लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए बहिष्कार के ढिंढोरे के बीच चीन के साथ कारोबार का नया रिकॉर्ड!
मोदी सरकार के अन्धभक्त चीन के विरोध के नाम पर चीनी खिलौनों और झालरों के बहिकार का अभियान चीनी मोबाइल फ़ोन से सोशल मीडिया पर चलाते रहते हैं! लेकिन मोदी के “ख़ून में व्यापार है”, इसलिए मोदी सरकार चीन के साथ धुआँधार कारोबार बढ़ा रही है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसमें चीन से भारत में होने वाले आयात का हिस्सा ही सबसे बड़ा है। चीन का भारत में बड़े पैमाने पर पूँजी निवेश भी जारी है।
फ़ासिस्टी राज्यसत्ता प्रतिक्रियावादी बहुसंख्यकवादी अन्धराष्ट्रवाद के उन्माद का ज़हर जनता के बीच परोसकर उन्हें नफ़रती भीड़ में तब्दील करती रहती है। अपने इस एजेण्डे को पूरा करने के लिए संघ व भाजपा स्वदेशी अपनाने व आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण का राग अलापते रहते हैं। संघ व उसके अनुषंगी संगठनों द्वारा समय-समय पर छोटे-मोटे चीनी उत्पादों के विरोध करने का स्वांग रचा जाता है। अपने इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान संघ परिवार की गुण्डा वाहिनियाँ चीनी खिलौने व इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि बेचने वाले फ़ुटपाथ के छोटे दुकानदारों के साथ हिंसा भी करते हैं।
वर्ष 2020 में गलवान घाटी विवाद व उसके बाद हुए अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद के उपरान्त संघ व भाजपा से जुड़े नेता बड़े ज़ोर-शोर से चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर, चीन को सबक़ सिखाने की बात कर रहे थे। मोदी सरकार की चाटुकारिता करने वाले अख़बार व न्यूज़ चैनल भी अपने आक़ाओं के सुर में सुर मिलाते हुए चीन से आयातित वस्तुओं का बहिष्कार कर चीनी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ देने के आह्वान कर रहे थे। लेकिन वास्तविकता यह है कि ख़ुद भाजपा के शासनकाल में पिछले वर्ष चीन द्वारा भारत को निर्यात 97.5 अरब डॉलर तक पहुँच गया है, जो कि अब तक सर्वाधिक है। चीन और भारत के बीच कुल कारोबार 125 अरब डॉलर के रिकॉर्ड आँकड़े को छू रहा है।
कोविड महामारी के दौरान तो दवाइयों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले रसायन, पीपीई किट, ऑक्सीजन कंसेण्ट्रेटर्स आदि का चीन से आयात बड़े पैमाने पर किया गया। चीन द्वारा भारत को किये गये इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों व अन्य पेट्रोकेमिकल उत्पादों के निर्यात में भी भारी वृद्धि हुई है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन द्वारा भारत को किये जा रहे निर्यात में आने वाले वर्षों में और भी वृद्धि होगी।
बढ़ते चीनी सस्ते माल के आयात का फ़ायदा बिचौलियों और बड़े वाणिज्यिक पूँजीपतियों को होता है। चूँकि वाणिज्यिक पूँजीपतियों के समक्ष देश का बाज़ार पूरी तरह से खुला है, इसलिए इन पूँजीपतियों को भी पूँजीवादी लूट का एक बड़ा हिस्सा मिलता है। दूसरी बात यह कि आयातित मालों का इस्तेमाल भारतीय औद्योगिक पूँजीपति वर्ग भी भरपूर करता है, विशेषकर कच्चे माल के तौर पर जोकि अमूमन चीन से आयातित होने के कारण सस्ते पड़ते हैं। साथ ही भारतीय औद्योगिक पूँजीपति और चीनी पूँजीपति कई सारे उपक्रमों में मिलकर निवेश करते हैं और वस्तुतः एक दूसरे के साझेदार होते हैं। इस तरह चीनी सस्ते माल के आयात से चीनी पूँजीपतियों को तो फ़ायदा होता ही है, बल्कि भारतीय पूँजीपति भी मालामाल होते हैं।
केन्द्र में सत्तासीन सरकार वास्तविकता में बड़े देशी पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी की तरह ही काम कर रही है। अपने इन मालिकों का मुनाफ़ा बरक़रार रखने के लिए चीनी सस्ते मालों के निर्यात को इसी तरह जारी रखना भाजपा के लिए भी ज़रूरी हो जाता है। भक्तों और आम जनता को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए बहिष्कार की जुमलेबाज़ी चलती रहती है।
दरअसल यही उनकी झूठी देशभक्ति की सच्चाई है, उनके लिए देशप्रेम केवल मुट्ठीभर पूँजीपतियों के हितों की रक्षा करना है। अपनी इस खोखली राष्ट्रभक्ति का ढिंढोरा पीटकर, उन्मादी अन्धराष्ट्रवादी प्रचार के सहारे अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना व सत्ता में पहुँचकर पूँजीपतियों की सेवा करना ही फ़ासीवादी भाजपा व संघ परिवार का ध्येय होता है। पर इनके इस दोमुँहेपन का सच लाख छिपाने पर भी सामने आ ही जाता है।
मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2022
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन