झारखण्ड में भूख से बच्ची की मौत – पूँजीवादी ढाँचे द्वारा की गयी एक और निर्मम हत्या
अक़सर यह बताया जाता है कि भुखमरी का कारण खाद्यान्न की कमी है, पर यह एक मिथक है। सच तो यह है कि विश्व में इतना भोजन का उत्पादन होता है कि सभी का पेट भरना सम्भव है। एक ओर सुपरमार्केट की अलमारियों में रंग’बिरंगे िडब्बों में खान-पान की सामग्री स्टॉक करके रखी हुई है, वहीं दूसरी ओर विश्व-भर में रोज़ 1.6 करोड़ बच्चे और 3.3 करोड़ वयस्क भूखे सोते हैं। पूँजीवादी मुनाफ़े की होड़ के कारण भोजन की क़ीमतें मज़दूरों और मेहनतकशों की पहुँच से अधिक होती हैं और हमेशा बढ़ती जाती हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण दुनिया की काम करने वाली आबादी का एक छोटा हिस्सा भी अगर खेतों में काम करे तो दुनिया-भर की आबादी का पेट भरने में सक्षम है परन्तु आधुनिक खाद्य उत्पादन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मुनाफ़े के अधीन काम कर रहे हैं। इसका ही दूसरा पहलू यह है कि अरबों ग़रीब किसान पुराने तरीक़ों से काम करते हुए अपनी क्षमताओं को बर्बाद करते हैं।