Category Archives: समाज

‘आज़ादी कूच’ : एक सम्भावना-सम्पन्न आन्दोलन के अन्तरविरोध और भविष्य का प्रश्न

हम एक बार यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि हमारी इस कॉमरेडाना आलोचना का मकसद है इस आन्दोलन के सक्षम और युवा नेतृत्व के समक्ष कुछ ज़रूरी सवालों को उठाना जिनका जवाब भविष्य में इसे देना होगा। आज समूचा जाति-उन्मूलन आन्दोलन और साथ ही हम जैसे क्रान्तिकारी संगठन व व्यक्ति जिग्नेश मेवानी की अगुवाई में चल रहे इस आन्दोलन को उम्मीद, अधीरता और अकुलाहट के साथ देख रहे हैं। किसी भी किस्म का विचारधारात्मक समझौता, वैचारिक स्पष्टवादिता की कमी और विचारधारा और विज्ञान की कीमत पर रणकौशल और कूटनीति करने की हमेशा भारी कीमत चुकानी पड़ती है, चाहे इसका नतीजा तत्काल सामने न आये, तो भी।

मध्य प्रदेश में रोज़ाना 64 बच्चों की मौत

मध्य प्रदेश भारत में ग़रीबी रेखा के नीचे सबसे ज़्यादा आबादी वाले 14 राज्यों में शामिल है और सबसे अधिक मृत्यु दर वाले राज्यों में से एक है। यहाँ 1000 के पीछे 52 बच्चों की मौत एक वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है और नवजात बच्चों का वज़न ढाई किलोग्राम से भी कम होता है। भारत में 31 प्रतिशत बच्चों का क़द आयु के अनुसार कम है और 42 प्रतिशत बच्चों का वज़न भी उनकी आयु के मुताबिक़ कम है। भारत के कुल कुपोषित बच्चों में 60 प्रतिशत मध्यप्रदेश और झारखण्ड के हैं।

इक्कीसवीं सदी में भी नन्हीं जिन्दगियों को बाल विवाह की बलि चढ़ा रहा है समाज

पूँजीवाद ने जनता को ग़ुलाम और पिछड़ा बनाये रखने के लिए तमाम तरह के सामन्ती मूल्य-मान्यताओं के साथ समझौता करके न सिर्फ़ उन्हें बनाये रखा है बल्कि लगातार बढ़ावा भी दे रहा है। इस पूँजीवादी समाज व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए राजनीतिक और आर्थिक संघर्ष चलाने के साथ ही पिछड़ी सोच और संस्‍कृति से भी लड़ना होगा। पहले के संघर्षों और सामाजिक परिवर्तन द्वारा स्त्रियों ने कुछ हद तक सम्मान से जीने का हक़ पाया है। बराबरी का हक़ पाने के लिए पूँजीवादी व्यवस्था को ही बदलना होगा।

नोएडा में ज़ोहरा के साथ हुई घटना : घरेलू कामगारों के साथ बर्बरता की एक बानगी

यह सब कुछ बताता है कि आज ग़रीब बिखरी हुई आबादी के लिए अपने हक़ों के लिए आवाज़ उठाना कितना मुश्किल हो गया है और जब तक कि वे संगठित नहीं हो जाते हैं, तब तक उनके सामने ये मुश्किलें बनी रहेंगी। साथ ही साथ यह घटना बताती है कि आम मेहनतकशों की एकता को तोड़ने और उनके खि़लाफ़ नफ़रत फैलाने के लिए फासीवादी ताक़तें बेशर्मी के साथ धर्म का इस्तेमाल करती हैं ताकि असली मुद्दे पर पर्दा डाला जा सके।

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

अधिक अनाज वाले देश में बच्चे भूख से क्यों मर रहे हैं?

भारत में रोज़ाना 5000 बच्चे भूख और कुपोषण के कारण मर जाते हैं। इसका कारण पूछने पर हुक्मरान इसे ग़रीबों की आबादी या भगवान की करनी पर छोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन उनके ये झूठ तर्क के दरबार में एक पल भी नहीं खड़े हो पाते। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़़ भारत में कुल आबादी की ज़रूरतों से ज़्यादा अनाज पैदा हो रहा है और ये अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ रहा है, तो भुखमरी, कुपोषण जैसी भयानक बीमारियों का कारण भगवान की मर्ज़ी या आबादी नहीं हो सकता। इसके कारण दस्त जैसी बीमारियाँ, जिनके कारण और इलाज कई दशक पहले ही ढूँढ़े जा चुके हैं, वो भी नहीं हैं। इसका कारण यह है कि आज का समाज भी एक वर्गीय समाज है। मतलब कुछ लोग उत्पादन के साधनों पर क़ब्ज़ा किये हुए हैं। बहुसंख्यक आबादी इन साधनों की मुहताज़ है।

ख़ूबसूरत चमड़ी का बदसूरत धन्धा

औरतों के साथ होते इस अमानवीय व्यवहार की अनेकों घटनाएँ हमारे सामने होती रहती हैं। अब ये तथ्य सामने आये हैं कि अमीरों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए नेपाल के गाँवों में से ग़रीब परिवारों की लड़कियों को एजेण्ट ख़रीदकर भारत ले आते हैं, जहाँ उनको बेहोश करके उनके शरीर के कुछ हिस्सों की चमड़ी उतार ली जाती है। इसके बदले उन्हें महज़ दस से पन्द्रह हज़ार रुपये दिये जाते हैं और आगे यह चमड़ी बहुत ऊँची क़ीमतों पर बेची जाती है। चमड़ी उतारने के बाद इन लड़कियों को मुम्बई, कलकत्ता और दिल्ली जैसे महानगरों में देह-व्यापार के धन्धे में धकेल दिया जाता है। जहाँ सोलह-सोलह, सत्रह-सत्रह वर्ष की इन नन्हीं कलियों के सारे अरमान एक-एक करके टूट जाते हैं। जब उन्हें कागज़ के टुकड़े के बदले वहशी दरिन्दों के आगे फेंक दिया जाता है, जिनका कसूर सिर्फ़ इतना ही होता है कि उनके ग़रीब माँ-बाप ने उन्हें इस धरती पर जन्म दिया।

हरियाणा में दलित उत्पीड़न के खि़लाफ़ संयुक्त प्रदर्शन!

ज्ञात हो कि 1 मई को बालू गाँव में मौजूदा सरपंच व उसके गुण्डा तत्वों द्वारा दलित नौजवानों पर हमला कर दिया गया। इसके पीछे की वजह यह थी कि उन नौजवानों ने सरपंच के दसवीं के दस्तावेज़ों को लेकर एक आरटीआई डाली थी। इस बात को लेकर गाँव के सरपंच ने उन्हें डराने-धमकाने के लिए जातिगत गोलबन्दी करके उन पर हमला बोल दिया, जिसमें कई नौजवान बुरी तरह घायल हो गये तथा दलित बस्ती में तोड़-फोड़ भी की गयी। इस पूरी घटना पर पुलिस ने बेशर्मी से दबंगों का पक्ष लेते हुए एससी/एसटी एक्ट के तहत कोई कार्रवाई नहीं की है। यहाँ तक एफ़आईआर लिखने में काफ़ी आनाकानी की और एफ़आईआर में कमज़ोर धाराएँ लगाकर आरोपियों को बचाने की पूरी कोशिश की है। इस पूरी घटना में कैथल पुलिस प्रशासन का सवर्णवादी रवैया साफ़ उजागर हो रहा है। संयुक्त प्रदर्शन में डीसी संजय जून को ज्ञापन सौंपा गया।

जाति उन्‍मूलन का रास्‍ता दिखाते कुछ लेख, वीडियो

जाति का सवाल भारतीय समाज के सबसे ज्‍वलंत सवालों में से एक है। जनता को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने का ये एक ऐसा तरीका है जो यहां आने वाले हर शासक को भाया है। चाहे वो मुगल हों या अन्‍य मध्‍यकालीन शासक या फिर अंग्रेज, सबने जाति का इस्‍तेमाल यहां की जनता को बांटकर रखने के लिए किया। भारत के वर्तमान शासक भी अपवाद नहीं है। इसलिए भारत में मजदूर वर्ग को एकजुट करने के लिए व क्रांतिकारी परिवर्तन की किसी भी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए जाति उन्‍मूलन के कार्यभार को ठीक से समझना होगा व उसके आधार पर एक देशव्‍यापी जाति विरोधी आन्‍दोलन खड़ा करना होगा।

नपुंसक न्याय-व्यवस्था से इंसाफ़ माँगते-माँगते खैरलांजी के भैयालाल भोतमांगे का संघर्ष थम गया

संवेदनशुन्य हो चुकी जुल्मी न्याय व्यवस्था तक भोतमांगे की आवाज़ व वेदना जीवन के आख़ि‍र तक भी नहीं पहुँच पायी। इस हत्याकाण्ड में गाँव के बहुत सारे लोगों का हाथ होने के बावजुद सिर्फ़ 11 लोगों पर मुक़दमा चलाया गया। भण्डारा न्यायालय ने इनमें से तीन आरोपियों को मुक्त कर दिया, दो को उम्रकैद व छह को फाँसी की सज़ा सुनायी। बाद में उच्च न्यायालय ने फाँसी की सज़ा को भी उम्रकैद में बदल दिया।