Category Archives: समाज

जाति अहंकार में चूर गुण्डों द्वारा दलित छात्र की सरेआम पीट-पीटकर हत्या

पिछले दिनों इलाहाबाद में दिलीप सरोज नाम के एक दलित छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। इस घटना का सीसीटीवी फ़ुटेज और वीडियो जब वायरल हुआ तो देखने वाला हर शख्स स्तब्ध रह गया है। इस घटना स्थल से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर इलाहाबाद के एसएसपी और उसके 100 मीटर आगे डीएम का ऑफि़स था। लेकिन घटना होने के बहुत देर बाद भी पुलिस वहाँ नहीं पहुँची। पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता इतनी कि इलाहाबाद के विभिन्न छात्र संगठनों और जनसंगठनों की ओर से जब इस मुद्दे पर व्यापाक आन्दोलन की शुरुआत की गयी, तब जाकर पुलिस ने 24 घण्टे बाद एफ़आईआर दर्ज किया।

”रामराज्य” में गाय के लिए बढ़ि‍या एम्बुलेंस और जनता के लिए बुनियादी सुविधाओं तक का अकाल!

एक ओर लखनऊ में उपमुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य ने गाय ”माता” के लिए सचल एम्बुलेंस का उद्घाटन किया तो दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने अदालत में स्वीकार किया है कि साल 2017 में अक्टूबर तक 15 हज़ार से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। नवम्बर और दिसम्बर के आँकड़े इसमें शामिल नहीं हैं। उनको मिलाकर ये संख्या और बढ़ जायेगी। डेढ़ हज़ार से अधिक नवजात शिशु तो केवल अक्टूबर में मारे गये। सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार भारत में नवजात बच्चों के मरने का आँकड़ा बड़ा ही भयावह है और इसमें मध्य प्रदेश और यूपी सबसे टॉप पर हैं।

लुधियाना में 9 वर्ष की बच्ची के अपहरण व क़त्ल के ख़िलाफ़ मेहनतकशों का जुझारू संघर्ष

जीतन राम परिवार सहित लुधियाना आने से पहले दरभंगा शहर में रिक्शा चलाता था। तीन बेटियों और एक बेटे के विवाह के लिए उठाये गये क़र्ज़े का बोझ उतारने के लिए रिक्शा चलाकर कमाई पूरी नहीं पड़ रही थी। इसलिए उसने सोचा कि लुधियाना जाकर मज़दूरी की जाये। यहाँ आकर वह राज मिस्त्री के साथ दिहाड़ी करने लगा। उसकी पत्नी और एक 12 वर्ष की बेटी कारख़ाने में मज़दूरी करने लगी। सबसे छोटी 9 वर्षीय बेटी गीता उर्फ़ रानी को किराये के कमरे में अकेले छोड़कर जाना इस ग़रीब परिवार की मजबूरी थी।

नये साल का पहला ही दिन चढ़ा जातिगत तनाव की भेंट जाति-धर्म के नाम पर बँटने की बजाय हमें असली मुद्दे उठाने होंगे

हर जाति के ग़रीबों को ये समझाने की ज़रूरत है कि उनकी बदतर हालत के असल जि़म्मेदार दलित, मुस्लिम या आदिवासी नहीं बल्कि ख़ुद उनकी ही व अन्य जातियों के अमीर हैं। जब तक मेहनतकश अवाम ये नहीं समझेगा तब तक होगा यही कि एक जाति अपना कोई आन्दोलन खड़ा करेगी व उसके विपरीत शासक वर्ग दूसरी जातियों का आन्दोलन खड़ा करके जनता के बीच खाइयों को और मज़बूत करेगा। इस साज़िश को समझने की ज़रूरत है। इस साज़िश का जवाब अस्मितावादी राजनीति और जातिगत गोलबन्दी नहीं है। इसका जवाब वर्ग संघर्ष और वर्गीय गोलबन्दी है। इस साज़िश को बेनक़ाब करना होगा और सभी जातियों के बेरोज़गार, ग़रीब और मेहनतकश तबक़ों को गोलबन्द और संगठित करना होगा।

भीमा कोरेगाँव की लड़ाई के 200 साल का जश्न – जाति अन्त की परियोजना ऐसे अस्मितावाद से आगे नहीं बल्कि पीछे जायेगी!

भारत की जनता को बाँटने के लिए अंग्रेज़ों ने यहाँ की जाति व्यवस्था का भी इस्तेमाल किया था और धर्म का भी। अंग्रेज़ों ने जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए सचेतन तौर पर कुछ ख़ास नहीं किया। ऐसे में कोई अपने आप को जाति अन्त का आन्दोलन कहे (रिपब्लिकन पैन्थर अपने को जाति अन्त का आन्दोलन घोषित करता है) और भीमा कोरेगाँव युद्ध की बरसी मनाने को अपने सबसे बड़े आयोजन में रखे तो स्वाभाविक है कि वह यह मानता है कि अंग्रेज़ जाति अन्त के सिपाही थे! हक़ीक़त हमारे सामने है। ऐसे अस्मितावादी संगठन जाति अन्त की कोई सांगोपांग योजना ना तो दे सकते हैं और ना उस पर दृढ़ता से अमल कर सकते हैं। हताशा-निराशा में हाथ-पैर मारते ये कभी भीमा कोरेगाँव जयन्ती मनाते हैं तो कभी ‘संविधान बचाओ’ जैसे खोखले नारे देते हैं।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड-2014 की पीडि़ता शहनाज़ की तीसरी बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गँठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ि‍यों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इन बलात्कारियों व कातिलों को फाँसी की सज़ा के लिए संघर्ष जारी रहेगा।

स्त्री विरोधी अपराधों पर चुप्पी तोड़ो! अपराधियों के पैदा होने की ज़मीन की शिनाख्त करो!

आज जिस रूप में पूँजीवाद यहाँ विकसित हुआ है उसने हर चीज़ की तरह स्त्रियों को भी बस खरीदे-बेचे जा सकने वाले सामान में तब्दील कर दिया है। उसने अश्लीलता फैलाना भी मोटे पैसे कमाने का धन्धा बना दिया। अमीरजादों की “ऐयाशियों” की तो चर्चा ही क्या हो, 1990-91 से जारी ‘उदारीकरण और निजीकरण’ की नीतियों के लागू होने के बाद ज़मीन बेचकर और सब तरह के उल्टे-सीधे कामों से पैसा कमाकर मध्यवर्ग से भी नये अमीर तबके का उभार हुआ है। कुछ तो नये-नये पैसे का नशा और कुछ ‘कोढ़ में खाज’ पूँजीवाद की गलीज संस्कृति, कुल-मिलाकर इस तबके का आच्छा-खास्सा हिस्सा लम्पट हो गया। इसे लगता है कि पैसे के दम पर कुछ भी खरीदा जा सकता है, नोचा-खसोटा जा सकता है! इसके अलावा यह व्यवस्था ग़रीब आबादी में भी सांस्कृतिक पतनशीलता का ज़हर हर समय घोलती रहती है।

झारखण्ड में भूख से बच्ची की मौत – पूँजीवादी ढाँचे द्वारा की गयी एक और निर्मम हत्या

अक़सर यह बताया जाता है कि भुखमरी का कारण खाद्यान्न की कमी है, पर यह एक मिथक है। सच तो यह है कि विश्व में इतना भोजन का उत्पादन होता है कि सभी का पेट भरना सम्भव है। एक ओर सुपरमार्केट की अलमारियों में रंग’बिरंगे ि‍डब्बों में खान-पान की सामग्री स्टॉक करके रखी हुई है, वहीं दूसरी ओर विश्व-भर में रोज़ 1.6 करोड़ बच्चे और 3.3 करोड़ वयस्क भूखे सोते हैं। पूँजीवादी मुनाफ़े की होड़ के कारण भोजन की क़ीमतें मज़दूरों और मेहनतकशों की पहुँच से अधिक होती हैं और हमेशा बढ़ती जाती हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण दुनिया की काम करने वाली आबादी का एक छोटा हिस्सा भी अगर खेतों में काम करे तो दुनिया-भर की आबादी का पेट भरने में सक्षम है परन्तु आधुनिक खाद्य उत्पादन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मुनाफ़े के अधीन काम कर रहे हैं। इसका ही दूसरा पहलू यह है कि अरबों ग़रीब किसान पुराने तरीक़ों से काम करते हुए अपनी क्षमताओं को बर्बाद करते हैं।

चुप रहना छोड़ दो! जाति‍ की बेड़ि‍यों को तोड़ दो!

पि‍छले 10-12 सालों में हरियाणा के मिर्चपुर, गोहाणा, भगाणा से लेकर कैथल में दलित उत्पीड़न की कई घटनाएँ ग़रीब मेहनतकश दलित आबादी के साथ ही हुई हैं। असल में सरकार चाहे किसी पार्टी की हो, दलित उत्पीड़न की घटनाएँ लगातार जारी रही हैं। पि‍छले साढ़े तीन सालों में गुज़रात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में दलित उत्पीड़न की घटनाएँ जिस क़दर बढ़ी हैं, उससे भाजपा-संघ सरकार की ”सामाजिक समरसता” की नौटंकी का पर्दाफ़ाश हो गया है। सहारनपुर में सवर्णों की बर्बर दबंगई का विरोध करने वाले जुझारू दलित नेता चन्द्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ को फ़र्ज़ी मुक़दमों में जेल भेजा गया, जेल में उनको बुरी तरह टॉर्चर किया गया, इलाज तक नहीं कराया गया और जब अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए उन्हें ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया तो प्रदेश की योगी सरकार के आदेश पर उन पर रासुका लगाकर दुबारा जेल में डाल दिया गया।

तटीय आन्ध्र में जाति‍ व्यवस्था के बर्बर रूप की बानगी

1990 के दशक में नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद कम्मा, रेड्डी, राजू और कापु जैसी कुलक जातियों की आर्थिक शक्तिमत्ता में और इज़ाफ़ा हुआ क्योंकि इन जातियों से आने वाले धनी किसानों ने अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा मत्स्य पालन, नारियल के विशाल फ़ार्म, राइस मिल और तटीय आन्ध्र के शहरी इलाक़ों में होटल-रेस्तराँ व सिनेमा जैसे उद्योगों में लगाना शुरू किया। बाद में इस पूँजीपति वर्ग ने अपने अधि‍शेष को हैदराबाद में आईटी व फ़ार्मा कम्पनियों में तथा रियल एस्टेट, शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्रों में निवेश करना शुरू किया।