Category Archives: अंधराष्‍ट्रवाद

हरियाणा में नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण : मज़दूर वर्ग को बाँटने की साज़ि‍श

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने मार्च के पहले सप्ताह में राज्य में निजी क्षेत्र की प्रति माह 50 हज़ार रुपये तक की तनख़्वाह वाली नौकरियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण सम्बन्धी क़ानून पारित करवा लिया। इससे पहले गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व उत्तराखण्ड सहित कई राज्यों में भी इस तरह के क़ानून पारित हो चुके हैं या उनकी क़वायद चल रही है। हाल ही में झारखण्ड में भी यह क़वायद शुरू हो चुकी है।

कश्मीर में जारी दमन, फ़र्ज़ी मुक़दमे और भारतीय राजसत्ता द्वारा जनता पर कसता शिकंजा!

कश्मीर काग़ज़ पर बना कोई नक़्शा नहीं है, कश्मीर वहाँ की जनता से बनता है। मज़दूरों व मेहनतकशों की लड़ाई न्याय और समानता के लिए है। सिर्फ़ अपने लिए न्याय और समानता नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए न्याय और समानता। हम मज़दूर मेहनतकश साथियों को कभी भी किसी भी सामाजिक हिस्से या राष्ट्रीयता या जाति के शोषण, दमन और उत्पीड़न का समर्थन नहीं करना चाहिए। पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और इसी राष्ट्रवाद की लहर को सांस्कृतिक तौर पर फैलाकर पूँजीपति वर्ग अपने दमन और शोषण को जायज़ ठहराने का आधार तैयार करता है। वह अन्य राष्ट्रों के दमन और उत्पीड़न के लिए मज़दूर वर्ग में भी सहमति पैदा करने का प्रयास करता है। हमें पूँजीपति वर्ग, मालिकों व ठेकेदारों की इस साज़िश के प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें हर क़ीमत पर हर प्रकार के शोषण, दमन और उत्पीड़न का विरोध करना चाहिए, अन्यथा हम अनजाने ही ख़ुद अपने दमन और शोषण को सही ठहराने की ज़मीन पैदा करेंगे।

लखनऊ में डिफ़ेंस एक्सपो : मुनाफ़े की हवस में युद्धोन्माद फैलाने का तामझाम

बीती 5 फ़रवरी से 9 फ़रवरी तक लखनऊ शहर में डिफ़ेंस एक्सपो आयोजित किया गया जिसको मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। हथियार बेचने की होड़ में लगे रक्षा क्षेत्र के पूँजीपतियों को रिझाने के लिए भारत सरकार की ओर से आयोजित इस प्रदर्शनी के शुरू होने से पहले ही शहर के मेट्रो स्टेशनों और चौराहों पर मोदी-राजनाथ के फ़ोटो लगे बड़े-बड़े होर्डिंग लगने शुरू हो गये थे। मीडिया में इसे एशिया की सबसे बड़ी रक्षा प्रदर्शनी कहकर आम जनता को इसके फ़ायदे बताये गये।

कश्मीर में 7 महीने से जारी पाबन्दियों‍ से जनजीवन तबाह

कश्मीर घाटी में पूर्ण नाकेबन्दी के सात महीने पूरे हो गये हैं। 70 लाख की आबादी वाली कश्मीर घाटी में पिछले 7 महीनों में जो तबाही हुई है उसका अन्दाज़ा दूर से लगाना बहुत मुश्किल है। अभी भी वहाँ इण्‍टरनेट और मोबाइल सेवाएँ पूरी तरह बहाल नहीं हुई हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत अब दुनिया में सबसे ज्‍़यादा लम्बे समय तक इण्‍टरनेट पर पाबन्दी लगाने वाला लोकतंत्र बन चुका है।

पूँजीवादी युद्ध और युद्धोन्माद के विरुद्ध बोल्शेविकों की नीति और सरकारी दमन (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-8)

युद्ध की घोषणा के तुरन्त बाद, दूसरे इण्टरनेशनल के नेताओं ने इतिहास की सबसे बड़ी ग़द्दारियों में से एक को अंजाम दिया और अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के झण्डे को धूल-धूसरित कर दिया। राष्ट्रवाद की लहर में बहते हुए, समाजवादी पार्टियों के नेता अपने देशों की सरकारों के पीछे चल पड़े और अपने-अपने पूँजीपति वर्ग के हाथों का खिलौना बन गये। क्रान्ति से ग़द्दारी करके इन नेताओं ने यह सिद्धान्त पेश किया युद्ध छिड़ जाने के बाद अपने शासक वर्ग का साथ देना ज़रूरी है और पूँजीवादी अख़बारों के सुर में सुर मिलाते हुए ‘’दुश्मन’’ के विरुद्ध लड़ने के लिए अन्धराष्ट्रवादी भावनाएँ भड़काने में जुट गये।

कश्मीर के मुद्दे पर सोचने के लिए कुछ बेहद ज़रूरी सवाल – क्‍या किसी क़ौम को ग़ुुलाम बनाने की हिमायत करके हम आज़ाद रह सकते हैं?

सच्चे मज़दूर क्रान्तिकारियों को हर कीमत पर हर प्रकार के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना चाहिए और दमित राष्ट्रों के संघर्षों का बिना शर्त समर्थन करना चाहिए। यदि मज़दूर वर्ग की ताक़तें ऐसा करने में असफल होती हैं और जाने या अनजाने अपने देश के पूँजीपति वर्ग के मुखर या मौन समर्थन की राष्ट्रीय व सामाजिक कट्टरपंथी अवस्थिति अपनाती हैं, तो वह अपने देश के पूँजीपति वर्ग को स्वयं अपना दमन करने का भी लाईसेंस और वैधीकरण प्रदान करती हैं। ऐसी कुछ ताक़तें भारत में भी हैं जिन्होंने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद ज़ुबान पर ताला लगा लिया है और कश्मीर के मसले पर कुछ भी बोलने से घबरा गयी हैं। ऐसे ग्रुपों व संगठनों को कल इतिहास के कठघरे में खड़ा होकर एक असम्भव सफाई देने का प्रयास करना पड़ेगा। आज हमें धारा के विरुद्ध तैरते हुए कश्मीरी जनता के राष्ट्रीय दमन का विरोध करना होगा और उनके जनवादी हक़ों के संघर्ष का समर्थन करना होगा। केवल तभी हम फासीवादी मोदी सरकार और पूँजीवादी राज्यसत्ता को अन्धराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की आँधी चलाकर हर प्रकार के प्रतिरोध व आन्दोलन को कुचलने को सही ठहराने से रोक सकते हैं, उसके सामने एक क्रान्तिकारी चुनौती पेश कर सकते हैं।

देशभक्ति के नाम पर युद्धपिपासु अन्‍धराष्‍ट्रवाद किसके हित में है? अन्धराष्ट्रवाद और नफ़रत की आँधी में बुनियादी  सवालों  को  खोने  नहीं  देना  है!

पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और देशभक्ति उसके लिए महज़ बाज़ार में बिकने वाला एक माल है। आक्रामक राष्ट्रवाद पूँजीपति वर्ग की राजनीति का एक लक्षण होता है और सभी देशों के पूँजीपति अपनी औकात के हिसाब से विस्तारवादी मंसूबे रखते हैं। अगर इस सरकार को सच्ची देशभक्ति दिखानी ही है तो उसे सभी लुटेरे साम्राज्यवादी देशों की पूँजी ज़ब्त कर लेनी चाहिए और सभी विदेशी क़र्ज़ों को मंसूख कर देना चाहिए जिसके बदले में कई-कई गुना ब्याज ये हमसे वसूल चुके हैं। लेकिन कोई भी पूँजीवादी सरकार भला ऐसा कैसे करेगी!

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट और झूठे मुद्दों का बढ़ता शोर

भविष्य के ‘‘अनिष्ट संकेतों’’ को भाँपकर मोदी सरकार अभी से पुलिस तंत्र, अर्द्धसैनिक बलों और गुप्तचर तंत्र को चाक-चौबन्द बनाने पर सबसे अधिक बल दे रही है। मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जा रहा है, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल जोर पकड़ता जा रहा है ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्‍धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा जोर है। पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है क्योंकि जनाक्रोश से आतंकित दोनों ही देशों के संकटग्रस्त शासक वर्गों को इससे राहत मिलेगी।

लुटेरों के झूठे मुद्दे बनाम जनता के वास्‍तविक मुद्दे – सोचो, तुम्हें किन सवालों पर लड़ना है

इन झगड़ों का परिणाम केवल आम जनता की तबाही होती है। जबकि दोनों धर्मों के धनिको को कोई नुकसान नहीं होता। युवाओं को टी.वी चैनलों, धर्म के ठेकेदारों, नेताओं-मन्त्रियों के भ्रमजाल से बाहर आना होगा। शिक्षा, रोजगार, जैसे वास्तविक मुद्दों पर संघर्ष संगठित करना होगा। नेताओं को घेरना होगा कि जो वायदे वो चुनाव में करते हैं उसे पूरा करें। जातिवाद-भेदभाव की दीवारें गिरानी होंगी। धार्मिक कट्टरपंथियों, चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम, सिख या ईसाई, के खिलाफ हल्ला बोलना होगा। अन्धविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध वैचानिक चेतना का प्रचार-प्रसार करना होगा। हमें मेहनतकश जनता के वास्तविक मुद्दों पर संघर्षों से इस लड़ाई को जोड़ना होगा।