ज़िन्दगी की भागमभाग के बीच जब हम ठहरकर सड़कों, दफ़्तरों या स्कूलों-कॉलेजों में आते-जाते लोगों के चेहरों पर ग़ौर करते हैं तो पाते हैं कि आज के दौर में हर कोई अकेला, मायूस, ग़मगीन और तकलीफ़ों के बोझ से दबा दिखायी देता है। आज के समय की सच्चाई यह है कि हज़ारों ऑनलाइन दोस्त होने के बाद भी लोग दिल की बात किसी एक को भी बता नहीं पाते। दिल खोलकर हँसना, सामूहिकता का आनन्द लेना, बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करना तो कल्पना की बातें हो गयी हैं; लोगों में नफ़रत, अविश्वास, बदहवासी, ऊब बढ़ रही है। 2018 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट आयी थी जिसमें यह पाया गया कि दुनिया में सबसे ज़्यादा मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार लोग भारत में रहते हैं।