असली मुद्दा ख़नन की वैधता या अवैधता का नही बल्कि पूँजी द्वारा श्रम और प्रकृति की बेतहाशा लूट का है।
पूँजीवादी अदालतें और मीडिया अवैध खनन को वैध तरीके से चलाने की पुरज़ोर वकालत करते हैं। लेकिन मज़दूरों, मेहनतकशों के सामने तो असली सवाल यह है कि जहाँ यह ख़नन वैध तरीके से चल रहा है क्या वहाँ श्रम की लूट और प्रकृति का विनाश रुक गया है? अगर नहीं तो क्या वजह है कि सरकार, अदालतें और मीडिया मज़दूरों के श्रम की लूट के मुद्दे को एकदम गोल कर जाते हैं? उनका कुल ज़ोर ख़दानों को कानूनी बनाने पर ही क्यों रहता है। इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए हम रेत-खनन का ठोस उदाहरण लेते हैं।