अक्टूबर क्रान्ति के दिनों की वीरांगनाएँ

अलेक्सान्द्रा कोल्लोन्ताई

वे कौन नारियाँ थीं, जिन्होंने महान अक्टूबर क्रान्ति में हिस्सा लिया था? क्या वे अलग-अलग व्यक्ति थीं? नहीं, उनकी संख्या बहुत बड़ी थी; दसियों, सैकड़ों- हज़ारों अनाम नायिकाएँ जिन्होंने लाल झण्डे और सोवियतों के नोरे के पीछे मज़दूरों ओर किसानों के कन्धे से कन्धा मिलाकर मार्च करते हुए धर्मकेन्द्रित ज़ारशाही के ध्वंसावशेषों के ऊपर से गुज़रकर एक नूतन भविष्य में प्रवेश किया…।

russian women rev 1यदि कोई पीछे मुड़कर अतीत पर नज़र डाले तो वह उन्हें देख सकता है – इन अनाम नायिकाओं की आबादी को, जिन्हें अक्टूबर ने भूख से मरते शहरों और लड़ाई में लूटे गये ग़रीब गाँवों में पाया था… सिर पर रूमाल बाँधे (हालाँकि इनमें लाल रूमाल अभी बहुत कम ही थे), घिसा हुआ घाघरा और रूई भरा जाड़े का जैकेट पहने… जवान और वृद्ध, मज़दूरिनें और सिपाहियों की पत्नियाँ, किसान औरतें और शहर के ग़रीबों की गृहणियाँ। इनमें दफ्तरों में काम करने वाली या अन्य पेशों में लगी औरतें, शिक्षित और सुसंस्कृत औरतें कम, ख़ासतौर पर इन दिनों में, बहुत ही कम थीं। लेकिन लाल झण्डे को अक्टूबर की विजय तक पहुँचाने वालों में बुद्धिजीवी वर्ग से आई नारियाँ भी थीं – अध्यापिकाएँ, दफ्तरों में काम करने वाली स्त्रियाँ, हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों की तरुण छात्राएँ, चिकित्सकाएँ। वे ख़ुशी-ख़ुशी, निःस्वार्थ भाव से और निश्चित उद्देश्य के साथ चलती गयीं। जहाँ भी उन्हें भेजा गया, वे गयीं। मोर्चे पर? उन्होंने सिपाही की टोपी लगायी और लाल सेना की योद्धा बन गयीं। अगर उन्होंने बाँहों पर लाल पट्टियाँ लगा लीं तो वे गात्विना (लेनिनग्राद के पास का एक उपनगर) में केरेन्सकी के विरुद्ध लाल सेना की मदद के लिए प्राथमिक चिकित्सा स्टेशनों की ओर लपक रही होती थीं। वे सेना की संचार व्यवस्था में काम करती थीं। वे बेहद ज़िन्दादिली के साथ काम करती थीं। इस विश्वास से भरी हुई कि कोई भारी महत्त्व की चीज़ घटित हो रही है और हम सब क्रान्ति की एक ही श्रेणी के छोटे-छोटे पुर्जे हैं।

गाँवों में किसान औरतों ने, जिनके पति मोर्चे पर भेज दिये गये थे, भूस्वामियों से ज़मीन छीन ली और अभिजातों को उनके घोंसलों से बाहद खदेड़ दिया जिनमें वे सदियों से पल रहे थे।

जब भी अक्टूबर की घटनाओं का स्मरण किया जाता है तो अलग-अलग चेहरे नहीं, बल्कि जनसमूह दिखायी पड़ते हैं। असंख्य जनसमूह, मानवता की लहरों की तरह। पर जहाँ भी नज़र डाली जाये औरतें दिखायी देती हैं – बैठकों में, सभाओं में, प्रदर्शनों में…। अभी वे निश्चित नहीं है कि वे ठीक-ठीक क्या चाहती हैं, किसके लिए वे प्रयासरत हैं। लेकिन वे एक चीज़ जानती हैं: वे अब युद्ध को और बर्दाश्त नहीं करेंगी। और न ही वे भूस्वामियों और अमीरों को चाहती हैं… 1917 के वर्ष में मानवता का महासमुद्र उफनता और हिलोरें लेता है, और उस महासमुद्र का एक भारी हिस्सा औरतों से बना हुआ है…

एक दिन इतिहासकार क्रान्ति की उन अनाम नायिकाओं के कारनामों के बारे में लिखेगा जो मोर्चे पर मारी गयीं, जिन्हें श्वेत गार्डों ने गोली से उड़ा दिया, जिन्होंने क्रान्ति के बाद आने वाले पहले वर्षों के अनगिनत अभावों को झेला लेकिन सोवियत सत्ता और कम्युनिज़्म के लाल निशान को ऊँचा उठाये रखा। इन्हीं अनाम नायिकाओं के प्रति, जो मेहनतकश लोगों के लिए एक नया जीवन हासिल करने के लिए अक्टूबर क्रान्ति के दौरान शहीद हुईं, युवा गणतन्त्र सम्मान में अपना सिर झुकाता है, जबकि इसके ज़िन्दादिल और उत्साही युवा लोग समाजवाद के आधारों के निर्माण में लग रहे हैं।

परन्तु स्कार्फों और घिसी टोपियों से ढँके औरतों के सिरों के इस समुद्र में से अनिवार्यतः उन लोगों की छवियाँ उभरती हैं जिन पर इतिहासकार विशेष ध्यान देगा जब आज से कई साल बाद वह महान अक्टूबर क्रान्ति और इसके नेता लेनिन के बारे में लिखेगा।

सबसे पहले जो छवि उभरती है, वह है लेनिन की वफ़ादार संगिनी नादेज़्दा कोन्स्तान्तिनोव्ना क्रूप्सकाया की – अपनी सादी, स्लेटी पोशाक पहने हुए, हमेशा पृष्ठभूमि में रहने का प्रयास करते हुए। वे बिना किसी का ध्यान आकर्षित हुए, चुपचाप, किसी बैठक में प्रवेश कर जातीं और किसी खम्भे के पास खड़ी हो जातीं। पर वे एक-एक चीज़ देखती और सुनती थीं, जो कुछ भी हो रहा होता, उसका अध्ययन करते हुए, ताकि फिर वे व्लादीमिर इलिच को पूरा विवरण दे सकें, अपनी सटीक टिप्पणियाँ जोड़ सकें और कोई युक्तिपूर्ण, उपयुक्त और उपयोगी विचार सुझा सकें। उन दिनों नादेज़्दा कोन्स्तान्तिनोव्ना उन ढेरों तूफ़ानी बैठकों में नहीं बोलती थीं जिनमें लोग इस महान प्रश्न पर बहस करते थे कि सोवियत सत्ता जीतेगी या नहीं? परन्तु वे अनथक रूप से व्लादीमिर इलीच के दाहिने हाथ की तरह काम करती थीं और कभी-कभी पार्टी बैठकों में कोई संक्षिप्त पर प्रभावकारी वक्तव्य देती थीं। भयंकर विपत्ति और ख़तरे के क्षणों में भी, जब अनेक मज़बूत कॉमरेड हिम्मत हार बैठे और संशय के शिकार हो गये, नादेज़्दा कोन्स्तान्तिनोव्ना हमेशा वैसी ही बनी रहीं – लक्ष्य की सत्यता और इसकी निश्चित विजय के प्रति पूर्ण आश्वस्त। वे अडिग आस्था का स्रोत थीं, ओर जो कोई भी अक्टूबर क्रान्ति के महान नेता की इस सहचरी के सम्पर्क में आता था, उस पर विनम्रता के आवरण में ढँकी व्यक्तित्व की यह दृढ़ता हमेशा ही एक स्फूर्तिदायक प्रभाव छोड़ती थी।

एक दूसरी छवि उभरती है – और वह है लेनिन की एक और वफ़ादार साथी, भूमिगत कार्य के कठिन वर्षों की विश्वस्त दोस्त, पार्टी की केन्द्रीय समिति की सेक्रेटरी – येलेना द्मीत्रियेव्ना स्तासोवा की। स्पष्ट, बुद्धिमत्तापूर्ण और अत्यन्त सूक्ष्मता- पूर्वक काम करने की असाधारण क्षमता, और किसी काम के लिए सटीक आदमी ढूँढ़ निकालने की विशिष्ट योग्यता। उनकी लम्बी, मूर्तिवत आकृति पहले ताव्रिचेस्की प्रासाद (1917 में मज़दूरों और सिपाहियों की पेत्रोग्राद सोवियत की बैठक जहाँ हुई थी) की सोवियत में, फिर क्शेसिन्स्काया (फ़रवरी क्रान्ति के बाद बोल्शेविक पार्टी की पीटर्सबर्ग कमेटी की बैठक बैले नर्तकी क्शेसिन्स्काया के घर पर हुई थी) के घर में और अन्ततः स्मोल्नी में देखी जा सकती थी। अपने हाथों में वे एक नोटबुक लिये होती थीं और उनके चारों तरफ़ मोर्चे से आये कॉमरेडों, मज़दूरों, लालगार्डों, महिला श्रमिकों और पार्टी तथा सोवियतों का समूह किसी तेज़, स्पष्ट उत्तर या निर्देश की प्रतीक्षा में जमा रहता था। स्तासोवा अनेक महत्त्वपूर्ण मामलों की ज़िम्मेदारी सँभालती थीं, किन्तु यदि उन तूफ़ानी दिनों में कोई साथी किसी विपत्ति या परेशानी में होता था तो वे तत्काल ध्यान देती थीं। वे तत्काल ही उसका कोई संक्षिप्त, ऊपर से रूखा-सा लगने वाला जवाब देती थीं और ख़ुद भी जितना बन पड़े करती थीं। वे कामों के बोझ से दबी रहती थीं और हमेशा अपनी जगह पर चुस्त रहती। हमेशा अपनी जगह पर… कभी भी अगली क़तार में और प्रतिष्ठा के घेरे में आने का प्रयास न करते हुए। वे कभी भी लोगों के ध्यान के केन्द्र में होना पसन्द नहीं करती थीं। उनकी सारी चिन्ता ख़ुद के लिए नहीं, बल्कि उद्देश्य के लिए थी। कम्युनिज़्म के महान और लम्बे समय से संजोये हुए उद्देश्य के लिए, जिसके लिए येलेना स्तासोवा ने निर्वासन और ज़ारशाही जेलों की क़ैद भोगी जिसने उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह तोड़ डाला… उद्देश्य के नाम पर वे वज्र की तरह थीं, इस्पात की तरह कठोर, किन्तु अपने साथियों के प्रति वे ऐसी संवेदनशीलता और सहानुभूति प्रदर्शित करती थीं, जो केवल एक स्नेही और उदारहृदय नारी में ही हो सकती है।

क्लॉदिया निकोलायेवा बहुत साधारण घर से आयी एक मज़दूर औरत थीं। वे 1908 में ही, प्रतिक्रिया के वर्षों में बोल्शेविकों के साथ हो गयी थीं, और निर्वासन और क़ैद झेल चुकी थीं। 1917 में वे लेनिनग्राद लौट आयीं और मेहनतकश औरतों की पहली पत्रिका ‘कम्युनिस्तका’ का हृदय बन गयीं। वे अभी भी युवा थीं और आवेग तथा अधैर्य से भरी हुई थीं। किन्तु उन्होंने लाल झण्डे को मज़बूती से थामा और निडरतापूर्वक घोषणा की कि मज़दूर औरतों, सिपाहियों की पत्नियों और किसान औरतों को पार्टी में लाना चाहिए। औरतो! काम पर चलो! सोवियतों और कम्युनिज़्म की रक्षा के लिए चलो!

जब वे बैठकों में भाषण देती थीं तो कुछ अधीर और ख़ुद के प्रति पूर्ण आश्वस्त नहीं होती थीं, किन्तु फिर भी दूसरों को अपना अनुसरण करने के लिए आकर्षित करती थीं। वे उन लोगों में से एक थीं, जिन्होंने क्रान्ति में औरतों की व्यापक सामूहिक हिस्सेदारी का रास्ता तैयार करने में आने वाली सारी कठिनाइयाँ अपने कन्धों पर झेली थीं। वे उनमें से एक थीं जो एक साथ दो मोर्चों पर लड़े – सोवियतों और कम्युनिज़्म के लिए और उसी समय स्त्रियों की मुक्ति के लिए भी। क्लॉदिया निकोलायेवा और कोंकोर्दिया समोइलोवा, जो क्रान्ति के कामों के दौरान हैजे से मर गयीं, के नाम मेहनतकश स्त्रियों के आन्दोलन के पहले और सर्वाधिक कठिन क़दमों के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। कोंकोर्दिया समोइलोवा अद्वितीय निःस्वार्थता वाली पार्टी कार्यकर्ता थीं। वे एक बढ़िया, व्यावहारिक वक्ता थीं और मज़दूर औरतों का दिल जीतना चाहती थीं। जिन्होंने उनके साथ काम किया है, वे लम्बे समय तक कोंकोर्दिया समोइलोवा को याद रखेंगे। वे बिल्कुल सादी पोशाक पहनती थीं और सरल व्यवहार करती थीं, किन्तु निर्णयों का कार्यान्वयन पूरी निष्ठा के साथ करती थीं – ख़ुद के साथ और दूसरों के साथ भी पूरी सख़्ती बरतते हुए।

इनेस्सा आरमाँ की सौम्य और मोहक छवि विशेष रूप से ध्यान खींचती है, जिन पर अक्टूबर क्रान्ति की तैयारी में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पार्टी कार्य सौंपा गया था और जिन्होंने उसके बाद औरतों के बीच चलाये गये काम में अनेक रचनात्मक विचारों का योगदान किया। अपने व्यवहार की समस्त नारी सुलभ कमनीयता और सौम्यता के बावजूद इनेस्सा आरमाँ अपने विश्वासों पर अटल थीं और जिसे सही समझती थीं उसकी रक्षा विकट विरोधियों के सामने भी कर सकने में समर्थ थीं। क्रान्ति के बाद इनेस्सा आरमाँ ने ख़ुद को औरतों का व्यापक आन्दोलन संगठित करने में समर्पित कर दिया और औरतों की प्रतिनिधि सभा उन्हीं की रचना है।

मास्को में अक्टूबर क्रान्ति के कठिन और निर्णायक दिनों में वार्वरा निकोलायेवा ने भारी काम किया था। बैरिकेडों की लड़ाई में उसने पार्टी हेडर्क्वाटर के नेता के योग्य दृढ़संकल्प का परिचय दिया। बहुत सारे साथियों ने बताया कि उस समय उनके दृढ़ संकल्प और अडिग साहस ने उन्हें हिम्मत बँधायी जो विचलित हो रहे थे और हिम्मत हार बैठे लोगों को प्रेरित किया – ‘आगे बढ़ो!’ विजय तक।

महान अक्टूबर क्रान्ति में भाग लेने वाली औरतों को याद करते हुए मानो जादू से स्मृति से एक के बाद एक नाम और चेहरे उभरते आते हैं। क्या आज हम वेरा स्लुत्स्काया की स्मृति के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने में चूक सकते हैं जोकि निःस्वार्थ भाव से क्रान्ति की तैयारी में काम करती रहीं और पेत्रोग्राद के निकट लाल मोर्चे पर कज़ाकों की गोली से मारी गयीं।

क्या हम येव्गेनिया बॉश को, उसके आग्नेय मिजाज को भूल सकते हैं, जो हर समय लड़ाई के लिए उत्सुक रहती थीं। वे भी क्रान्ति में अपने नियत स्थान पर लड़ती हुई मरीं।

क्या हम लेनिन के जीवन और कार्यों से नज़दीकी से जुड़े दो नामों – उनकी दो बहनों और विश्वस्त साथियों – आन्ना इलिनिच्ना येलिज़ारोवा और मारिया इलिनिच्ना उल्यानोवा का उल्लेख यहाँ छोड़ सकते हैं?

और मास्को की रेलवे वर्कशापों की कॉमरेड वार्या? हमेशा जीवन्त, हमेशा जल्दी में। और लेनिनग्राद की कपड़ा मज़दूर फ्रयोदोरोवा, उसके ख़ुशनुमा चेहरे और बैरिकेडों पर लड़ने के समय उसकी निर्भयता को क्या हम भूल सकते हैं?

उन सबके नाम गिनाना असम्भव है। और न जाने कितनी तो अनाम हैं। अक्टूबर क्रान्ति की नायिकाएँ एक पूरी सेना के बराबर थीं और नाम भले ही भूल जायें उस क्रान्ति की जीत में और आज सोवियत संघ में और औरतों को मिली उपलब्धियों और अधिकारों के रूप में उनकी निःस्वार्थता जीवित रहेगी।

यह एक स्पष्ट और निर्विवाद तथ्य है कि औरतों की हिस्सेदारी के बिना अक्टूबर क्रान्ति में लाल झण्डे की विजय नहीं हो सकती थी। अक्टूबर क्रान्ति में लाल झण्डे के नीचे मार्च करने वाली औरतें ज़िन्दाबाद! औरतों को मुक्ति दिलाने वाली अक्टूबर क्रान्ति ज़िन्दाबाद!

बिगुल, नवम्‍बर 2008


 

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