जोसेफ़ स्तालिन की एक दुर्लभ कविता
यह कविता स्तालिन ने महज 16 वर्ष की आयु में लिखी थी। दासता की बेड़ियों में जकड़े जिन मेहनतकशों के आशा के पंखों के सहारे उड़ने का सपना उन्होंने देखा था, उन्हीं सपनों को सच्चाई में बदलने का रास्ता स्तालिन की पूरी जिन्दगी का सफ़रनामा रहा। 1917 की सोवियत समाजवादी क्रान्ति को अंजाम देने मे वे लेनिन के अगुवा सहयोगी रहे और नवजात सर्वहारा राज्य के जीवन मृत्यु के संघर्ष में हर पल लेनिन के भरोसेमन्द साथी रहे। लेनिन की मृत्यु के बाद उन्होंने तीस वर्षों तक सोवियत संघ में समाजवाद का निर्माण करने में रूस की जनता की रहनुमाई की, द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की फ़ौजों को धूल चटाकर मानवता की रक्षा की और पूरी दुनिया के संघर्षरत मेहनतकशों, विश्व सर्वहारा और कम्युनिस्ट ताकतों का मार्गदर्शन किया। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पूरी दुनिया के पूँजीपति, उनका मीडिया और भाड़े के टट्टू पूँजीवादी बुद्धिजीवी स्तालिन को सबसे अधिक गालियां देते हैं और उनके खिलाफ़ सबसे अधिक कुत्साप्रचार करते हैं। ऐसा ही कभी रोब्सपियेर (फ्रांसीसी क्रान्ति का महानायक) के साथ भी हुआ था। तमाम कुत्साप्रचारों के बावजूद पूरी दुनिया के मेहनतकश प्रथम समाजवादी प्रयोग के मार्गदर्शक को गहरे प्यार और श्रद्धा से याद करते हैं। – सम्पादक
उसकी पीठ और कमर झुक गई थी
लगातार काम करते करते।
जो कल तक दासता की बेड़ियों में बंद
घुटने टेके हुए था,
वह अपनी आशा के पंखों पर उड़ेगा
सबसे ऊपर, ऊपर उठेगा।
मैं कहता हूँ उसकी ऊंचाई पर
पहाड़ तक
अचरज और ईर्ष्या करेंगे।
(1895)
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन