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लेनिन की मृत्यु पर कैंटाटा
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट, अनुवाद: सत्यम
1.
जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं।’ वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।
2.
जब कोई भला आदमी जाना चाहे
तो आप कैसे रोक सकते हैं उसे?
उसे बताइये कि अभी क्यों है उसकी ज़रूरत।
यही तरीक़ा है उसे रोकने का।
3.
और क्या चीज़ रोक सकती थी भला लेनिन को जाने से?
4.
सोचा उस सैनिक ने
जब वो सुनेंगे, शोषक आ रहे हैं
उठ पड़ेंगे वो, चाहे जितने बीमार हों
शायद वो बैसाखियों पर चले आयें
शायद वो इजाज़त दे दें कि
उन्हें उठाकर ले आया जाये, लेकिन
उठ ही पड़ेंगे वो और आकर
सामना करेंगे शोषकों का।
5.
जानता था वो सैनिक, कि लेनिन
सारी उमर लड़ते रहे थे
शोषकों के ख़िलाफ़
6.
और वो सैनिक शामिल था
शीत प्रासाद पर धावे में,
और घर लौटना चाहता था
क्योंकि वहाँ बाँटी जा रही थी ज़मीन
तब लेनिन ने उससे कहा था:
अभी यहीं रुको !
शोषक अब भी मौजूद हैं।
और जब तक मौजूद है शोषण
लड़ते रहना होगा उसके ख़िलाफ़
जब तक तुम्हारा वजूद है
तुम्हें लड़ना होगा उसके ख़िलाफ़।
7.
जो कमज़ोर हैं वे लड़ते नहीं। थोड़े मज़बूत
शायद घंटे भर तक लड़ते हैं।
जो हैं और भी मज़बूत वे लड़ते हैं कई बरस तक।
सबसे मज़बूत होते हैं वे
जो लड़ते रहते हैं ताज़िन्दगी।
वही हैं जिनके बग़ैर दुनिया नहीं चलती।
8.
कसीदा इंक़लाबी के लिए
अक्सर वे बहुत अधिक हुआ करते हैं
वे ग़ायब हो जाते, बेहतर होगा।
लेकिन वह ग़ायब हो जाये, तो उसकी कमी खलती है।
वह संगठित करता है अपना संघर्ष
मजूरी, चाय-पानी
और राज्यसत्ता की ख़ातिर।
वह पूछता है सम्पत्ति से:
कहाँ से आई हो तुम?
जहाँ भी ख़ामोशी हो
वह बोलेगा
और जहाँ शोषण का राज हो
और क़िस्मत की बात की जाती हो
वह उँगली उठायेगा।
जहाँ वह मेज पर बैठता है
छा जाता है असन्तोष मेज पर
ज़ायका बिगड़ जाता है
और कमरा तंग लगने लगता है।
उसे जहाँ भी भगाया जाता है,
विद्रोह साथ जाता है और जहाँ से उसे भगाया जाता है
असन्तोष रह जाता है।
9.
जब लेनिन नहीं रहे और
लोगों को उनकी याद आई
जीत हासिल हो चुकी थी, मगर
देश था तबाहो-बर्बाद
लोग उठकर बढ़ चले थे, मगर
रास्ता था अँधियारा
जब लेनिन नहीं रहे
फुटपाथ पर बैठे सैनिक रोये और
मज़दूरों ने अपनी मशीनों पर काम बंद कर दिया
और मुट्ठियाँ भींच लीं।
10.
जब लेनिन गये,
तो ये ऐसा था
जैसे पेड़ ने कहा पत्तियों से
मैं चलता हूँ।
11.
तब से गुज़र गये पंद्रह बरस
दुनिया का छठवाँ हिस्सा
आज़ाद है अब शोषण से।
‘शोषक आ रहे हैं!’: इस पुकार पर
जनता फिर उठ खड़ी होती है
हमेशा की तरह।
जूझने के लिए तैयार।
12.
लेनिन बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में,
वो थे हमारे शिक्षक।
वो हमारे साथ मिलकर लड़ते रहे।
वो बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में।
(1935)
* कैंटाटा – वाद्य संगीत के साथ गायी जाने वाली संगीत रचना, जो प्राय: वर्णनात्मक और कई भागों में होती है (कुछ-कुछ हमारे बिरहा की तरह)। इस कैंटाटा के संगीत को अंतिम रूप दिया था ब्रेष्ट के साथी और महान जर्मन संगीतकार हान्स आइस्लर ने। इस रचना का आठवाँ भाग ‘इंक़लाबी की शान में क़सीदा’ ब्रेष्ट ने पहलेपहल 1933 में, गोर्की के उपन्यास ‘माँ’ पर आधारित अपने नाटक के लिए लिखा था।
Cantata on the day of Lenin’s death
Bertolt Brecht
1.
The day Lenin passed away
A soldier of the death watch, so runs the story, told his comrades: I did not want to
Believe it. I went inside, and
Shouted in his ear: ‘Ilyich
The exploiters are on their way!’ He did not move. Now
I knew that he has expired.
2.
When a good man wants to leave
How can you hold him back?
Tell him why he is needed.
That holds him.
3.
What could hold Lenin back?
4.
The soldier thought
When he hears, the exploiters are coming
He may be ever so ill, he will still get up
Perhaps he will come on crutches
Perhaps he will let himself be carried, but
He will get up and come
In order to confront the exploiters.
5.
The soldier knew, that is to say, that Lenin
Throughout his life, had carried on a struggle
Against the exploiters.
6.
And the soldier who had taken part
In the storming of the Winter Palace wanted to return home, because there
The landed estates were being distributed
Then Lenin had told him: stay on!
The exploiters are there still.
And so long there is exploitation
One must struggle against it.
So long as you exist
You must struggle against it.
7.
The weak do not fight. The stronger
Fight on perhaps for an hour.
Those who are stronger still fight for many years
The strongest fight on all their life.
These are indispensable.
8.
In Praise of the Revolutionary
Many are too much
When they leave, it is better so
But when he goes, he is missed.
He organises his struggle
For wage-pennies, for tea-water
And for taking over power.
He asks property:
What is your origin ?
He asks the viewpoints:
Whom do you serve ?
Wherever there is a hush
He will speak out
Wherever there is oppression, and the talk is of fate
He will call things by their right names.
Where he sits down on the table
There sits also dissatisfaction
The food is perceived to be awful
And the room too narrow.
Wherever they chase him away
Turmoil follows, and at the hunting place
Unrest remains.
9.
When Lenin passed away and was missed
The victory had been won, but the land lay waste
The masses had set out, but
The way was dark
As Lenin passed away
Soldiers, sitting on the footpaths, wept
And the workers went away from their machines
And clenched their fists.
10.
As Lenin went, it was
As if the tree said to its leaves
I am off.
11.
Since then fifteen years have passed away
One sixth of the globe
Is freed from exploitation.
At the call: the exploiters are coming!
The masses, as ever, stand up anew.
Ready for the struggle.
12.
Lenin is enshrined
In the large heart of the working-class,
He was our teacher.
He carried on the struggle along with us.
He is enshrined
In the large heart of the working class.
(1935)
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन