भारत पहले ही दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े ख़रीदारों में शामिल है। अभी ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका का जो गँठजोड़ (ब्रिक्स) उभर रहा है उसमें हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीदार भारत ही है। फिर भी चीन की सैन्य शक्ति के मुक़ाबले यह बहुत पीछे है और बहुत कोशिश करके भी उसकी बराबरी में नहीं आ सकता। यहाँ यह चर्चा करना भी महत्वपूर्ण है कि चीन अब साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएँ पाल रहा है और क्षेत्रीय विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं में भारत से उसके टकराव की अभी बहुत कम सम्भावना है। पाकिस्तान के मुक़ाबले तो भारत की सैन्य शक्ति पहले ही कई गुना अधिक है। इसलिए यह समझा जा सकता है कि इन देशों से सम्भावित ख़तरे के कारण नहीं बल्कि अपनी क्षेत्रीय विस्तारवादी महत्वाकांक्षा के चलते ही भारतीय शासक वर्ग इतने बड़े पैमाने पर हथियारों का ज़खीरा इकट्ठा कर रहे हैं। अगल-बगल के छोटे देशों को डराने के लिए और दुनिया के पैमाने पर अपनी ताक़त दर्शाने के लिए यह सारी क़वायद की जा रही है। परमाणु शक्ति तो वह पहले ही हासिल कर चुका है। भारतीय शासक वर्ग जानते हैं कि साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा में वे अपने बूते पर नहीं टिक सकते। विश्वस्तर पर लूट में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए उन्हें किसी न किसी गुट में शामिल होना है और इसके लिए अपनी सामरिक शक्ति का मुज़ाहिरा करते रहना भी ज़रूरी है। इसके अलावा विराट सैन्य शक्ति का हव्वा दिखाना अपनी जनता के लिए भी ज़रूरी होता है। हर शोषक राज्यसत्ता अपने उन्नत, शक्तिशाली सैन्यतन्त्र का हव्वा खड़ा करने की कोशिश करती है जिससे कि आम जनता उससे टकराने की हिम्मत न जुटा सके।