ा में चले जाइए। 5 बजते ही आपको लोगों की एक बाढ़ दिखनी शुरू होगी। यह कोई मेला नहीं होगा और न ही कोई तमाशा! और ऐसा तो हर रोज़ होता है। लोगों की यह भीड़ रात के दस बजे तक दिखेगी। इस भीड़ में 13-14 साल से लेकर 65-70 की उम्र के लोग, पुरुष और महिलाएँ, सब दिख जायेंगे। सभी की वेश-भूषा भी कमोबेश एक जैसी ही दिखेगी। देखकर आश्चर्य होगा कि जिस सड़क पर दोपहर के समय बिल्कुल सन्नाटा पसरा होता है वहाँ अचानक इतने सारे लोग कहाँ से आ गये!