जाति प्रश्न के विषय में श्री श्यामसुन्दर के विचार: अज्ञानता, बचकानेपन, बौनेपन और मूर्खता की त्रासद कहानी
ऐसी आलोचना से कुछ सीखा नहीं जा सकता; उल्टे उसकी मूर्खताओं का खण्डन करने में कुछ समय ही खर्च हो जाता है। लेकिन फिर भी, यदि आन्दोलन में ऐसे भोंपू लगातार बज रहे हों, जो कि वज्र मूर्खताओं की सतत् ब्रॉडकास्टिंग कर रहे हों, तो यह मार्क्स के शब्दों में बौद्धिक नैतिकता का प्रश्न बन जाता है और साथ ही राजनीतिक कार्यकर्ताओं के शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रश्न बन जाता है, कि इन मूर्खताओं का खण्डन सिलसिलेवार तरीके से और विस्तार से पेश किया जाय।