पूँजी के इशारों पर नाचती पूँजीवादी न्याय व्यवस्था : विनायक सेन को आजीवन क़ैद
ऐसे संविधान और न्याय-व्यवस्था के तहत विनायक सेन को सुनायी गयी सजा कोई चौंकाने वाली नहीं है। अब राज्य के दमन की जद में जनवादी और नागरिक अधिकारों की बात करने वाले बुध्दिजीवी, वकील, डॉक्टर और कार्यकर्ता भी आयेंगे ही आयेंगे। यह क्रूर पूँजी संचय का एक ऐसा दौर है जिसमें पूँजीवादी व्यवस्था देश के सबसे पिछड़े, ग़रीब और अरक्षित लोगों के जीवन के अधिकार को छीने बग़ैर पूँजी के हितों को साध ही नहीं सकती। नतीजतन, देश में जनवादी स्पेस लगातार सिकुड़ रहा है। और मजदूरों के लिए तो कमोबेश ऐसी स्थिति लगातार और हमेशा से रही है। विनायक सेन ने भारतीय लोकतन्त्र के असली घिनौने पूँजीवादी चरित्र को पूरी तरह से नंगा कर दिया है। इसका चरित्र मजदूरों से छिपा हुआ तो कभी नहीं था और वे हर रोज सड़क पर इस पूँजीवादी लोकतन्त्र से दो-चार होते हैं।