Category Archives: महान जननायक

शहीदे-आज़म भगतसिंह आज देश के मज़दूरों, ग़रीब किसानों और मेहनतकशों को क्या सन्देश दे रहे हैं?

भारत के मज़दूरो, ग़रीब किसानो, आम मेहनतकशो और आम छात्रो व युवाओ! तुम चाहे किसी भी धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र या भाषा से रिश्ता रखते हो, तुम्हारे राजनीतिक व आर्थिक हित समान हैं, तुम्हारी एक जमात है! तुम्हें लूटने वाली इस देश की परजीवी पूँजीवादी जमात है जिसमें कारख़ाना मालिक, खानों-खदानों के मालिक, ठेकेदार, धनी व्यापारी, धनी किसान व ज़मीन्दार, दलाल और बिचौलिये शामिल हैं! ये जोंक के समान इस देश की मेहनतकश अवाम के शरीर पर चिपके हुए हैं! ये ही इस देश की मेहनत और कुदरत की लूट के बूते अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं! इनके जुवे को अपने कन्धों से उतार फेंको! इसके लिए संगठित हो, अपनी क्रान्तिकारी पार्टी का निर्माण करो! केवल यही शहीदे-आज़म भगतसिंह की स्मृतियों को इस देश के मेहनती हाथों का सच्चा क्रान्तिकारी सलाम होगा, उनको सच्ची आदरांजलि होगी : एक ऐसे समाज का निर्माण करके जिसमें सुई से लेकर जहाज़ बनाने वाले मेहनतकश वर्ग उत्पादन, समाज और राज-काज पर अपना नियन्त्रण स्थापित करेंगे, परजीवी लुटेरी जमातों के हाथों से राजनीतिक और आर्थिक सत्ता छीन ली जायेगी, जो मेहनत नहीं करेगा उसे रोटी खाने का भी अधिकार नहीं होगा, दूसरे की मेहनत की लूट का हक़ किसी को नहीं होगा, जिसमें, भगतसिंह के ही शब्दों में, मनुष्य के हाथों मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।

रोज़ा लक्ज़मबर्ग की याद में

रोज़ा लक्ज़मबर्ग एक कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी थीं। उनको याद करते हुए लेनिन ने कहा था – “गरुड़ कभी-कभी मुर्गियों से नीची उड़ान भर सकते हैं। लेकिन मुर्गियाँ  कभी भी गरुड़ के बराबर ऊँचाई तक नहीं उठ सकती हैं। …अपनी ग़लतियों के बावजूद वह हमारे लिए गरुड़ थीं और रहेंगी। न केवल दुनियाभर के कम्युनिस्ट उनकी याद को ज़िन्दा रखेंगे बल्कि उनकी जीवनी और उनका पूरा काम पूरी दुनिया के कम्युनिस्टों की कई पीढ़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण सामग्री का काम करेंगे।”

कविता – नयी सदी में भगतसिंह की स्मृति / शशि प्रकाश

हमें तुम्हारा नाम लेना है
एक बार फिर
गुमनाम मंसूबों की शिनाख़्त करते हुए
कुछ गुमशुदा साहसिक योजनाओं के पते ढूँढ़ते हुए
जहाँ रोटियों पर माँओं के दूध से अदृश्य अक्षरों में लिखे
पत्र भेजे जाने वाले हैं, खेतों-कारख़ानों में दिहाड़ी पर
खटने वाले पच्चीस करोड़ मज़दूरों,
बीस करोड़ युवा बेकारों,
उजड़े बेघरों और आधे आसमान की ओर से।

विश्व सर्वहारा के महान क्रान्तिकारी शिक्षक एंगेल्स के जन्मदिवस (28 नवम्बर) पर

मार्क्स से मुलाकात से पहले ही मार्क्स और एंगेल्स के विचारों में इतनी समानता थी कि पूँजीवादी समाज के बारे में दोनों ही लगभग समान निष्कर्ष तक पहुँच चुके थे। इसी का परिणाम था कि अपनी पहली मुलाकात के वर्ष में ही दोनों के साझे प्रयास से “पवित्र परिवार” नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। जिसका उद्देश्य मुख्यतः जनता के लिए परिकल्पनात्मक दर्शन की भ्रान्तियों का खण्डन करना था। ‘पवित्र परिवार’ के प्रकाशित होने से पहले ही एंगेल्स ने मार्क्स और रूगे की जर्मन फ़्रांसीसी पत्रिका में अपनी रचना “राजनीतिक अर्थशास्त्र पर आलोचनात्मक निबन्ध” प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण से समकालीन, आर्थिक व्यवस्था की परिघटनाओं को जाँचा-परखा और पाया कि ये निजी स्वामित्व के प्रभुत्व के अनिवार्य परिणाम हैं। 1845 में एंगेल्स ने अपना व्यावसायिक जीवन और परिवार त्याग दिया और बार्मेन छोड़कर ब्रसेल्स चले गये। ब्रसेल्स में ही एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर अपने दार्शनिक और आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने का काम शुरू किया।

भगतसिंह को पूजो नहीं, उनके विचारों को जानो, उनकी राह पर चलने का संकल्प लो!

शासक वर्ग हमेशा इस जुगत में रहता है कि जनता अपने क्रान्तिकारियों के विचारों को जानने न पाये। इसलिए वह अपनी शिक्षा व्यवस्था से लेकर, अख़बार, पत्रिकाओं, टी.वी., इण्टरनेट, सिनेमा आदि के माध्यम से विचारों की धुन्ध फैलाता रहता है ताकि मेहनतकश लोग अपनी क्रान्तिकारी विरासत को जान ही न सकें। शासक वर्ग इस कोशिश में रहता है कि जननायकों को या तो बुत बनाकर पूजने की वस्तु बना दिया जाये ताकि लोग बस उन्हें फूलमाला चढ़ाकर भूल जायें या फिर शहीदों के क्रान्तिकारी विचारों के बारे में षड़यंत्राकारी चुप्पी साध ली जाये जिससे कि लोग अपने संघर्षों के इतिहास को ही भूल जायें।

चन्द्रशेखर आज़ाद  के जन्मदिवस (23 जुलाई) पर

“आज़ाद का समाजवाद की ओर आकर्षित होने का एक और भी कारण था। आज़ाद का जन्म एक बहुत ही निर्धन परिवार में हुआ था और अभाव की चुभन को व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने अनुभव भी किया था। बचपन में भावरा तथा उसके इर्द-गिर्द के आदिवासियों और किसानों के जीवन को भी वे काफ़ी नज़दीक से देख चुके थे। बनारस जाने से पहले कुछ दिन बम्बई में उन्हें मज़दूरों के बीच रहने का अवसर मिला था। इसीलिए, जैसा कि वैशम्पायन ने लिखा है, किसानों तथा मज़दूरों के राज्य की जब वे चर्चा करते तो उसमें उनकी अनुभूति की झलक स्पष्ट दिखायी देती थी।

अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाओ!

आज़ाद ने एक ऐसे इंक़लाब का सपना देखा था, और एक ऐसे समाज के लिए लड़ रहे थे ‘जहाँ इन्सान द्वारा इन्सान का शोषण ख़त्म हो जाये, जो लोग सुई से लेकर जहाज तक सब कुछ बनाते है उनके लिए ही सारी सम्पदा हो,उनका ही राजकाज हो!’ आज़ाद और उनके साथी महज़ अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं चाहते थे, बल्कि हर प्रकार की लूट और शोषण से आज़ादी चाहते थे। आज के समय में मज़दूरों और युवाओं को आज़ाद से जो एक बात सीखनी होगी वह है इस उसूल में यक़ीन की मज़हब-धर्म सबका निजी मसला है। इसका आपके सामाजिक जीवन और राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। जैसा कि आज़ाद के साथी शहीदे-आज़म भगतसिंह ने साफ़ कहा था, धर्म पर हम अलग-अलग व्यक्तिगत आस्था रख सकते हैं, या हम नास्तिक हो सकते हैं, इसके बावजूद हमारी राजनीति हमारे वर्गीय हितों से तय होती है।

काकोरी के शहीदों को याद करो! अवामी एकता कायम करो!

आज हमारे देश में एक फ़ासीवादी हुकूमत क़ायम है जो अंग्रेजों से भी बर्बर तरीके से आम जनता को लूटने, काले क़ानून बनाने और जाति-धर्म के नाम पर समाज में विभाजन पैदा करने में लगी हुई है। जिस तरह से अंग्रेज़ लुटेरे भाई-भाई को लड़ा रहे थे, उसी तरह से आज सत्ता में बैठे लोग भी जनता को बेवजह के मुद्दों पर आपस में लड़ा रहे हैं और धर्म व जाति के नाम पर बहाये गये लोगों के खून से वोट की फ़सल को सींच रहे हैं। आम मेहनतकश जनता को निचोड़कर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने वाली इस सरकार के ख़िलाफ़ नौजवानों-छात्रों और इंसाफ़पसन्द नागरिकों को आगे आने और अवामी एकता क़ायम करने की ज़रूरत है।

फ़्रेडरिक एंगेल्स – सागर जैसा हृदय, आलोकित शिखरों जैसी मेधा, तूफ़ानों जैसा जीवन

मार्क्सवादी दर्शन में एंगेल्स का अपना योगदान विशाल है। ‘लुडविग फायरबाख़ और क्लासिकी जर्मन दर्शन का अन्त’, ‘ड्यूहरिंग मत-खण्डन’, ‘प्रकृति की द्वंद्वात्मकता’ तथा ‘परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्यसत्ता की उत्पत्ति’ जैसी कृतियाँ मार्क्सवादी दर्शन और ऐतिहासिक भौतिकवाद के सार एवं महत्व की क्लासिकी प्रस्तुतियाँ हैं। एंगेल्स का बहुत बड़ा योगदान यह था कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों पर लागू किया। वर्ग, शोषण और जेण्डर-विभेद के नृतत्वशास्त्रीय मूल की उनकी विवेचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सर्वतोमुखी ज्ञान ने उनके लिए पदार्थ की गति के वस्तुगत रूपों को विद्याओं के विभेदीकरण का आधार बनाते हुए विज्ञानों के वर्गीकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विशदीकरण करना सम्भव बनाया। दार्शनिक वाद-विवादों में, वैज्ञानिक और आर्थिक नियतत्ववाद तथा अज्ञेयवाद की आलोचना करते हुए एंगेल्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आधारभूत प्रस्थापनाओं का विकास किया।

काकोरी ऐक्शन की विरासत से प्रेरणा लो! धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ सच्ची धर्मनिरपेक्षता के लिए आगे आओ!

काकोरी ऐक्शन उस समय तक चले आ रहे क्रान्तिकारी आन्दोलन के गुणात्मक रूप से नयी मंजिल में प्रवेश कर जाने का प्रतीक बन गया। काकोरी ऐक्शन में शामिल ये क्रान्तिकारी राजनीतिक चेतना और वैचारिकता के धरातल पर अपने पहले की पीढ़ी के क्रान्तिकारियों से आगे बढ़े हुए थे। उनके पास एक स्पष्ट स्वप्न था कि आने वाला समाज कैसा होगा। एचआरए के घोषणापत्र की शुरुआत इन शब्दों से होती है – “हर इन्सान को निःशुल्क न्याय चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब, हर इन्सान को वास्तविक समान अवसर, चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब।”