बीज तुम बोते हो, काटते हैं दूसरे ही…
ब्रिटेनवासियों के नाम
पर्सी बिषी शेली
औद्योगिक क्रान्ति के बाद इंग्लैण्ड में सामन्ती भूस्वामियों और कुलीनों के शोषण का स्थान पूंजीपतियों के शोषण ने ले लिया। औद्योगिक क्रान्ति के बाद के इंग्लैण्ड में, मजदूरों और किसानों की जिन्दगी की नारकीय स्थितियों का चित्र आज से करीब डेढ़ सौ वर्षों पहले वहां के क्रान्तिकारी महाकवि पर्सी बिषी शेली ने अपनी इस कविता में खींचा था और मेहनतकश अवाम से विद्रोह का आह्वान किया था। वह अमर कविता हम यहां ‘बिगुल’ के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। -सम्पादक
ओ ब्रिटेनवासियो!
क्यों तुम भू–स्वामियों के हेतु
भूमि जोतते हो,
दे रहे जो नीची से नीची स्थिति तुम्हें?
क्यों तुम उन स्वामियों के हेतु
बुन रहे हो यह
नूतन आकर्षक वस्त्र्
पटुता से, अथक परिश्रम से;
जिससे उन वस्त्रों को, जो कि बहुमूल्य हैं,
क्रूर वे शासक–गण गौरव से पहनें?
क्यों तुम देते हो भोजन, वसन, रक्षा
जन्म से मृत्यु पर्यन्त सदा उनको ही,
वे जो अकृतज्ञ है, काहिल, निखट्टू हैं;
कर रहे हैं शोषण तुम्हारी पसीने की
गाढ़ी कमाई का,
नहीं, नहीं–खून चूसते हैं वे तुम्हारा।
कार्यशील, कर्मठ ओ मानवो, ब्रिटेन के!
इसी हेतु गढ़ते हो क्या तुम
अगणित औजारों को,
अस्त्रों को, शस्त्रों को,
श्रृंखला की कड़ियों को,
जिनके प्रयोगों से निर्दय वे
नर मधुमक्खियों से
डंकहीन होकर भी
लूटें वे तुमको ही?
कर सकें प्रयुक्त सभी वस्तुएं वे
तुम पर ही
जोकि कड़ी मेहनत से तुमने बनाई हैं।
क्या तुम्हारा अवकाश, शान्ति
और विश्राम
आश्रय और भोजन,
प्रेम का सुकोमल अस्तित्व जो कि औषध–सा
घावों को भरता है,
कुछ भी नहीं हैं क्या वह भी
तुम्हारे लिए?
अथवा वह क्या है, जिस हेतु
तुम चुकाते हो,
इतना बड़ा मूल्य
अपने परिश्रम से,
डर–डर कर शोषकों से,
स्वामियों से?
बीज तुम बोते हो,
किन्तु काटते हैं सदैव दूसरे ही उसे;
धन की वह राशि जिसे तुमने ही पाया है,
मांगते हैं, रखते हैं किन्तु दूसरे ही उसे;
वसन और भूषण जो तुमने बनाये हैं,
पहन कर पाते हैं शोभा दूसरे ही उसे;
अस्त्र–शस्त्र जिनका निर्माण तुम करते हो,
किन्तु उसे धारण कर दूसरे सुसज्जित हो
जाते हैं रण में
अपनी विजय के हेतु।
बीज तुम बोओ
किन्तु मत काटने दो
अपनी इन फसलों को
निष्ठुर उन शासकों को;
अर्जन करो, भोग करो अपनी धनराशि का,
किन्तु मत करने दो
दूसरों को कोषों में संचित
यह अपना धन
उन छली प्रवंचकों को,
धनिकों को, स्वामियों को;
नूतन वसन, भूषणों को बुनो तुम,
किन्तु मत पहनने दो
अकर्मण्य कायरों को;
निर्मित करो अस्त्र्–शस्त्र् अपनी सुसज्जा को,
धारण करो स्वयं
….सदैव आत्म–रक्षा के लिए।
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