स्त्री विरोधी अपराधों पर चुप्पी तोड़ो! अपराधियों के पैदा होने की ज़मीन की शिनाख्त करो!
आज जिस रूप में पूँजीवाद यहाँ विकसित हुआ है उसने हर चीज़ की तरह स्त्रियों को भी बस खरीदे-बेचे जा सकने वाले सामान में तब्दील कर दिया है। उसने अश्लीलता फैलाना भी मोटे पैसे कमाने का धन्धा बना दिया। अमीरजादों की “ऐयाशियों” की तो चर्चा ही क्या हो, 1990-91 से जारी ‘उदारीकरण और निजीकरण’ की नीतियों के लागू होने के बाद ज़मीन बेचकर और सब तरह के उल्टे-सीधे कामों से पैसा कमाकर मध्यवर्ग से भी नये अमीर तबके का उभार हुआ है। कुछ तो नये-नये पैसे का नशा और कुछ ‘कोढ़ में खाज’ पूँजीवाद की गलीज संस्कृति, कुल-मिलाकर इस तबके का आच्छा-खास्सा हिस्सा लम्पट हो गया। इसे लगता है कि पैसे के दम पर कुछ भी खरीदा जा सकता है, नोचा-खसोटा जा सकता है! इसके अलावा यह व्यवस्था ग़रीब आबादी में भी सांस्कृतिक पतनशीलता का ज़हर हर समय घोलती रहती है।