Category Archives: समाज

स्त्रियों के विरुद्ध जारी बर्बरता – निरन्तर और संगठित प्रतिरोध की ज़रूरत है

पिछले चन्‍द हफ़्तों के भीतर उत्तर प्रदेश में और पूरे देश में स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों की जो बाढ़ आ गयी वह हर नागरिक के लिए चिन्ता और ग़ुस्‍से का सबब है, मगर यह तो होना ही था।

अयोध्‍या फ़ैसला : क़ानून नहीं, आस्‍था के नाम पर बहुसंख्‍यकवाद की जीत

जब सुप्रीम कोर्ट ने अचानक अयोध्‍या मामले की रोज़ाना सुनवाई करना शुरू किया था तभी से यह लगने लगा था कि फ़ैसला किस तरह का होने वाला है। न्‍यायपालिका पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से मोदी सरकार की चाकर की तरह के रूप में काम कर रही है, उसे देखते हुए भी समझदार लोगों को किसी निष्‍पक्ष फ़ैसले की उम्‍मीद नहीं थी।

जेएनयू में सफ़ाई मज़दूरों की हड़ताल : एक रिपोर्ट

जेएनयू में सफ़ाई मज़दूरों की हड़ताल : एक रिपोर्ट देश के अन्‍य केन्‍द्रीय संस्‍थानों की तरह जेएनयू में भी ठेका मज़दूरों की बड़ी आबादी काम कर रही है। विश्वविद्यालय में…

पंजाब के संगरूर में दलित खेत मज़दूर की बर्बर हत्या!

पंजाब के संगरूर में दलित खेत मज़दूर की बर्बर हत्या! दलितों के सामाजिक उत्पीड़न और आर्थिक शोषण के विरुद्ध साझा जुझारू संघर्ष छेड़ने होंगे – अखिल भारतीय जाति-विरोधी मंच पंजाब…

इलाहाबाद में एक और प्रतियोगी छात्रा की आत्महत्या!

इलाहाबाद में एक और प्रतियोगी छात्रा की आत्महत्या! हम चुप क्यों हैं? हम किसका इन्तज़ार कर रहे हैं? इलाहाबाद में धूमनगंज के कालिन्दीपुरम में रहने वाली प्रतियोगी छात्रा विनीता वर्मा…

बेटी बचाओ, भाजपाइयों से! भाजपा नेताओं के कुकर्मों की शिकार हुई एक और बेटी

‘बेटी के सम्मान में, भाजपा मैदान में’ और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे लुभावने नारों के शोरगुल के बीच इस देश की बेटियों के साथ लगातार होने वाली बर्बरता को छि‍पाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन 6 सालों में हुए स्त्री-विरोधी अपराध के आँकड़े चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि भाजपा सरकार के खोखले नारे महज़ वोट बटोरने की नौटंकी हैं। कठुआ और उन्नाव जैसी बर्बर,मानवद्रोही, स्त्री-विरोधी घटनाओं की याद अभी ताज़ी ही है कि एक नया प्रकरण हमारे सामने है।

क्या आप अवसाद ग्रस्त हैं? दरअसल आप पूँजीवाद के शिकार हैं !

ज़िन्दगी की भागमभाग के बीच जब हम ठहरकर सड़कों, दफ़्तरों या स्कूलों-कॉलेजों में आते-जाते लोगों के चेहरों पर ग़ौर करते हैं तो पाते हैं कि आज के दौर में हर कोई अकेला, मायूस, ग़मगीन और तकलीफ़ों के बोझ से दबा दिखायी देता है। आज के समय की सच्चाई यह है कि हज़ारों ऑनलाइन दोस्त होने के बाद भी लोग दिल की बात किसी एक को भी बता नहीं पाते। दिल खोलकर हँसना, सामूहिकता का आनन्द लेना, बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करना तो कल्पना की बातें हो गयी हैं; लोगों में नफ़रत, अविश्वास, बदहवासी, ऊब बढ़ रही है। 2018 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट आयी थी जिसमें यह पाया गया कि दुनिया में सबसे ज़्यादा मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार लोग भारत में रहते हैं।

(अर्द्ध)कुम्भ : भ्रष्टाचार की गटरगंगा और हिन्दुत्ववादी फ़ासीवाद के संगम में डुबकी मारकर जनता के सभी बुनियादी मुद्दों का तर्पण करने की कोशिश

कुम्भ के नाम पर पूरे इलाहाबाद का भगवाकरण कर दिया गया है। भारतीय संस्कृति (जिसमें कबीर, दादू, रैदास, आदि शामिल नहीं हैं) को पुनर्जागृत करने के नाम पर गंजेड़ी-नशेेड़ी नागा बाबाओं, सामन्ती सामाजिक सम्बन्धों को गौरवान्वित करती हुई तस्वीरों और संघ से जुड़े तमाम फ़ासिस्टों की तस्वीरों से पूरे इलाहाबाद को रंग दिया गया है, जो आम जनता के बीच इस बात को स्थापित कर रहा है कि हर समस्या का समाधान अतीत में और हिन्दुत्व में है और अपने इस मिशन में संघी एक हद तक सफल भी हो रहे हैं।

13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम और शिक्षा एवं रोज़गार के लिए संघर्ष की दिशा का सवाल

आरक्षित वर्ग की शिक्षा और नौकरियों में भागीदारी वैसे ही कम हो रही है, ऊपर से यदि 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम लागू होता है तो यह आरक्षित श्रेणियों के ऊपर होने वाला कुठाराघात साबित होगा। पहले ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों से सम्बन्धित नौकरियों के बैकलॉग तक पारदर्शिता के साथ नहीं भरे जाते, ऊपर से अब 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम थोप दिया गया! इसकी वजह से नौकरियों में लागू किये गये आरक्षण या प्रतिनिधित्व की गारण्टी का अब कोई मतलब नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि तमाम प्रगतिशील और दलित व पिछड़े संगठन 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम का विरोध कर रहे हैं। निश्चित तौर पर आरक्षण के प्रति शासक वर्ग की मंशा वह नहीं थी जिसे आमतौर पर प्रचारित किया जाता है। आरक्षण भले ही एक अल्पकालिक राहत के तौर पर था किन्तु यह अल्पकालिक राहत भी ढंग से कभी लागू नहीं हो पायी।

बाल कुपोषण के भयावह आँकड़े व सरकारों की अपराधी उदासीनता

बीती 13 जनवरी को झारखण्ड की रघुबर सरकार ने मिड डे मील के तहत बच्चों को मिलने वाले अण्डों में कटौती की घोषणा करते हुए इसे हफ़्ते में तीन से दो करने का फै़सला ले लिया। सरकार ने इसका कारण बताया है कि हर दिन बच्चों को अण्डा खिलाना सरकार के लिए “महँगा” सौदा पड़ रहा है। ताज्जुब की बात है कि राज्य की खनिज सम्पदाओं, जंगलों, पहाड़ों को अपने कॉर्पोरेट मित्रों के हाथों औने-पौने दाम पर बेचना सरकार को कभी “महँगा” नहीं पड़ा। ग़ौरतलब है कि झारखण्ड देश के सबसे कुपोषित राज्यों में से एक है और खनिज व प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य के 62% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। राज्य के कुल कुपोषित बच्चों में से 47% बच्चों में ‘स्टण्टिंग’ यानी उम्र के अनुपात में औसत से कम लम्बाई पायी गयी है जो कि कुपोषण की वजह से शरीर पर पड़ने वाले अपरिवर्तनीय प्रभावों में से एक है। पूरे देश के कुपोषण के आँकड़ों पर नज़र डालें तो UNICEF के अनुसार भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के 39% बच्चे स्टण्टिंग के शिकार हैं।