Category Archives: समाज

सत्ता पर काबिज़ लुटेरों-हत्यारों-बलात्कारियों के गिरोह से देश को बचाना होगा!

यूँ तो पिछले कई वर्षों से भारतीय समाज एक भीषण सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और नैतिक संकट से गुज़र रहा है, परन्तु अप्रैल के महीने में सुर्खियों में रही कुछ घटनाएँ इस ओर साफ़ इशारा कर रही हैं कि यह चतुर्दिक संकट अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा है। जहाँ एक ओर कठुआ और उन्नाव की बर्बर घटनाओं ने यह साबित किया कि फ़ासिस्ट दरिंदगी के सबसे वीभत्स रूप का सामना औरतों को करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका द्वारा असीमानन्द जैसे भगवा आतंकी और माया कोडनानी जैसे नरसंहारकों को बाइज्जत बरी करने और जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच तक कराने से इनकार करने के बाद भारत के पूँजीवादी लोकतंत्र का बचा-खुचा आखिरी स्तम्भ भी ज़मींदोज़ होता नज़र आया। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये सब फ़ासीवाद के गहराते अँधेरे के ही लक्षण हैं।

लगातार बढ़ती मज़ूदरों की असुरक्षा

भारत जैसे देश में जहाँ 90 प्रतिशत से ज़्यादा मज़दूर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं, मज़ूदरों का जीवन तमाम कि़स्मे की असुरक्षाओं से घिरा रहता है। वैकल्पिक रोज़गार की अनुपलब्धता, वेतन की कमी व अनियमितता, छँटनी का ख़तरा, कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरणों की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य   सुविधाएँ, आवास की तंगी और सामाजिक असुरक्षा उनके जीवन के जोखिम को लगातार बढ़ाती रहती हैं। कार्यस्थल पर बदसलूकी, भेदभाव और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ लगातार बढ़ती रही हैं।

असली मुद्दों को कस के पकड़ रहो और काल्पनिक मुद्दों के झूठ को समझो।

गुड़गाँव के एक औद्योगिक क्षेत्र के पास एक मज़दूर बस्ती में हज़ारों मज़दूर रहते हैं, जो मारुती और होण्डा जैसी बड़ी कम्पनियों और उनके लिए पुर्जे बनाने वाली अनेक छोटी-छोटी कम्पनियों में मज़दूरी करते हैं। इस बस्ती में अन्दर जाने पर हम देखेंगे कि यहाँ बनी लाॅजों के 10×10 फि़ट के गन्दे कमरों में एक साथ 4 से 6 मज़दूर रहते हैं जो कमरे पर सिर्फ़ खाने और सोने के लिए आते हैं। इसके सिवाय ज़्यादातर मज़दूर दो शिफ़्टों में काम करने के लिए सप्ताह के सातों दिन 12 से 16 घण्टे कम्पनी में बिताते हैं, जिसके बदले में उन्हें 6 से 14 हज़ार मज़दूरी मिलती है जो गुड़गाँव जैसे शहर में परिवार के साथ रहने के लिए बहुत कम है।

जाति अहंकार में चूर गुण्डों द्वारा दलित छात्र की सरेआम पीट-पीटकर हत्या

पिछले दिनों इलाहाबाद में दिलीप सरोज नाम के एक दलित छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। इस घटना का सीसीटीवी फ़ुटेज और वीडियो जब वायरल हुआ तो देखने वाला हर शख्स स्तब्ध रह गया है। इस घटना स्थल से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर इलाहाबाद के एसएसपी और उसके 100 मीटर आगे डीएम का ऑफि़स था। लेकिन घटना होने के बहुत देर बाद भी पुलिस वहाँ नहीं पहुँची। पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता इतनी कि इलाहाबाद के विभिन्न छात्र संगठनों और जनसंगठनों की ओर से जब इस मुद्दे पर व्यापाक आन्दोलन की शुरुआत की गयी, तब जाकर पुलिस ने 24 घण्टे बाद एफ़आईआर दर्ज किया।

”रामराज्य” में गाय के लिए बढ़ि‍या एम्बुलेंस और जनता के लिए बुनियादी सुविधाओं तक का अकाल!

एक ओर लखनऊ में उपमुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य ने गाय ”माता” के लिए सचल एम्बुलेंस का उद्घाटन किया तो दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने अदालत में स्वीकार किया है कि साल 2017 में अक्टूबर तक 15 हज़ार से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। नवम्बर और दिसम्बर के आँकड़े इसमें शामिल नहीं हैं। उनको मिलाकर ये संख्या और बढ़ जायेगी। डेढ़ हज़ार से अधिक नवजात शिशु तो केवल अक्टूबर में मारे गये। सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार भारत में नवजात बच्चों के मरने का आँकड़ा बड़ा ही भयावह है और इसमें मध्य प्रदेश और यूपी सबसे टॉप पर हैं।

लुधियाना में 9 वर्ष की बच्ची के अपहरण व क़त्ल के ख़िलाफ़ मेहनतकशों का जुझारू संघर्ष

जीतन राम परिवार सहित लुधियाना आने से पहले दरभंगा शहर में रिक्शा चलाता था। तीन बेटियों और एक बेटे के विवाह के लिए उठाये गये क़र्ज़े का बोझ उतारने के लिए रिक्शा चलाकर कमाई पूरी नहीं पड़ रही थी। इसलिए उसने सोचा कि लुधियाना जाकर मज़दूरी की जाये। यहाँ आकर वह राज मिस्त्री के साथ दिहाड़ी करने लगा। उसकी पत्नी और एक 12 वर्ष की बेटी कारख़ाने में मज़दूरी करने लगी। सबसे छोटी 9 वर्षीय बेटी गीता उर्फ़ रानी को किराये के कमरे में अकेले छोड़कर जाना इस ग़रीब परिवार की मजबूरी थी।

बेहिसाब बढ़ती आर्थिक और सामाजिक असमानता

भारत तो इनमें से भी सर्वाधिक ग़ैरबराबरी वाले चन्द देशों में से है। यहाँ तो शीर्ष पर के 10% अमीर लोग 2010 में 69% सम्पत्ति के मालिक थे और तब से सिर्फ़़ 6 वर्षों में ये बढ़कर 2016 में 81% दौलत पर क़ब्ज़ा जमा चुके हैं। वहीं तली के 50% पूरी तरह सम्पत्तिहीन ही नहीं, बल्कि क़र्ज़ में किसी तरह मालिकों के लिए श्रम करते हुए जीवन बिताने को विवश हैं।

वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के शीर्ष पर जिनकी दौलत लगातार बढ़ रही है वे कौन लोग

नये साल का पहला ही दिन चढ़ा जातिगत तनाव की भेंट जाति-धर्म के नाम पर बँटने की बजाय हमें असली मुद्दे उठाने होंगे

हर जाति के ग़रीबों को ये समझाने की ज़रूरत है कि उनकी बदतर हालत के असल जि़म्मेदार दलित, मुस्लिम या आदिवासी नहीं बल्कि ख़ुद उनकी ही व अन्य जातियों के अमीर हैं। जब तक मेहनतकश अवाम ये नहीं समझेगा तब तक होगा यही कि एक जाति अपना कोई आन्दोलन खड़ा करेगी व उसके विपरीत शासक वर्ग दूसरी जातियों का आन्दोलन खड़ा करके जनता के बीच खाइयों को और मज़बूत करेगा। इस साज़िश को समझने की ज़रूरत है। इस साज़िश का जवाब अस्मितावादी राजनीति और जातिगत गोलबन्दी नहीं है। इसका जवाब वर्ग संघर्ष और वर्गीय गोलबन्दी है। इस साज़िश को बेनक़ाब करना होगा और सभी जातियों के बेरोज़गार, ग़रीब और मेहनतकश तबक़ों को गोलबन्द और संगठित करना होगा।

भीमा कोरेगाँव की लड़ाई के 200 साल का जश्न – जाति अन्त की परियोजना ऐसे अस्मितावाद से आगे नहीं बल्कि पीछे जायेगी!

भारत की जनता को बाँटने के लिए अंग्रेज़ों ने यहाँ की जाति व्यवस्था का भी इस्तेमाल किया था और धर्म का भी। अंग्रेज़ों ने जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए सचेतन तौर पर कुछ ख़ास नहीं किया। ऐसे में कोई अपने आप को जाति अन्त का आन्दोलन कहे (रिपब्लिकन पैन्थर अपने को जाति अन्त का आन्दोलन घोषित करता है) और भीमा कोरेगाँव युद्ध की बरसी मनाने को अपने सबसे बड़े आयोजन में रखे तो स्वाभाविक है कि वह यह मानता है कि अंग्रेज़ जाति अन्त के सिपाही थे! हक़ीक़त हमारे सामने है। ऐसे अस्मितावादी संगठन जाति अन्त की कोई सांगोपांग योजना ना तो दे सकते हैं और ना उस पर दृढ़ता से अमल कर सकते हैं। हताशा-निराशा में हाथ-पैर मारते ये कभी भीमा कोरेगाँव जयन्ती मनाते हैं तो कभी ‘संविधान बचाओ’ जैसे खोखले नारे देते हैं।

ढण्डारी अपहरण, बलात्कार व क़त्ल काण्ड-2014 की पीडि़ता शहनाज़ की तीसरी बरसी पर श्रद्धांजलि समागम

गुण्डा गिरोह के इस अपराध व गुण्डा-सियासी-पुलिस-प्रशासनिक नापाक गँठजोड़ के ख़िलाफ़ हज़ारों लोगों द्वारा ‘संघर्ष कमेटी’ के नेतृत्व में विशाल जुझारू संघर्ष लड़ा गया था। जनदबाव के चलते दोषियों को सज़ा की उम्मीद बँधी हुई है। क़त्ल काण्ड के सात दोषी जेल में बन्द हैं। अदालत में केस चल रहा है। पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज करने में की गयी गड़बड़ि‍यों के चलते अगवा व बलात्कार का एक दोषी जमानत पर आज़ाद घूम रहा है। इन बलात्कारियों व कातिलों को फाँसी की सज़ा के लिए संघर्ष जारी रहेगा।