जनता के पैसे से खड़े सरकारी उपक्रमों को कौड़ियों के मोल पूँजीपतियों को बेचने की अन्‍धाधुन्‍ध मुहिम

– पराग वर्मा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वर्ष 2021-22 के बजट में सार्वजनिक संसाधनों की अन्धाधुन्‍ध नीलामी की योजना पेश की है। महँगाई और बेरोज़गारी से त्रस्त आम जनता को राहत देने के लिए बजट में कुछ भी ठोस नहीं है। बदहाल अर्थव्यवस्था और ऊपर से कोरोना की मार झेल रही जनता को राहत देने वाली कुछ बची-खुची सरकारी योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने के बजाय इनके लिए आवंटित राशि में पिछले वर्ष की तुलना में भारी कटौती की गयी है।
सरकार का वित्तीय घाटा इस वर्ष बढ़ कर जीडीपी का 9.5% हो चुका है और उसकी पूर्ति करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बेचकर इस साल 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है । सरकार ने 2 सरकारी बैंकों और जनरल इंश्योरेंस कम्पनी में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया है । इसके साथ ही आईडीबीआई बैंक का भी निजीकरण होगा और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को भी निजी हाथों में दे दिया जायेगा। आईडीबीआई बैंक में सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच देगी और एलआईसी का पब्लिक ऑफ़र जारी किया जायेगा जिसके द्वारा भारत की सबसे बड़ी बीमा कम्पनी को शेयर मार्केट में दर्ज कराया जायेगा और फिर सरकार इस कम्पनी में से कुछ हिस्सेदारी बेचकर अपने वित्तीय घाटे को भरेगी।
केन्द्र सरकार ने विनिवेश के ज़रिए वर्ष 2020-21 में 2.10 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन कोरोना के कारण सरकार अब तक केवल 36.5 हज़ार करोड़ रुपये ही जुटा पायी। लेकिन कई सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने की प्रक्रिया जो पिछले वर्ष शुरू हो चुकी थी, वह इस वित्त वर्ष में पूरी हो जायेगी। एयर इंडिया और बीपीसीएल को बेचने की प्रक्रिया निर्णायक दौर में है और वे जल्द ही बेच दिये जायेंगे। इसके अलावा शिपिंग कॉर्पोरेशन, कंटेनर कॉर्पोरेशन, भारत अर्थ मूवर्स, पवन हंस, राष्ट्रीय इस्पात लिमिटेड और नीलांचल इस्पात लिमिटेड भी मौजूदा वर्ष में बेच दिये जायेंगे। सरकार को उम्मीद है की इन सभी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण 2021-22 में पूरा हो जायेगा। इससे लगभग 75 हज़ार करोड़ रुपये की आय सरकार को होगी। इसके अलावा सरकारी बैंकों और बीमा कम्पनियों के निजीकरण से सरकार को लगभग एक लाख करोड़ की आय होगी जिससे सरकार का मौजूदा वर्ष के लिए निजीकरण द्वारा 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य पूर्ण होगा।
पूँजीपति वर्ग के दीर्घकालीन मुनाफ़े को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि 4 रणनीतिक क्षेत्रों के उपक्रमों में से कुछ महत्त्वपूर्ण उपक्रमों को छोड़कर सभी सरकारी उपक्रमों में सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच देगी । उन्होंने नीति आयोग से इन सभी सरकारी उपक्रमों की लिस्ट बनाने को कहा है जिनमें सरकार भविष्य में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी ।
बजट में विनिवेश के साथ मुद्रीकरण की प्रक्रिया का भी उल्लेख किया गया है जिसके माध्यम से सरकार सार्वजनिक संस्थाओं की सम्पत्ति के कुछ हिस्सों को पूँजीपतियों को बेचने की योजना बना चुकी है। मुद्रीकरण के लिए चिह्नित सम्पत्तियाँ जो बेचीं जायेंगी उनमें होंगे नेशनल हाईवे अथॉरिटी की टोल वाली सड़कें, पावर ग्रिड कारपोरेशन की ट्रांसमिशन ग्रिड संपत्ति, गैस अथॅरिटी ऑफ़ इंडिया, ऑयल कॉरपोरेशन, एचपीसीएल जैसी तेल कम्पनियों की गैस और तेल पाइपलाइनें, रेलवे के माल ढुलाई कॉरिडोर, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के एयरपोर्ट (6 एयरपोर्ट नीलामी द्वारा पहले ही अडानी ग्रुप को दिये जा चुके हैं), सरकारी उपक्रमों के गोदाम, खेल स्टेडियम और सरकारी संस्थाओं की अधिशेष ज़मीनें।
बजट में बीमा के क्षेत्र में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) को 49% से बढ़ा कर 74% कर दिया गया है । इसका मतलब है कि जब भारतीय जीवन बीमा निगम और अन्य जनरल बीमा कंपनियों का निजीकरण होगा तो उसमें विदेशी वित्तीय पूँजी भी सबसे अधिक हिस्सेदारी ले सकती है। भारतीय जीवन बीमा निगम में भारत की 40 करोड़ आम आबादी के पैसे इस विश्वास के साथ जमा होते रहे हैं कि विकट परिस्थितियों में वह उनके काम आयेंगे। लम्बे समय से सरकार की नज़र भारतीय जीवन बीमा निगम में जमा आम जनता के इस विशाल धन पर रही है। भारतीय जीवन बीमा निगम में जमा आम बीमा धारकों की पूँजी के इस्तेमाल से ही सरकार ने आईएलएफ़एस जैसी नॉन बैंकिंग फ़ायनेंशियल कम्पनी को और डूबते हुए आईडीबीआई बैंक को बचाने के प्रयास पिछले कुछ सालों में किये थे । पिछले कुछ सालों में सभी बैंकों के एन.पी.ए में बढ़ोत्तरी हुई है क्‍योंकि पूँजीपतियों ने बैंकों से बड़े बड़े क़र्ज़ लिये और चुकाये नहीं। इसी कारणवश नान बैंकिंग फायनेंशियल कंपनियों का डूबना, यस बैंक और बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र जैसे कई प्राइवेट और कोआपरेटिव बैंकों का दीवालिया हो जाना लगातार चलता रहा है । बैंकों को हुए इन घाटों की भरपाई सरकार ने पूँजीपतियों से ना करके अक्सर बैंकों के लिए बेल आउट पैकेज देकर या भारतीय जीवन बीमा निगम जैसी सार्वजनिक संस्था द्वारा उनमें निवेश करवा कर किया है । इसका मतलब पूँजीपतियों के निजी ऋण के कारण डूबती वित्तीय संस्थाओं के नुक़सान की सार्वजनिक पूँजी द्वारा भरपाई की गयी है ।
भारतीय जीवन बीमा निगम कैश रिच कम्पनी है जो सरकार को लगातार लाभांश भी देती रही है । भारतीय जीवन बीमा निगम  की पूँजी को इस तरह घाटे में चलती फाइनेंशियल कम्‍पनियों में लगाने के बाद अब सरकार ने वित्तीय घाटे की पूर्ति के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम को ही विदेशी बाज़ार के हवाले करने का निर्णय ले लिया है। सार्वजनिक बीमा कम्पनी होने के कारण भारतीय जीवन बीमा निगम 1956 के क़ानून द्वारा संचालित होती रही है। इस क़ानून के मुताबिक़ ही भारतीय जीवन बीमा निगम कम्पनी के मुनाफे़ को बोनस के रूप में सभी पालिसी धारकों के साथ साझा करती रही है। ज़ाहिर सी बात है ऐसी कम्पनी जिसमें मुनाफे़ पर शेयर धारकों का पूर्ण अधिकार नहीं होगा उसका बाज़ार मूल्यांकन भी कम ही होगा और इसलिए भारतीय जीवन बीमा निगम में विनिवेश के पहले सरकार 1956 के क़ानून में बदलाव भी करेगी। आने वाले समय में यदि सरकार एलआईसी को पूरी तरह बेच देती है तो उस पर पूर्ण नियंत्रण बहुसंख्यक शेयरधारकों अर्थात बड़े देशी-विदेशी पूँजीपतियों का होगा । शेयर बाज़ार की दुनिया में आये दिन उतार-चढ़ाव आते हैं, कभी अन्दरूनी वजहों से तो कभी वैश्विक वजहों से। ऐसी सूरत में क्या गारण्टी है कि 40 करोड़ आबादी द्वारा जमा निधि को डुबाया नहीं जायेगा ।
पिछले साल ही दस सरकारी बैंकों का विलय करके चार बड़े बैंक बनाये गये। बड़े सार्वजनिक बैंक बनाने से एनपीए होने के बावजूद उनकी पूँजीपतियों को क़र्ज़ देने की क्षमता बढ़ जाती है। इसी लिए यह कदम उठाया गया था। अब सरकार ने कुल 12 सार्वजनिक बैंकों में से दो बैंकों को बेचने की घोषणा कर दी गयी है । ये दो बैंक कौन से होंगे इसकी घोषणा अभी तक नहीं हुई है। पर सरकार के इस कदम को पिछले वर्ष जब आरबीआई ने कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की अनुमति दे दी थी, उसकी निरन्तरता में देखना चाहिए। इसके अनुसार कॉरपोरेट घराने अब बैंकिंग लाइसेंस लेकर स्वयं ही बैंकों के मालिक भी हो सकते हैं । इसका मतलब है वित्तीय पूँजी के लिए बैंक से क़र्ज़ लेना और फिर ना चुकाने की सूरत में क़ानूनी दावपेंच में उलझने से पूँजीपति वर्ग को मुक्त कर दिया गया है।  अब वे खुद के बैंकों द्वारा जनता से पूँजी जुटा सकते हैं तथा अपने अन्य कारोबार में इस्तेमाल कर सकते हैं। खुद के ही बैंक से लिये क़र्ज़ पर ऋण की दर और चुकाने का समय स्वयं निश्चित कर सकते हैं और क़र्ज़ ना भी चुकाया तो अपनी पब्लिक लिमिटेड कम्पनी को दीवालिया घोषित कर कम्पनी के घाटे को सार्वजनिक घोषित कर देंगे। एक के बाद एक प्राइवेट और कोआपरेटिव बैंकों के डूबने के बावजूद सरकार ने दो बैंकों को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय ले लिया है। इन बैंकों में जो आम जनता की जमा पूँजी है उसे अब पूँजीपति वर्ग अपने निजी इस्तेमाल में ला सकता है और डुबा भी सकता है ।
वर्ष 2017 के बाद से कारोबार करने की आज़ादी के नाम पर भाजपा सरकार ने पूँजीपतियों को कभी एक्साइज़ ड्यूटी में छूट दी, कभी ऋण की दरों को आसान किया, कभी कर्ज़ों को बट्टे खाते में डलवाकर माफ़ किया तो कभी कॉरपोरेट टैक्स में भारी छूट प्रदान की। पूँजीपतियों को दी हुई इन सभी छूटों के कारण सरकार की राजस्व आय कम हुई है। इस साल कोरोना महामारी के दौरान भी बड़े पूँजीपतियों की सम्पत्ति में 35% की बढ़ोत्तरी हुई मगर इसके बावजूद बजट में कॉरपोरेट टैक्स और कैपिटल गेन टैक्स में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी है। राजस्व में आयी कमी को कॉरपोरेट घरानों से टैक्स लेकर पूरा करने की जगह सरकार सार्वजनिक सम्पत्ति को बेचकर घोटे की भरपाई कर रही है।
मौजूदा वर्ष का सकल टैक्स राजस्व 10.26 लाख करोड़ था जो कि पिछले साल से 12.6% कम है। इस राजस्व घाटे की पूर्ति के लिए कोरोना काल में भी मुनाफ़ा कमा रहे पूँजीपतियों से टैक्स लेने की जगह पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा दी गयी। पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी 47% तक बढ़ायी गयी जिसका सीधा बोझ आम जनता पर आया। यदि पेट्रोल और डीज़ल से प्राप्त एक्साइज़ ड्यूटी नहीं बढ़ायी जाती तो पिछले साल की तुलना में राजस्व में कमी 12.6% की जगह 20% तक होती।
सवाल यह है कि सरकार के लिए उपलब्ध आय कम क्यों पड़ रही है? क्या सरकार को आम जनता के लिए ख़र्च करने के लिए और अधिक आय चाहिए? नहीं, इसके विपरीत सरकार ने उन सभी योजनाओं में आवंटन कम किया है जो आम जनता को सीधे लाभ पहुँचाती हैं। मौजूदा सरकार को अपने लिये हुए क़र्ज़ के ऋण के रूप में 6 ट्रिलियन रुपये तक सालाना चुकाना पड़ता है जो कि कुल राजस्व का 38% है। अधिकांश देशों में ऋण और आय का अनुपात 8-10 प्रतिशत ही रहता है। इसके अलावा सरकार के अन्य ख़र्चे जैसे मंत्रियों के लिए विदेशी विमान, चुनावी रैलियाँ, मंत्रियों के विदेशी दौरे और सरकारी प्रचार तंत्र का रखरखाव भी बहुत ख़र्चीला है। सरकार के घोषित ख़र्चे भी मुख्यतः पूँजीपतियों के लिए मुनाफ़े के अवसर प्रदान करने की दिशा में हैं मगर आम जनता के लिए शिक्षा के बजट में कटौती की गयी है । बेरोज़गारी की दर मई महीने में 24% तक पहुँच गयी थी। आँकड़े बताते हैं कि जिन लोगों की नौकरी अप्रैल और मई महीने के दौरान चली गयी थी उनमें से 20% लोगों को अभी भी नौकरी नहीं मिली है । लाखों लोगों की आय कम हो गयी है और करोड़ों लोग ठेके पर कार्यरत हैं । इन हालातों में भी सरकार ने बजट में कोई भी कदम ऐसा नहीं उठाया है जो बहुसंख्यक मज़दूर आबादी को कोई भी राहत पहुँचाए। आत्मनिर्भरता का जुमला उछलते हुए विदेशी पूँजी के लिए रास्ते खोले गये हैं।
मौजूदा बजट में भविष्य में होने वाली नीतियों कि भी झलक देखने मिल सकती है। जहाँ एक तरफ़ दो बैंकों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है वहीं एक डेवलपमेंटल बैंक और एक “बैड बैंक” की स्थापना की बात भी की गयी है। इसका मकसद है मौजूदा बैंकों के हिसाब में दर्ज एनपीए को पूँजीपतियों द्वारा बिना चुकाए साफ़ करके बैड बैंक में डालना और पूँजीपतियों को फिर से नये क़र्ज़ देने के लिए डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाएँ निर्मित करना। इसी तरह रेलवे के माल ढुलाई कॉरिडोर और कंटेनर कारपोरेशन के निजीकरण के साथ ही यात्री ट्रेन संचालन घाटे में जाने लगेगा क्‍योंकि अभी माल ढुलाई की क्रॉस सब्सिडी के कारण ही कम किराये में ट्रेन चल पाती है। इनके अलग होने के साथ ही यात्री ट्रेन को भी निजी हाथों में सौंपने का केस तैयार हो जायेगा। अभी भी 51 रेल रूट को निजी पूँजीपतियों को सौंपने की नीति बन चुकी है। बजट में कहा गया कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप द्वारा 7 बन्‍दरगाह संचालित किये जायेंगे पर अन्ततः जिस प्रकार पहले ही 12 पोर्ट अडानी ग्रुप के पास जा चुके हैं, ये 7 भी अडानी ग्रुप के पास ही चले जायेंगे। अडानी ग्रुप के पास 2 जहाज़ भी हैं और इसलिए बजट में शिपिंग कंपनियों के लिए सब्सिडी की भी घोषणा की गयी है।

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2021


 

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