Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

नोएडा के शोषण-उत्पीड़न झेलते दसियों लाख मज़दूर, पर एकजुट संघर्ष और आन्दोलन का अभाव

उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास क़ानून नोएडा में 1976 में आपातकाल के दौर में से अस्तित्व में आया। नोएडा भारतीय पूँजीवादी व्यवस्था की महत्वाकांक्षी परियोजना दिल्ली-मुम्बई इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर का प्रमुख बिन्दु बनता है। आज नोएडा में भारत की सबसे उन्नत मैन्युफ़ैक्चरिंग इकाइयों के साथ ही सॉफ़्टवेयर उद्योग, प्राइवेट कॉलेज, यूनिवर्सिटी और हरे-भरे पार्कों के बीच बसी गगनचुम्बी ऑफ़िसों की इमारतें और अपार्टमेण्ट स्थित हैं। दूसरी तरफ़ दादरी, कुलेसरा, भंगेल सरीखे़ गाँवों में औद्योगिक क्षेत्र के बीचों-बीच और किनारे मज़दूर आबादी ठसाठस लॉजों और दड़बेनुमा मकानों में रहती है।

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष – शाम मूर्ति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के धारूहेड़ा में रिको के मज़दूरों का संघर्ष पिछले चार महीने से जारी है। छँटनी…

सिडकुल (हरिद्वार) के कारख़ानों में मज़दूरों के बीच फैलता कोरोना, काम के बिगड़े हालात

जिस तरह मोदी सरकार द्वारा बिना किसी योजना के लॉकडाउन करने के कारण सबसे ज़्यादा संकट का सामना मज़दूरों को करना पड़ा उसी तरह बिना किसी योजना के लॉकडाउन खोलने के कारण सबसे ज़्यादा मज़दूरों की ही ज़िन्दगी ख़तरे में है। देश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाली मज़दूर आबादी की ही तरह सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों को भी मोदी सरकार द्वारा योजनाविहीन लॉकडाउन और अनलॉक की वजह से संकट का सामना करना पड़ रहा है।

लॉकडाउन में दिल्ली के मज़दूर : नौकरी जा चुकी है, घर में राशन है नहीं, घर जा नहीं सकते

पिछले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को अचानक पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया। दिल्‍ली में बड़ी संख्या में मेहनतकश ग़रीब आबादी रहती है जिसकी रोज़ की कमाई तय करती है कि शाम को घर में चूल्हा जलेगा कि नहीं। फै़क्ट्री मज़दूर, रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले व निम्न मध्यवर्ग की आबादी जो कुल मिलाकर देश की 80 फीसदी आबादी है, उसपर लॉकडाउन क़हर बन कर टूटा है।

लॉकडाउन में गुड़गाँव के मज़दूरों की स्थिति

गुड़गाँव के सेक्टर 53 में, ऊँची-ऊँची इमारतों वाली हाउसिंग सोसायटियों के बीच मज़दूरों की चॉल है। छोटे से क्षेत्र में दो से तीन हज़ार मज़दूर छोटे-छोटे कमरों में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उसी चॉल में अपने परिवार को भूख, गर्मी, बीमारी से परेशानहाल देख मुकेश ने खु़दकुशी कर ली। तीस वर्षीय मुकेश बिहार के रहने वाले थे, और यहाँ पुताई का काम करते थे। लॉकडाउन का पहला चरण किसी तरह खींचने के बाद जब दूसरा चरण शुरू हुआ तो मुकेश की हिम्मत जवाब दे गयी।

शिवम ऑटोटेक के मज़दूरों की जीत मगर होण्‍डा के मज़दूरों का संघर्ष 80 दिन बाद भी जारी

शिवम ऑटोटेक लिमिटेड, बिनोला के मज़दूरों व प्रबन्धन के बीच बीती 17 जनवरी की रात उप श्रमआयुक्त की मध्यस्थता में समझौता हो गया। कारख़ाना प्रबन्धन तबादला व निलम्बित किये गये 18 श्रमिकों को काम पर वापस लेने के लिए तैयार हो गया।

होण्डा, शिवम व अन्य कारख़ानों के संघर्ष को पूरी ऑटो पट्टी के साझा संघर्ष में तब्दील करना होगा

मन्दी के नाम पर छँटनी का कहर केवल होण्डा के मज़दूरों पर ही नहीं बल्कि गुड़गाँव और उसके आसपास ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंसाई नैरोलक, शिरोकी टेक्निको, मुंजाल शोवा, डेन्सो, मारुति समेत दर्जनों कम्पनियों में लगातार जारी है। दिहाड़ी, पीस रेट, व ठेका मज़दूर तो दूर स्थायी मज़दूर तक अपनी नौकरी नहीं बचा पा रहे हैं। होण्डा, शिवम, कंसाई नैरोलेक आदि कई कम्पनियों के स्थाई श्रमिक निलम्बन, निष्कासन, तबादले से लेकर झूठे केस तक झेल रहे हैं। होण्डा समेत कई कारख़ानों में चल रहे संघर्षों में कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में उतरे जुझारू मज़दूरों को निलम्बित किया गया है।

गुड़गाँव और आसपास की औद्योगिक पट्टी से मज़दूर संघर्षों की रिपोर्ट

2019 बदलकर 2020 आ गया पर होण्डा (मानेसर) के 2500 कैज़ुअल मज़दूरों का ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ स्थायी रोज़गार के लिए जुझारू संघर्ष दो महीने से जारी है। ये कैज़ुअल मज़दूर सात से बारह साल से कार्यरत हैं। इन कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में होण्डा यूनियन के प्रधान सहित आठ मज़दूरों का निलम्बन भी अब तक वापिस नही लिया गया है और न ही उनके समझौता पत्र को लागू किया जा रहा है। ऑटो सेक्टर की कई अन्य कम्पनियों में भी यूनियन से हुए समझौतों पत्रों को लागू नहीं किया जा रहा है।

देशभर में होने जा रही 8 जनवरी की आम हड़ताल के प्रति हमारा नज़रिया क्या हो?

अगर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें केन्द्र व राज्य सरकार के मज़दूर-विरोधी संशोधानों को सच में वापस करवाने की इच्छुक हैं तो क्या इन्हें इस हड़ताल को अनिश्चितकाल तक नहीं चलाना चाहिए? यानी कि तब तक जब तक सरकार मज़दूरों से किये अपने वायदे पूरे नहीं करती और उनकी माँगों के समक्ष झुक नहीं जाती है।

‘मैं बड़े ब्रांडों के लिए बैग सिलता हूँ पर मुश्किल से पेट भरने लायक़ कमा पाता हूँ’ – अनाज मण्‍डी की जली फ़ैक्टरी में 10 साल तक काम करने वाले दर्ज़ी की दास्‍तान

दास ने कहा कि सुबह की धुँधली रोशनी में उसने अपनी खिड़की से देखकर गिना कि 56 मज़दूरों को उठाकर एम्‍बुलेंस में ले जाया गया था। इनमें से कई उसके दोस्‍त और ऐसे लोग थे जिनके साथ उसने काम किया था। फ़ैक्टरी के ताले खुलने के बाद कुछ लोग बाहर आये जो सिर्फ़ अन्‍दर के कपड़े पहने हुए थे। हमने उन्‍हें अपने कपड़े और जूते-चप्‍पल दिये।