Category Archives: समाज

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

अधिक अनाज वाले देश में बच्चे भूख से क्यों मर रहे हैं?

भारत में रोज़ाना 5000 बच्चे भूख और कुपोषण के कारण मर जाते हैं। इसका कारण पूछने पर हुक्मरान इसे ग़रीबों की आबादी या भगवान की करनी पर छोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन उनके ये झूठ तर्क के दरबार में एक पल भी नहीं खड़े हो पाते। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़़ भारत में कुल आबादी की ज़रूरतों से ज़्यादा अनाज पैदा हो रहा है और ये अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ रहा है, तो भुखमरी, कुपोषण जैसी भयानक बीमारियों का कारण भगवान की मर्ज़ी या आबादी नहीं हो सकता। इसके कारण दस्त जैसी बीमारियाँ, जिनके कारण और इलाज कई दशक पहले ही ढूँढ़े जा चुके हैं, वो भी नहीं हैं। इसका कारण यह है कि आज का समाज भी एक वर्गीय समाज है। मतलब कुछ लोग उत्पादन के साधनों पर क़ब्ज़ा किये हुए हैं। बहुसंख्यक आबादी इन साधनों की मुहताज़ है।

ख़ूबसूरत चमड़ी का बदसूरत धन्धा

औरतों के साथ होते इस अमानवीय व्यवहार की अनेकों घटनाएँ हमारे सामने होती रहती हैं। अब ये तथ्य सामने आये हैं कि अमीरों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए नेपाल के गाँवों में से ग़रीब परिवारों की लड़कियों को एजेण्ट ख़रीदकर भारत ले आते हैं, जहाँ उनको बेहोश करके उनके शरीर के कुछ हिस्सों की चमड़ी उतार ली जाती है। इसके बदले उन्हें महज़ दस से पन्द्रह हज़ार रुपये दिये जाते हैं और आगे यह चमड़ी बहुत ऊँची क़ीमतों पर बेची जाती है। चमड़ी उतारने के बाद इन लड़कियों को मुम्बई, कलकत्ता और दिल्ली जैसे महानगरों में देह-व्यापार के धन्धे में धकेल दिया जाता है। जहाँ सोलह-सोलह, सत्रह-सत्रह वर्ष की इन नन्हीं कलियों के सारे अरमान एक-एक करके टूट जाते हैं। जब उन्हें कागज़ के टुकड़े के बदले वहशी दरिन्दों के आगे फेंक दिया जाता है, जिनका कसूर सिर्फ़ इतना ही होता है कि उनके ग़रीब माँ-बाप ने उन्हें इस धरती पर जन्म दिया।

हरियाणा में दलित उत्पीड़न के खि़लाफ़ संयुक्त प्रदर्शन!

ज्ञात हो कि 1 मई को बालू गाँव में मौजूदा सरपंच व उसके गुण्डा तत्वों द्वारा दलित नौजवानों पर हमला कर दिया गया। इसके पीछे की वजह यह थी कि उन नौजवानों ने सरपंच के दसवीं के दस्तावेज़ों को लेकर एक आरटीआई डाली थी। इस बात को लेकर गाँव के सरपंच ने उन्हें डराने-धमकाने के लिए जातिगत गोलबन्दी करके उन पर हमला बोल दिया, जिसमें कई नौजवान बुरी तरह घायल हो गये तथा दलित बस्ती में तोड़-फोड़ भी की गयी। इस पूरी घटना पर पुलिस ने बेशर्मी से दबंगों का पक्ष लेते हुए एससी/एसटी एक्ट के तहत कोई कार्रवाई नहीं की है। यहाँ तक एफ़आईआर लिखने में काफ़ी आनाकानी की और एफ़आईआर में कमज़ोर धाराएँ लगाकर आरोपियों को बचाने की पूरी कोशिश की है। इस पूरी घटना में कैथल पुलिस प्रशासन का सवर्णवादी रवैया साफ़ उजागर हो रहा है। संयुक्त प्रदर्शन में डीसी संजय जून को ज्ञापन सौंपा गया।

जाति उन्‍मूलन का रास्‍ता दिखाते कुछ लेख, वीडियो

जाति का सवाल भारतीय समाज के सबसे ज्‍वलंत सवालों में से एक है। जनता को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने का ये एक ऐसा तरीका है जो यहां आने वाले हर शासक को भाया है। चाहे वो मुगल हों या अन्‍य मध्‍यकालीन शासक या फिर अंग्रेज, सबने जाति का इस्‍तेमाल यहां की जनता को बांटकर रखने के लिए किया। भारत के वर्तमान शासक भी अपवाद नहीं है। इसलिए भारत में मजदूर वर्ग को एकजुट करने के लिए व क्रांतिकारी परिवर्तन की किसी भी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए जाति उन्‍मूलन के कार्यभार को ठीक से समझना होगा व उसके आधार पर एक देशव्‍यापी जाति विरोधी आन्‍दोलन खड़ा करना होगा।

नपुंसक न्याय-व्यवस्था से इंसाफ़ माँगते-माँगते खैरलांजी के भैयालाल भोतमांगे का संघर्ष थम गया

संवेदनशुन्य हो चुकी जुल्मी न्याय व्यवस्था तक भोतमांगे की आवाज़ व वेदना जीवन के आख़ि‍र तक भी नहीं पहुँच पायी। इस हत्याकाण्ड में गाँव के बहुत सारे लोगों का हाथ होने के बावजुद सिर्फ़ 11 लोगों पर मुक़दमा चलाया गया। भण्डारा न्यायालय ने इनमें से तीन आरोपियों को मुक्त कर दिया, दो को उम्रकैद व छह को फाँसी की सज़ा सुनायी। बाद में उच्च न्यायालय ने फाँसी की सज़ा को भी उम्रकैद में बदल दिया।

‘भारत में जाति व्यवस्था : उद्भव, विकास और उन्मूलन का सवाल’ विषय पर परिचर्चा

जाति व्यवस्था पर चोट आज इसी रूप में की जा सकती है कि तमाम जातियों की मेहनतकश आबादी वर्ग आधारित एकजुटता स्थापित करे। मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था, जो जातिवाद का समाज की मेहनतकश जनता को बाँटने के लिए इस्तेमाल करती है, के क्रान्ति के द्वारा ख़ात्मे का सवाल बेशक एजेण्डे पर होना चाहिए किन्तु यह भी उतना ही सच है कि व्यापक जाति विरोधी आन्दोलनों को खड़ा किये बग़ैर मेहनतकश आबादी को एकजुट नहीं किया जा सकता।

मध्य प्रदेश – नवजात बच्चों का नर्क

रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इण्डिया की एसआरएस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में सबसे ज़्यादा बच्चों की मौत भाजपा शासित मध्य प्रदेश में होती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 52 जन्म की पहली वर्षगाँठ भी नहीं मना पाते। इस तरह मध्य प्रदेश की बाल मृत्यु दर 52 है जो सर्वेक्षण किये गये राज्यों में से सबसे ज़्यादा है।

मनुस्मृति दहन (25 दिसम्बर, 1927) की 89वीं वर्षगाँठ पर

आज से 89 वर्ष पहले महाड़ में मेहनतकश दलितों ने एक बग़ावत शुरू की थी। इसकी शुरुआत 19-20 मार्च 1927 को बहिष्कृत सम्मेलन से हुई थी। लेकिन वास्तव में इस सम्मेलन का विचार आर बी मोरे ने मई 1924 में पेश किया, जिन्हें बाद में कॉमरेड आर बी मोरे के नाम से जाना गया। इस सम्मेलन में डाॅ. अम्बेडकर को उनकी अकादमिक उप‍लब्धियों के लिए सम्मानित करने की योजना बनायी गयी थी।

सावित्रीबाई फुले की वि‍रासत को आगे बढ़ाओ। नई शिक्षाबन्दी के विरोध में नि:शुल्क शिक्षा के लिए एकजुट हों!

भारत में सावि‍त्रीबाई फुले सम्भवत: पहली महि‍ला थीं, जि‍न्होंने जाति‍ प्रथा के साथ ही स्त्रि‍यों की गुलामी के ि‍ख़लाफ़ आवाज़ उठायी। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। 1848 में अपने पति‍ ज्योति‍बा फुले के साथ मि‍लकर ब्राह्मणवादी ताक़तों से वैर मोल लेकर पुणे के भिडे वाडा में लड़कियों के लिए स्कूल खोला था। इस घटना का एक क्रान्तिकारी महत्व है। पीढ़ी दर पीढ़ी दलितों पर अनेक प्रतिबन्धों के साथ ही “शिक्षाबन्दी” के प्रतिबन्ध ने भी दलितों व स्त्रियों का बहुत नुक़सान किया था। ज्योतिबा व सावित्रीबाई ने इसी कारण वंचितों की शिक्षा के लिए गम्भीर प्रयास शुरू किये।