Category Archives: अंधराष्‍ट्रवाद

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियाँ और जनता का प्रतिरोध

इन नीतियों की घोषणा दर्शाती है कि अमेरिकी जनता के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होने जा रहे हैं। यह बात ट्रम्प पर भी लागू होती है। 45 प्रतिशत अमेरिकी जनता जिसका मोहभंग इस व्यवस्था से है और बाक़ी बची जनता इन नीतियों का समर्थन पूर्ण रूप से करेगी, ऐसा लगता नहीं है। इतनी घोर ग़ैरजनवादी, मुसलमान विरोधी, नस्लविरोधी और आप्रवासन विरोधी नीतियों को समर्थन मिलने की जो उम्मीद ट्रम्प को है, वैसा होने नहीं जा रहा है और यह अमेरिका की सड़कों पर दिख भी रहा है।

बलोचिस्तान के साथ हमदर्दी के पीछे छुपे अन्ध राष्ट्रवाद के इरादे

भारत और पाकिस्तान दोनों देश अन्ध राष्ट्रवाद और दूसरे के विरुद्ध नफ़रत को भड़काकर दो कामों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पहला, दोनों की ओर से अपने देश में आज़ादी के लिए लड़ रहे राष्ट्रों पर किये जा रहे जुल्म पर पर्दा डालने के लिए। दूसरा, एक-दूसरे के अन्दर हालात तनावपूर्ण बनाने और ख़ूनी लड़ाइयाँ और युद्ध भड़काने के लिए। इस सब का भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के आम मेहनतकश लोगों को ही नुक़सान हो रहा है, दोनों देशों के हुक्मरान वर्गों को फ़ायदा हो रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश के स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान की असलियत

विभिन्न पूँजीवादी प्रसार माध्यमों के द्वारा किये जा रहे लुभावने प्रचार के पीछे छुपे ज़हरीले सत्य को पहचानने के लिए, जनता को ग़रीबी की ओर ढकेलने वाली व जनता के बीच फूट डालने वाली संघी राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए संघ का इतिहास जनता के सामने आना बहुत ज़रूरी है। आज संघ देशप्रेम की कितनी ही बातें कर ले पर उनका सच्चा काला इतिहास संघ के ही साहित्य में सुरक्षित रखा हुआ है। हाफ़ पैण्ट छोड़कर फुल पैण्ट पहनने पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नंगापन छुपेगा नहीं।

भारत और पाकिस्तान — अन्धराष्ट्रवादी प्रचार बनाम कुछ ज़मीनी सच्चाइयाँ

आँखों से अन्धराष्ट्रवाद का चश्मा उतारकर सच्चाइयों को देखने की ज़रूरत है । भारत और पाकिस्तान की जनता के असली दुश्मन उनके सर पर बैठे हैं । भारत का शासक पूँजीपति वर्ग भारतीय जनता का उतना ही बड़ा दुश्मन है जितना पाकिस्तानी पूँजीपति वर्ग पाकिस्तानी जनता का। अन्धराष्ट्रवाद की लहर दोनों देशों की जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाती है ।

काला धन मिटाने के नाम पर नोटबन्दी – अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए मोदी सरकार का एक और धोखा!

काला धन वह नहीं होता जिसे बक्सों या तकिये के कवर में या ज़मीन में गाड़कर रखते हैं। सच्चाई यह है कि देश में काले धन का सिर्फ़ 6 प्रतिशत नगदी के रूप में है । आज काले धन का अधिकतम हिस्सा रियल स्टेट, विदेशों में जमा धन और सोने की खरीद आदि में लगता है। कालाधन भी सफेद धन की तरह बाज़ार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फ़ि‍राक़ में रहता है। आज पैसे के रूप में जो काला धन है वह कुल काले धन का बेहद छोटा हिस्सा है और वह भी लोगों के घरों में नहीं बल्कि बाज़ार में लगा हुआ है।

उधर सीमा पर जवान जान दे रहा है यहाँ तुम जान दो — ताकि दोनों तरफ सेठों की तिजोरियाँ भरती रहें!

साब हमारे हैंडपम्प ठप हो गये हैं। इलाके का पानी गन्दा हो गया है। कैंसर फैल रहा है। कुछ कीजिए।
देश आगे बढ़ रहा है। कुछ सहना ही पड़ता है। सीमा पर जवान भी तो झेल रहे हैं।

कश्मीर : आओ देखो गलियों में बहता लहू

कश्मीर में सैन्य दलों द्वारा स्थानीय लोगों पर ढाए जाने वाले ज़ुल्मो–सितम की न तो यह पहली घटना है न ही आखिरी। उनके वहशियाना हरकतों की फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है। फरवरी 1991 में कुपवाड़ा जि़ले के ही कुनन-पोशपोरा गाँव में पहले गाँव के पुरुषों को हिरासत में लिया गया, यातनाएँ दी गयीं और बाद में राजपूताना राइफलस के सैन्यकर्मियों द्वारा गाँव की अनेक महिलाओं का उनके छोटे-छोटे बच्चों के सामने बलात्कार किया गया। (अनेक स्रोत इनकी संख्या 23 बताते हैं लेकिन प्रतिष्ठित अन्तरराष्ट्रीय संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ सहित कई मानवाधिकार संगठनों के अनुसार यह संख्या 100 तक हो सकती है।) वर्ष 2009 में सशस्त्र बल द्वारा शोपियां जि़ले में दो महिलाओं का बलात्कार करके उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया। बढ़ते जनदबाव के बाद कहीं जाकर राज्य पुलिस ने एफ़.आई.आर. दर्ज की।

”देशभक्ति” के गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश

इन फ़ासिस्टों के खिलाफ़ लड़ाई कुछ विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों से नहीं जीती जा सकती। इनके विरुद्ध लम्बी ज़मीनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। भारत में संसदीय वामपंथियों ने हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथ विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत का और कुछ रस्मी प्रतीकात्मक विरोध का मुद्दा बना दिया है।

कश्मीर में बाढ़ और भारत में अंधराष्ट्रवाद की आँधी

किसी देश के एक हिस्से में इतनी भीषण आपदा आने पर होना तो यह चाहिए कि पूरे देश की आबादी एकजुट होकर प्रभावित क्षेत्र की जनता के दुख-दर्द बाँटते हुए उसे हरसंभव मदद करे। साथ ही ऐसी त्रासदियों के कारणों की पड़ताल और भविष्य में ऐसी आपदाओं को टालने के तरीकों पर गहन विचार-विमर्श होना चाहिए। परन्तु कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानने का दावा करने वाले भारत के हुक़्मरानों नें इस भीषण आपदा के बाद जिस तरीके से अंधराष्ट्रवाद की आँधी चलायी वह कश्मीर की जनता के जले पर नमक छिड़कने के समान था। भारतीय सेना ने इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए बुर्जुआ मीडिया की मदद से अपनी पीठ ठोकने का एक प्रचार अभियान सा चलाया जिसमें कश्मीर की बाढ़ के बाद वहाँ भारतीय सेना द्वारा चलाये जा रहे राहत एवं बचाव कार्यों का महिमामण्डन करते हुए कश्मीर में भारतीय सेना की मौजूदगी को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की गयी। मीडिया ने इस बचाव एवं राहत कार्यों को कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया मानो भारतीय सेना राहत और बचाव कार्य करके कश्मीरियों पर एहसान कर रही है। यही नहीं कश्मीरियों को ‘‘पत्थर बरसाने वाले’’ एहसानफ़रामोश क़ौम के रूप में भी चित्रित किया गया। कुछ टेलीविज़न चैनलों पर भारतीय सेना के इस ‘‘नायकत्वपूर्ण’’ अभियान को एक ‘‘ऐतिहासिक मोड़बिन्दु’’ तक करार दिया गया और यह बताया गया कि इस अभियान से सेना ने कश्मीरियों का दिल जीत लिया और अब उनका भारत से अलगाव कम होगा।

कैसा है यह लोकतंत्र और यह संविधान किसकी सेवा करता है ? (बीसवीं किस्त)

उत्तर-पूर्व के समान ही जम्मू एवं कश्मीर की जनता के साथ भारतीय राज्य अपने जन्म से ही छल और कपट करता आया है जिसका दुष्परिणाम वहाँ की जनता को आज तक झेलना पड़ रहा है। भारत का खाता-पीता मध्य वर्ग जब राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत होकर कश्मीर को भारत का ताज़ कहता है तो उसे यह आभास भी नहीं होता कि यह ताज़ कश्मीरियों की कई पीढ़ियों की भावनाओं और आकांक्षाओं को बेरहमी से कुचल कर बना है। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि कश्मीर में आतंकवाद की हरक़तों को बढ़ावा देने में पाकिस्तान का भी हाथ है परन्तु यह सच्चाई आमतौर पर दृष्टि ओझल कर दी जाती है कि कश्मीर में आतंकवाद के पनपने की मुख्य वजह भारतीय राज्य की वायदाखि़लाफ़ी और कश्मीरी जनता के न्यायोचित संघर्षों के बर्बर दमन और उससे बढ़ते असंतोष एवं अलगाव की भावना रही है।