Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

लॉकडाउन के बाद दिल्ली में मज़दूरों के हालात

बीते वर्ष मार्च में कोरोना महामारी की वजह से जो लॉकडाउन लगा था, उसमें मज़दूरों के साथ कितना ज़ुल्म हुआ था, वह किसी से छुपा नहीं है। लाखों-करोड़ों की संख्या में मज़दूर देश के महानगरों को छोड़कर गाँव पलायन करने के लिए मजबूर हुए थे। जिसका कारण मोदी सरकार द्वारा बिना किसी तैयारी के लगाया गया लॉकडाउन था। यही हालात दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बसे बवाना-नरेला-बादली जैसे औद्योगिक क्षेत्रों के भी थे।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : एक रिपोर्ट

ओखला औद्योगिक क्षेत्र के रिहायशी इलाक़ों में घूमते हुए हम बंगाली कॉलोनी, जेजे कॉलोनी और नेपाली कॉलोनी गये। इन जगहों पर छोटे-छोटे प्लॉटों को जिस तरह काटकर घर बनाये गये हैं, उसे देखकर लगता है कि भवन निर्माण के असल आश्चर्य ऐफ़िल टावर नहीं, ऐसे घर ही हैं। पतली-पतली गलियों के ऊपर बीम डालकर छोटे-छोटे कमरे बनाये गये हैं।

अमेज़ॉन के मज़दूरों का यूनियन बनाने की माँग को लेकर जुझारू संघर्ष

अमरीका के अलबामा राज्य के बेसिमर शहर में स्थि‍त अमेज़ॉन के भण्डारगृह में 5800 मज़दूर कार्यरत हैं। यहाँ के मज़दूर काम की भीषण परिस्थितियों के ख़िलाफ़ एक संगठित संघर्ष के लिए यूनियन बनाने की माँग पिछले साल से कर रहे हैं। इतने लम्बे समय से माँग करने के बाद अभी एक महीने से यानी मार्च के आरम्भ से चुनाव प्रक्रिया चल रही है।

सत्यम ऑटो कम्पोनेण्ट के 1000 से अधिक मज़दूर भूख हड़ताल पर!

हरियाणा के मानेसर औद्योगिक क्षेत्र की सत्यम ऑटो कम्पोनेण्ट कम्पनी में पिछली 1 मार्च से एक हज़ार से अधिक स्थायी और कैज़ुअल दोनों मज़दूर पूरी तरह काम बन्द करके कम्पनी के भीतर ही अपने बुनियादी श्रमिक अधिकारों, ओवर टाइम, वेतन बढ़ोत्तरी, बोनस आदि माँगों को लेकर हड़ताल पर बैठने को मजबूर हुए हैं।

केहिन फ़ाई प्राइवेट लिमिटेड की स्त्री मज़दूरों का संघर्ष जारी

ऑटोमोबाइल सेक्टर की केहिन फ़ाई प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी की महिलाएँ पिछले सेटलमेंट के तहत बढ़ी हुई सैलरी और एक साल से लम्बित नया सेटलमेंट करने की माँग करने पर कम्पनी मैनेजमेंट द्वारा किये गये अन्यायपूर्ण निलम्बन और महिलाओं के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ पिछली 15 फ़रवरी से कम्पनी गेट पर धरने पर बैठी हैं। लगातार बाहर ठण्ड में सोने और दिन में गर्मी में बैठने से संघर्षरत मज़दूरों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।

ऑटोनियम इण्डिया के परमानेण्ट मज़दूरों का उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष

पहली मार्च को बहरोड़ औद्योगिक क्षेत्र (राजस्थान) की ऑटोनियम इण्डिया प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी की परमानेण्ट मज़दूर यूनियन के उपाध्याक्ष योगेन्द्र यादव ने कम्पनी गेट पर अपने ऊपर पेट्रोल छिड़का और आत्महत्या करने की कोशिश की। बेहोश होने पर उन्हें आई.सी.यू. में भरती करवाया गया। वहीं दूसरी तरफ़ बाक़ी के 33 परमानेण्ट मज़दूर कम्पनी के अन्दर ही काम रोक कर बैठ गये हैं और माँग कर रहें हैं कि कम्पनी मज़दूरों को बदले की भावना से तंग-परेशान करना बन्द करे, ताकि कोई और मज़दूर कम्पनी प्रबन्धन से तंग आकर आत्महत्या के लिए मजबूर न हो।

बरगदवाँ, गोरखपुर के मज़दूर मालिकों की मनमानी के विरुद्ध फिर आन्दोलन की राह पर

मोदी सरकार द्वारा चार लेबर कोड लाये जाने के बाद से देश भर में फ़ैक्ट्रियों-कारख़ानों के मालिकों के हौसले और बुलन्द हुए हैं। गोरखपुर के बरगदवाँ औद्योगिक क्षेत्र में स्थित वीएन डायर्स प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड (कपड़ा मिल) में पिछले दिनों तीन मज़दूरों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बाहर निकाल दिया गया।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : मज़दूरों के काम और जीवन पर एक आरम्भिक रिपोर्ट

चौड़ी-चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ मकानों की तरह बने कारख़ाने एक बार को देख कर लगता है कि कहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की जगह रिहायशी क्षेत्र तो नहीं। कई कारख़ाने तो हरे-हरे फूलदार गमलों से सज़े इतने ख़ूबसूरत मकान से दिखते हैं कि वहम होता है शायद यह किसी का घर तो नहीं। लेकिन नहीं ओखला फेज़ 1 और ओखला फेज़ 2 के मकान जैसे दिखने वाले कारख़ाने और कारख़ानों जैसे दिखने वाले कारख़ाने, सभी एक समान मज़दूरों का ख़ून निचोड़ते हैं…

होण्डा मानेसर प्लाण्ट में परमानेंट मज़दूरों की वी.आर.एस. के नाम पर छँटनी का नोटिस जारी!

इस बार जापान की ऑटोमोबाइल निर्माता कम्पनी होण्डा मोटर साईकिल व स्कूटर इण्डिया (एच.एम. एस. आई.) ने मानेसर प्लाण्ट में भी तथाकथित वी.आर.एस.(सवैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) के नाम पर छँटनी का नोटिस चिपका दिया गया है।

विस्ट्रॉन आईफ़ोन प्लाण्ट हिंसा : अमानवीय हालात के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों का विद्रोह!

देश के औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों को मुनाफ़े की चक्की में जिस क़दर पेरा जाता है, उनके सभी गिले-शिकवों को कम्पनी प्रबन्धन से लेकर सरकारी प्रशासन तक जिस तरह से अनसुना करता है, ऐसी स्थिति में अगर लम्बे समय से इकट्ठा हो रहा उनका ग़ुस्सा लावा बनकर हिंसक विद्रोह में फूट पड़ता रहा है, तो इसमें हैरानी कैसी! पिछले 15-20 सालों में ऐसी कितनी ही घटनाएँ घट चुकी हैं जब मज़दूरों का ग़ुस्सा हिंसक विद्रोह में तब्दील हो गया, चाहे वह 2005 की होण्डा गुडगाँव प्लाण्ट की घटना हो, 2008 में ग्रेटर नोएडा में ग्राज़ि‍यानो की घटना हो, मारुति-सुज़ुकी मानेसर प्लाण्ट की 2012 की घटना हो, 2013 की नोएडा की दो दिवसीय प्रतीकात्मक हड़ताल के समय की घटना हो या ऐसी अन्य ढेरों घटनाएँ हों। ऐपल कम्पनी के आईफ़ोन असेम्बल करने वाली कम्पनी विस्ट्रॉन इन्फ़ोकॉम के कोलार प्लाण्ट में पिछले महीने हुआ हिंसक विद्रोह भी इन्हीं घटनाओं की अगली कड़ी है।