दो क़िस्से — कविता कृष्णपल्लवी
दाढ़ीजार!
भोजपुरी क्षेत्र के लोग ‘दाढ़ीजार’ शब्द से भली-भाँति परिचित होंगे। गाँवों में स्त्रियाँ जब किसी पुरुष से बहुत नाराज़ होती हैं तो उसे ‘दाढ़ीजार’ कहकर गरियाती हैं। दाढ़ीजार मतलब जिसकी दाढ़ी जला दी गयी हो, या जिसके कुकर्म ऐसे हों कि उसकी दाढ़ी में आग लगा दी जाये। इसी गाली का ‘एक्सटेंशन’ है,’दहिजरा के पूत’! यानी जिसके बाप की दाढ़ी जला दी गयी हो।
दाढ़ीजार का समानार्थक एक और शब्द है, ‘मुँहझौंसा’ यानी जिसका मुँह झुलस (भोजपुरी में ‘झँउस’) दिया गया हो।
चलिए, अब आपको ‘दाढ़ीजार’ शब्द की उत्पत्ति का क़िस्सा सुनाते हैं।
किसी गाँव में एक बेहद लम्पट-निखट्टू क़िस्म का व्यक्ति रहता था। परायी स्त्रियों पर कुदृष्टि रखता था, दिन में उठाईगीरी करता था और रात में सेंधमारी। गाँव वालों ने कई बार उसे दुराचार की कोशिश करते हुए या चोरी-उठाईगीरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और ख़ूब कुटम्मस भी की थी। फिर उसे यह आख़िरी चेतावनी दी गयी कि अगर वह अपनी आदतों से बाज़ नहीं आयेगा तो उसे गाँव से निकाल दिया जायेगा।
चिन्तित होकर उस चोर-लम्पट ने सोचा कि अब क्या करें। अगले दिन लोगों ने पाया कि वह गाँव से ख़ुद ही ग़ायब हो गया है। पूरे दो साल बाद वह दाढ़ी और जटा-जूट बढ़ाये हुए, गेरुआ वस्त्र पहने, चिमटा-कमण्डल लिए गाँव में वापस लौटा। पूरे गाँव में शोर मच गया और लोग उसे देखने के लिए इकट्ठा हो गये। उस व्यक्ति ने लोगों को बताया कि सपने में आकर देवाधिदेव महादेव ने उसे संन्यास लेने और हिमालय में जाकर तपस्या करने का निर्देश दिया था और कहा था कि, “मेरा जन्म जन-कल्याण के लिए हुआ है, अतः मुझे अपनी भटकन से मुक्ति पाकर सन्मार्ग पर आना होगा, तपस्या करके सारे पाप धोने होंगे और फिर संन्यासी बनकर लोगों की सेवा करनी होगी, उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाना होगा!”
भोले-भाले गाँव वालों ने उसके कहने पर सहज ही विश्वास कर लिया। गाँव के तालाब के पास आश्रम बनाकर उस आदमी ने अपना आसन जमाया। कभी वह पूजा-पाठ करता दीखता था तो कभी मोरों और बत्तखों को चारा चुगाते हुए। हर शनिवार को रात आठ बजे उसका विशेष प्रवचन होता था, जिसे सुनने दूर-दूर से लोग आते थे।
कुछ ही दिनों में 8-10 और संन्यासी उसके आश्रम में आ गये। अपना परिचय उन्होंने हरिद्वार से आये ‘स्वामीजी’ के शिष्यों के रूप में दिया। आश्रम में आसपास के गाँवों से भी काफ़ी चढ़ावा आने लगा। लेकिन लोगों ने ग़ौर किया कि इधर रात-बिरात राहज़नी और सेंधमारी की घटनाएँ भी लगातार बढ़ती जा रही थीं। फिर एक दिन विस्फोट हुआ। गाँव की एक स्त्री ने बताया कि आश्रम में इलाज या पुत्र-प्राप्ति के अनुष्ठान के लिए जिन स्त्रियों को कुछ दिनों के लिए रोका जाता है, रात में उन्हें दवा के नाम पर नशीली चीज़ खिलाकर उनके साथ दुराचार किया जाता है। भेद इसलिए खुला कि उस स्त्री ने कुछ शक हो जाने के कारण दवा नहीं खायी थी और ऐन मौक़े पर ख़ुद को छुड़ाकर वहाँ से भाग निकली थी। फिर क्या था। गाँव वालों ने उस लम्पट को चेलों सहित दौड़ाकर पकड़ा और गाँव के चौपाल में लाकर रस्सों से बाँधकर ख़ूब सेवा की। तब यह भी भेद खुला कि आसपास जितनी भी चोरी-राहज़नी हो रही थी, उसमें भी इसी गिरोह का हाथ था।
फिर गाँव की स्त्रियों ने इकट्ठा होकर उस लम्पट-चोर और उसके चेलों की दाढ़ी में आग लगा दी। उसके बाद गधों पर बैठाकर जुलूस निकालने के बाद पूरी मण्डली को इलाक़े से खदेड़ दिया गया।
तभी से ‘दाढ़ीजार’ शब्द गाँव में चोरों-लम्पटों के लिए गाली के रूप में इस्तेमाल होने लगा। कालान्तर में उसका चलन बढ़ते हुए दूर-दूर तक फ़ैल गया।
कहानी से शिक्षा – अगर कोई चोर-लम्पट-ठग-बटमार दाढ़ी बढ़ाकर संन्यासी जैसा भेस-बाना बनाकर लोगों की आँख में धूल झोंके तो लोगों को उसकी दाढ़ी में आग लगा देनी चाहिए और उसे इलाक़े से खदेड़ देना चाहिए।
(इस कहानी में आज के राजनीतिक परिदृश्य और किसी भी राजनीतिक व्यक्ति का रूपक नहीं प्रस्तुत किया गया है। इसलिए कृपया बात का बतंगड़ न करें। किसी भी जीवित व्यक्ति से इसका मेल महज़ एक संयोग है!)
कबीरदास संकट में!!
ख़ास ख़बर। ख़ास ख़बर।!
अभी-अभी यह ख़बर सत्ता के गलियारों से छनकर बाहर आयी है कि कबीरदास के ख़िलाफ़ केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से तथा लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दो ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी हुए हैं।
दोनों नोटिस कबीरदास के एक ही पद को लेकर हैं। लखनऊ से जारी नोटिस में कबीरदास से इस बात की सफ़ाई माँगी गयी है कि उन्होंने अपने एक पद की पहली पंक्ति के द्वारा उ.प्र. के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की अवमानना की है, अतः उनके ख़िलाफ़ क्यों न उ.प्र. के मुख्यमंत्री की मानहानि करने, अराजकता फैलाने और राजद्रोह की धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया जाये। वह विवादास्पद पंक्ति है – ‘मन न रँगाए, रँगाए जोगी कपरा।’
राज्य के मुख्य अधिवक्ता का कहना है कि यह प्रथम दृष्टया योगी आदित्यनाथ के अपमान का और जनता में उनके प्रति अविश्वास पैदा करके अराजकता फैलाने का मामला लगता है क्योंकि इसमें माननीय योगीजी को सीधे-सीधे ढोंगी कहा गया है। मुख्यमंत्री कार्यालय से यह जानकारी मिली कि ‘कारण बताओ नोटिस’ की एक-एक प्रति कबीरचौरा, वाराणसी और मगहर के पते पर एक सप्ताह पहले ही भेज दी गयी थी। अगर दस दिनों के भीतर कबीरदास का उत्तर नहीं मिल जाता तो उनके लिए ‘लुकआउट नोटिस’ भी जारी कर दी जायेगी और उन्हें ढूँढ़कर हिरासत में लेने के लिए नवगठित एस.एस.एफ़. की एक-एक बटालियन वाराणसी और मगहर रवाना कर दी जायेंगी।
केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से जारी नोटिस में उसी पद की एक दूसरी पंक्ति के बारे में कबीरदास से स्पष्टीकरण माँगा गया है। वह पंक्ति है: “दढ़िया बढ़ाय जोगी बन गइलें बकरा।” नोटिस में कबीरदास से पूछा गया है कि क्यों न माना जाये कि यह पंक्ति लिखकर उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री की बढ़ती हुई दाढ़ी पर तंज़ किया है और बकरा कहकर उनकी मानहानि की है।
अब केन्द्र और राज्य – दोनों ही सरकारों को कबीरदास के जवाब की प्रतीक्षा है, लेकिन अभी तो उनका कुछ अता-पता ही नहीं है। देखिए क्या होता है।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन